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राष्ट्रपति ने कहा- अदालतों में लगे मुकदमों के ढेर न्याय में बाधा, सबको सस्ता न्याय मिलना चाहिए

मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने संविधान दिवस के मौके पर सुप्रीम कोर्ट की वार्षिक रिपोर्ट जारी की और उसकी पहली प्रति राष्ट्रपति को सौंपी।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Tue, 26 Nov 2019 10:30 PM (IST)Updated: Tue, 26 Nov 2019 10:30 PM (IST)
राष्ट्रपति ने कहा- अदालतों में लगे मुकदमों के ढेर न्याय में बाधा, सबको सस्ता न्याय मिलना चाहिए
राष्ट्रपति ने कहा- अदालतों में लगे मुकदमों के ढेर न्याय में बाधा, सबको सस्ता न्याय मिलना चाहिए

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। अदालतों में लगे मुकदमों के ढेर को न्याय की राह में बाधा बताते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि इसे समाप्त करने के लिए विस्तृत चर्चा और लगातार प्रयास करने की जरूरत है। इसके साथ ही उन्होंने सबको न्याय और सस्ता न्याय सुनिश्चित करने की भी बात कही। राष्ट्रपति ने ये बात संविधान दिवस के मौके पर सुप्रीम कोर्ट में आयोजित समारोह में कहीं।

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सुप्रीम कोर्ट के फैसले नौ भारतीय भाषाओं में उपलब्ध

उन्होंने मुकदमों का ढेर खत्म करने के प्रयासों पर कहा कि वह जानते हैं कि यह एक जारी रहने वाली प्रक्रिया है, लेकिन सूचना प्रौद्योगिकी इस दिशा में अच्छे नतीजे दे सकती है और वह यह जानकर प्रसन्न हैं कि इस दिशा मे नयी तकनीकी प्रयास शुरू हो चुके हैं। राष्ट्रपति ने उनका सुझाव मानकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले नौ भारतीय भाषाओं में उपलब्ध होने पर खुशी जाहिर की और कहा कि आने वाले दिनों में इस सूची में और अधिक भाषाएं जुड़ेंगी और आम लोग सर्वोच्च अदालत के फैसले पढ़ सकेंगे। उन्होंने कहा कि सभी को न्याय सुनिश्चित कराने के लिए बार बेंच और सभी संबंधित संस्थाओं को मिल कर प्रयास करने होंगे।

सीजेआई ने कहा- संविधान सिर्फ वकीलों, जजों या सरकार तक सीमित नहीं, सबके लिए है

इस मौके पर मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने न्याय प्रदान प्रणाली में जहां तक संभव हो आर्टीफिशल इंटेलीजेंस के प्रयोग की बात कही, लेकिन कहा कि इसमें बहुत सारे पहलू देखने होंगे। साथ ही साफ किया कि कि इसका यह मतलब न समझा जाए कि ये जजों का विकल्प होगी। उन्होंने कहा कि संविधान सिर्फ वकीलों, जजों या सरकार तक सीमित नहीं है वह सबके लिए है।

मुख्य न्यायाधीश ने जारी की सुप्रीम कोर्ट की वार्षिक रिपोर्ट

मुख्य न्यायाधीश ने इस मौके पर सुप्रीम कोर्ट की वार्षिक रिपोर्ट जारी की और उसकी पहली प्रति राष्ट्रपति को सौंपी। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट विधिक अनुवाद एप भी लांच किया यह एप विभिन्न भाषाओं में होगा जो और आम लोगों के लिए सुविधाजनक होगा।

कानून मंत्री ने कहा- धार्मिक आस्था और विश्वास भी मौलिक अधिकार है

कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इस मौके पर बोलते हुए भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का जिक्र किया। उन्होंने अयोध्या रामजन्म भूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के हाल में आये फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि इस फैसले के बाद कुछ लोगों ने आस्था के मुद्दे पर राय प्रकट की थीं, लेकिन यह समझना चाहिए कि धार्मिक आस्था और विश्वास भी मौलिक अधिकार है। अनुच्छेद 25 व अन्य में इसे महत्ता दी गई है।

प्रसाद बोले- नई पीढ़ी संविधान की मूल प्रति अवश्य देखें 

उन्होंने कहा कि जब एक निश्चित भूमि के टुकड़े पर धार्मिक आधार पर दावा किया जाता है तो सुप्रीम कोर्ट ही उसे अच्छी तरह समझते हुए फैसला देने में समर्थ है। उन्होंने मौलिक अधिकारों के साथ नागरिकों के कर्तव्यों की भी बात कही।

प्रसाद ने कहा- अपने देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत पर गर्व है

कानून मंत्री ने भारत की समृद्ध सांस्कृति विरासत की बात करते हुए नई पीढ़ी से संविधान की मूल प्रति को देखने की बात कही। जिसमें बंगाल के प्रसिद्ध चित्रकार नंदलाल बोस ने संविधान के चेप्टर के हिसाब से संस्कृति को दर्शाया है। जैसे मौलिक अधिकार के खंड में भगवान राम का श्रीलंका से सीता और लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटना। स्टेट पालिसी में भगवान कृष्ण का महाभारत में गीता सार कहना, भगवान बुद्ध भगवान महावीर, शिवाजी, महात्मा गांधी, गुरुगोविंद सिंह का जिक्र होना। उन्होंने कहा कि उसमें अकबर का भी जिक्र है, लेकिन बाबर नहीं है। प्रसाद ने कहा कि उन्हें अपने संविधान अपने देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत पर गर्व है।


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