प्रियंका माने, सख्त मिजाज और जुनूनी कार्यशैली; लापरवाहों को लेती हैं आड़े हाथ
प्रियंका गांधी के काम करने का अलहदा अंदाज है। वह मुस्कुराते हुए दिखती जरूर हैं, लेकिन सख्त मिजाज और जुनूनी कार्यशैली उनकी पहचान है।
रसिक द्विवेदी, रायबरेली। प्रियंका गांधी को जिसने भी देखा मुस्कुराते हुए ही दिखीं। लेकिन, इस मुस्कुराहट के पीछे छिपा एक दूसरा चेहरा भी है। जिसमें सख्त मिजाजी और जुनून वाली कार्यशैली भरी पड़ी है। 20 वर्षों में रायबरेली ने उन्हें जितने करीब से देखा, उतनी ही नजदीक से जाना भी। उनके काम का अंदाज यह बताने को काफी है कि लापरवाहों को प्रियंका कतई पसंद नहीं करतीं। हां, विपरीत चुनौतियों से जूझने की उन्हें महारत हासिल है। कामकाजी लोगों के साथ कितना समय बीत जाए, इसके घंटे तय नहीं होते। ऐसे कई प्रमाण हैं, जो प्रियंका की छवि को अलग हटकर दिखाते हैं।
बात करते हैं 2012 की। कांग्रेस विधानसभा चुनाव में चारों खाने चित हो गई थी। उसके पांचों विधायक हार गए थे। अपनी मां सोनिया गांधी के लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस को पटरा होते देख प्रियंका बेचैन हो गईं। उन्होंने बिना पल गंवाए ही सबसे पहले यहां के संगठन को अपने हाथ में ले लिया। कौन पदाधिकारी बनेगा कौन नहीं, इसका खाका उन्होंने खींचा। सबसे अहम बात तो यह थी कि उन्होंने गांव, ब्लॉक और तहसीलों से विधायकों के हारने का कारण जाना। जो इनपुट मिले, उससे अवाक रह गईं। ज्यादातर जानकारी यही मिली कि जनता नुमाइंदों से नाराज थी। प्रियंका ने ऐसे लापरवाहों को खरी-खोटी सुनाई। फिर संगठन को नई शक्ल दी।
16 घंटे बैठकर किया साक्षात्कार
यह प्रियंका गांधी के काम करने का अलहदा अंदाज था। जिसे रायबरेली ने कभी देखा भी नहीं। क्योंकि सत्ता में रहने वाले कांग्रेस नेता आराम तलबी में बहुत कुछ गंवा चुके थे। ऐसे में प्रियंका ने इसी जिले में एक ही दिन 16 घंटे लगातार बैठकर पदाधिकारियों का साक्षात्कार लिया। यह शायद उनको आईना दिखाने के लिए भी था, जो बड़े नेताओं के दौरों के वक्त ही महलों से निकलते थे। प्रियंका ने बिना रुके-थके जब यह करके दिखाया, उसके बाद के विधानसभा चुनाव का परिणाम कांग्रेस को राहत देने वाला आया।