जिसके फेर में फंसे थे राजीव, राव और मनमोहन अब उसी 84 के फेर में फंस गए राहुल
1984 में हुए सिख विरोधी दंगों का जिन्न एक बार फिर से जाग गया है। इस बार इसे जगाने वाले और कोई नहीं बल्कि खुद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ही हैं।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों का जिन्न एक बार फिर से जाग गया है। इस बार इसे जगाने वाले और कोई नहीं बल्कि खुद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ही हैं। दरअसल, राहुल गांधी इस वक्त यूरोप के दौरे पर हैं। मौजूदा समय में वह इंग्लैंंड में हैं। वहां पर उन्होंने संसद में 1984 दंगों पर किए गए एक सवाल के जवाब में कहा है कि मेरे दिमांग में इसको लेकर कोई संशय नहीं है, यह यक ट्रेडजी थी जो बेहद दुखद थी। उन्होंने यह भी कहा कि वह ऐसा नहीं मानते हैं कि इस दंगे में कांग्रेस पार्टी संलिप्त थी। उनके मुताबिक अचानक घटना होती है जो ट्रेडजी में बदल जाती है।
दंगों को बीते तीन दशक
आपको बता दें कि इन दंगों को तीन दशक से ज्यादा का समय बीत चुका है लेकिन इसका जिन्न आज भी कांग्रेस का पीछा नहीं छोड़ रहा है। इन दंगों को लेकर कुछ कांग्रेसी नेताओं का सियासी भविष्य पूरी तरह से खत्म हो गया है। इनमें जगदीश टाइटलर, सज्जन कुमार समेत कुछ दूसरे नेताओं का भी नाम शामिल है। 2010 में इन दंगों में संलिप्तता को लेकर कमलनाथ का भी नाम सामने आया था। उनका यह नाम दिल्ली के गुरुद्वारा रकाबगंज में हुई हिंसा में सामने आया था। उनके ऊपर ये भी आरोप लगा था कि यदि वह गुरुद्वारे की रक्षा करने पहुंचे थे, तो उन्होंने वहां आग की चपेट में आए सिखों की मदद क्यों नहीं की। वहां पर उनकी मौजूदगी का जिक्र पुलिस रिकॉर्ड में भी किया गया और इन दंगों की जांच को बने नानावती आयोग के सामने एक पीड़ित ने अपने हलफनामे में भी उनका नाम लिया था।
कांग्रेस के दामन पर गहरे हैं दाग
बहरहाल, कांग्रेस के दामन पर इन दंगों के दाग बेहद गहरे हैं। राहुल गांधी भले ही इन दंगों में कांग्रेस की संलिप्तता से साफ इंकार कर रहे हैं लेकिन आपको बता दें कि दंगों के 21 साल बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने संसद में इसके लिए माफ़ी मांगी और कहा कि जो कुछ भी हुआ, उससे उनका सिर शर्म से झुक जाता है। इन दंगों की तपिश को आज तक सिख महसूस करते हैं। यही वजह है कि इसी वर्ष अप्रैल में जब राहुल गांधी ने केंद्र के विरोध में राजघाट पर अनशन किया तो वहां पर जगदीश टाइटलर और सज्जन कुमार की मौजूदगी को लेकर जबरदस्त विरोध शुरू हो गया। इस विरोध के चलते ही इन दोनों नेताओं को वहां से हटाना पड़ा था। खुद कांग्रेस के अंदर ही इन दंगों को लेकर कई नेता खुद को बेहद असहज महसूस करते हैं।
आरोपों से नहीं बच सके नरसिम्हा राव
आपको यहां पर ये भी बता दें कि इन दंगों की आंच और आरोपों से पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव भी खुद को नहीं बचा सके थे। 1984 में हुए दंगों के समय वह केंद्रीय गृहमंत्री थे। उस वक्त उनके ऊपर इन दंगों को रोकने में लापरवाही बरतने के आरोप लगे थे। इतना ही नहीं 1992 में जब बाबरी मस्जिद विध्वंस कांड हुआ था तब वह देश के प्रधानमंत्री थे। उस वक्त भी उनके ऊपर लापरवाही बरतने का आरोप लगा था।
