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सपा छोड़ भाजपा में शामिल हुए तीन राज्यसभा सांसदों के चुनाव को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

कोई भी लोकसेवक जिसने पद से इस्तीफा दिया हो उसी पद पर दोबारा नियुक्ति या चयन के योग्य नहीं होता इसलिए तीनों सांसदों का चुनाव रद किया जाए।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sat, 01 Aug 2020 09:39 PM (IST)Updated: Sat, 01 Aug 2020 09:39 PM (IST)
सपा छोड़ भाजपा में शामिल हुए तीन राज्यसभा सांसदों के चुनाव को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
सपा छोड़ भाजपा में शामिल हुए तीन राज्यसभा सांसदों के चुनाव को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

माला दीक्षित, नई दिल्ली। समाजवादी पार्टी (सपा) छोड़ कर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हुए राज्यसभा सांसद नीरज शेखर, सुरेन्द्र सिंह नागर और संजय सेठ के चुनाव को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। याचिका में राज्यसभा सीट से इस्तीफा देने के बाद उपचुनाव में उसी सीट पर कुछ दिन बाद फिर निर्वाचित होकर राज्यसभा सांसद बनने पर सवाल उठाते हुए तीनों सांसदों का चुनाव रद करने की मांग की गई है।

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क्या संवैधानिक पदाधिकारी पद से इस्तीफा देने के बाद दोबारा उसी पद पर नियुक्त हो सकता है

कोर्ट से आग्रह है कि वह संवैधानिक प्रश्न की व्याख्या करे कि क्या कोई संवैधानिक पदाधिकारी जिसने पद से इस्तीफा दिया हो, फिर दोबारा उसी पद पर चयनित या नियुक्त हो सकता है। याचिका सपा नेता और वकील अभिषेक तिवारी ने दाखिल की है। याचिका को डायरी नंबर मिल चुका है, लेकिन अभी यह डिफेक्ट लिस्ट में स्क्रूटनिंग में है।

तीनों राज्यसभा सांसदों के चुनाव को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

याचिका में तीनों राज्यसभा सांसदों के चुनाव को चुनौती देते हुए कहा गया है कि 16 जुलाई 2019 को सपा सांसद नीरज शेखर ने राज्यसभा से इस्तीफा दिया, इसके बाद सपा सांसद सुरेन्द्र सिंह नागर ने 2 अगस्त और सपा से राज्यसभा सांसद संजय सेठ ने 5 अगस्त को इस्तीफा दे दिया। सभी के इस्तीफे स्वीकार हो गए।

फिर निर्वाचित होकर राज्यसभा सांसद बनने पर उठे सवाल

चुनाव आयोग ने तीनों सांसदों के इस्तीफे से खाली हुई सीटों पर उप चुनाव कराया और तीनों ने उपचुनाव में भाजपा से राज्यसभा सीट का नामांकन भरा और उस सीट पर पुन: निर्वाचित हुए। कहा गया है कि तीन सदस्यों की ओर से खाली की गई सीट पर उन्हीं तीन का पुन: उपचुनाव में खड़ा होना संविधान की योजना और संवैधानिक प्रशासन के खिलाफ है। कुछ दिन पहले छोड़ी गई सीट पर पुन: चुना जाना संवैधानिक स्कीम के अनुकूल नहीं है। याचिका में तीनों सांसदों के अलावा केन्द्र सरकार और चुनाव आयोग को भी पक्षकार बनाया गया है।

दोबारा चुनाव लड़ना और निर्वाचित होना संविधान में दी गई प्रशासनिक योजना के खिलाफ है

याचिकाकर्ता ने कोर्ट को यह भी बताया है कि ऐसी ही एक याचिका हाईकोर्ट में दाखिल हुई थी, लेकिन हाईकोर्ट ने नोटिस जारी किये बगैर याचिका खारिज कर दी थी। कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका जनहित में दाखिल की गई है। याचिकाकर्ता का कहना है कि कोई भी लोकसेवक जिसने स्वेच्छा से इस्तीफा दिया हो, उसे उसी पद पर दोबारा नामित या नियुक्त किये जाने पर विचार होता। इसी तरह जिस सीट को तीनों सांसदों ने छोड़ा था उसी पर उनका दोबारा चुनाव लड़ना और निर्वाचित होना और उसी सदन में फिर पहुंचना संविधान में दी गई प्रशासनिक योजना के खिलाफ है।

उन्हीं के द्वारा खाली की गई सीट पर दोबारा उन्हीं का चुनाव लड़ना गलत है

कहा गया है कि संविधान या जनप्रतिनिधित्व कानून किसी सांसद या विधायक को उसके इस्तीफे से खाली हुई सीट पर होने वाले उपचुनाव मे हिस्सा लेने के लिए अयोग्य घोषित नहीं करता, लेकिन वास्तव में उन्हीं के द्वारा खाली की गई सीट पर दोबारा उन्हीं का चुनाव लड़ना गलत है। कोर्ट इस कानूनी सवाल की व्याख्या करे कि क्या राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति, सांसद, विधायक, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश और हाईकोर्ट के न्यायाधीश आदि उसी पद पर दोबारा नियुक्त या निर्वाचित हो सकते हैं जिससे उन्होंने इस्तीफा दिया हो।

तीनों सांसदों का दोबारा चुना जाना गलत है और तीनों का चुनाव रद किया जाए

कहा गया है कि कोई भी लोकसेवक जिसने पद से इस्तीफा दिया हो उसी पद पर दोबारा नियुक्ति या चयन के योग्य नहीं होता, इसलिए तीनों सांसदों का उसी पद पर दोबारा चुना जाना गलत है और तीनों का चुनाव रद किया जाए। कहना है कि याचिका मे संविधान का महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल है इसलिए इस पर पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ सुनवाई करे। यह भी कहा गया है कि यहां उठाया गया सवाल महत्वपूर्ण है क्योंकि सांसद और विधायकों के इस्तीफे की रणनीति के पीछे राजनैतिक खेल होता है। इसे बताने के लिए देश के विभिन्न राज्यों में विभिन्न दलों के सांसदों और विधायकों के इस्तीफे की घटनाओं का भी जिक्र किया गया है।


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