दंगों पर राजीव गांधी का बयान
हालांकि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इन दंगों पर जो बयान सार्वजनिक तौर पर दिया था वह आज भी लोगों के गले नहीं उतर सका है। 19 नवंबर, 1984 को उन्होंने बोट क्लब में इकट्ठा हुई भीड़ को संबोधित करते हुए कहा था कि जब इंदिरा जी की हत्या हुई थी़, तो हमारे देश में कुछ दंगे-फसाद हुए थे। हमें मालूम है कि भारत की जनता को कितना क्रोध आया, कितना ग़ुस्सा आया और कुछ दिन के लिए लोगों को लगा कि भारत हिल रहा है। जब भी कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती थोड़ी हिलती है।" उनका यह बयान बाद में उनके विरोधियों ने अपने पक्ष में खूब इस्तेमाल किया।
तीन दशक बाद भी जख्म हरे
1984 के दंगों में शिकार बने कई परिवार आज तक भी उबर नहीं पाए हैं। इन दंगों में करीब 3000 लोगों की जान गई थी। दिल्ली में भीषण कत्लेआम देखेने को मिला था। खासतौर पर पूर्वी दिल्ली के कई इलाकों में तो सिखों के परिवारों को पूरी तरह से खत्म कर दिया गया था। वर्षों तक भी कई मकान ऐसे थे जहां की कालिख पोंछने वाला भी कोई नहीं हुआ। दिल्ली की बात चली है तो आपको यहां पर ये भी बता दें कि दंगों में पुलिस की भूमिका को लेकर तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधिकारी वेद मारवाह को इसकी जांच की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
दंगों पर क्या कहते है वेद मारवाह
1984 दंगों पर सामने आई मनोज मित्ता की एक किताब "व्हेन ए ट्री शुक डेल्ही" में उन्होंने यहां तक कहा कि पुलिस एक औज़ार के समान होती है, आप जैसा चाहें वैसा इसका वैसा इस्तेमाल कर सकते हैं। जो पुलिस अधिकारी बहुत अधिक महत्वाकांक्षी होते हैं वे देखते हैं कि राजनेता उनसे क्या चाहते हैं। वो इशारों में बात समझते हैं। उन्हें लिखित या मौखिक आदेश देने की जरूरत नहीं होती। उन्होंने इस किताब में उस समय के काफी कुछ राज भी खोले हैं जो सरकार के दंगों में मिली-भगत का कहीं न कहीं इशारा जरूर करते हैं। मित्ता ने उनके हवाले से लिखा है कि जिन इलाकों में पुलिस नेताओं के इशारों पर कठपुतली नहीं बनीं, वहां स्थिति नियंत्रण में रही। मसलन चांदनी चौक में किसी की जान को नुकसान नहीं पहुंचा क्योंकि उस वक्त मैक्सवेल परेरा ने वहां काफी प्रबंध किए थे। इस दौरान गड़बड़ी वहा हुई जहा पुलिस ने राजनीति के दबाव के सामने घुटने टेक दिए थे।
कांग्रेस की राहुल के बयान पर सफई
इन तमाम बातों और तथ्यों का लब्बोलबाब सिर्फ इतना ही है कि इन दंगों की आंच से कांग्रेस का कोई भी नेता नहीं बच सका है। जहां तक राहुल गांधी के ताजा बयान की बात है तो कांग्रेस अब इस पर सफाई दे रही है। खुद पूर्व केंद्रीय मंत्री चिदंबरम ने इस बाबत सफाई देते हुए कहा कि इन दंगों के लिए राहुल गांधी को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते हैं। क्योंकि उस समय उनकी उम्र मात्र 13 या 14 साल रही होगी। सिख दंगों के लेकर पी चिदंबरम ने कहा कि 1984 में कांग्रेस सत्ता में थी, तब बेहद दुखद घटना हुई।
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