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Upper Caste Reservation: पुरानी है सवर्ण आरक्षण की राजनीति, SC भी जता चुका है आपत्ति

Upper Caste Reservation आर्थिक आधार पर आरक्षण, एक ऐसा मुद्दा है जिसे हर किसी ने अपनी-अपनी तरह से भुनाया है। कभी सवर्णों के लिए आरक्षण मांग कर तो कभी विरोध कर।

By Amit SinghEdited By: Published: Mon, 07 Jan 2019 05:40 PM (IST)Updated: Tue, 08 Jan 2019 06:47 PM (IST)
Upper Caste Reservation: पुरानी है सवर्ण आरक्षण की राजनीति, SC भी जता चुका है आपत्ति
Upper Caste Reservation: पुरानी है सवर्ण आरक्षण की राजनीति, SC भी जता चुका है आपत्ति

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। Upper Caste Reservation केंद्र की मोदी सरकार ने सोमवार को आर्थिक आधार पर सवर्णों के लिए 10 फीसद आरक्षण की घोषणा की। सरकार के इस फैसले को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया है। कोई इसे पॉलिटिकल स्टंट बता रहा है तो कोई केंद्र सरकार के इस फैसले को सवर्णों के लिए बड़ी कामयाबी मान रहा है। यहां हम आपको बता दें कि सवर्णों के आरक्षण के नाम पर राजनीति कोई नई बात नहीं है। सवर्ण आरक्षण की राजनीति का इतिहास काफी पुराना है।

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इससे पहले भी कुछ सरकारों ने आर्थिक आधार पर सवर्णों को आरक्षण देने के बहाने राजनीतिक रोटियां सेकी हैं। हालांकि हर बार सुप्रीम कोर्ट ने उनके इस फैसले को निरस्त कर दिया। अब एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आर्थिक आधार पर सवर्णों को 10 फीसद आरक्षण देने का ऐलान किया है। अपनी घोषणा में उन्होंने कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को सरकरानी नौकरियों में 10 फीसद आरक्षण प्रदान किया जाएगा। इसके लिए सरकार मंगलवार को संविधान संशोधन का प्रस्ताव लाएगी। हालांकि सरकार के लिए आरक्षण की ये राह आसान नहीं होगी। आइये जानते हैं सवर्णों को आरक्षण देने के रास्ते में क्या-क्या रोड़े हैं।

इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने जताई है आपत्ति
संविधान में आरक्षण का पैमाना सामाजिक असमानता है। किसी की आय या संपत्ति के आधार पर आरक्षण देने का कोई प्रावधान नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 16(4) के मुताबिक आरक्षण किसी समूह को दिया जाता है। किसी व्यक्ति विशेष को आरक्षण देने का संविधान में कोई नियम नहीं है। इसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट पहले भी कई बार आर्थिक आधार पर आरक्षण देने के फैसलों पर रोक लगा चुका है। अपने पूर्व के फैसलों में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाना समानता के मूल अधिकार का उल्लघन है।

कब-कब खारिज हुआ सवर्ण आरक्षण बिल 
- वर्ष 1991 में मंडल कमीशन के ठीक बाद प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने आर्थिक आधार पर 10 फीसद आरक्षण का फैसला लिया था। वर्ष 1992 में कोर्ट ने इस फैसले को निरस्त कर दिया था।
- बिहार में पिछड़ों को 27 फीसद आरक्षण देने के बाद वर्ष 1978 में तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने आर्थिक आधार पर सवर्णों को 03 फीसद आरक्षण दिया था। बाद में कोर्ट ने इस फैसले को भी निरस्त कर दिया था।
- सितंबर 2015 में राजस्थान सरकार ने सामान्य श्रेणी के आर्थिक पिछड़ों को शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 14 प्रतिशत आरक्षण देने का वादा किया था। दिसंबर 2016 में राजस्थान हाईकोर्ट ने इस बिल को रद कर दिया। हरियाणा में भी इसी तरह सवर्ण आरक्षण खत्म कर दिया गया था।
- गुजरात सरकार ने अप्रैल 2016 में सामान्य वर्ग के आर्थिक पिछड़े लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला लिया था। उस वक्त फैसले में कहा गया था कि छह लाख रुपये सालाना आय से कम वाले परिवारों को इस आरक्षण के अधीन लाया जा सकता है। अगस्त 2016 में गुजरात हाईकोर्ट ने इस फैसले को गैरकानूनी और असंवैधानिक बता रद कर दिया था।

क्या था मंडल आयोग
वर्ष 1979 में बने मंडल आयोग के अध्यक्ष बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री बीपी मंडल थे। उनकी रिपोर्ट के अनुसार हिंदुओं की पिछड़ी जाति और गैर हिंदू पिछड़ी जातियों की आबादी 52 प्रतिशत है। आयोग ने इनके लिए नौकरियों तथा शैक्षणिक सुविधाओं में 27 फीसद आरक्षण की सिफारिश की थी। उस वक्त ओबीसी समूह के लोगों ने 27 फीसद आरक्षण को आबादी के अनुसार अपर्याप्त बताया था। कहा गया कि आयोग ने इसके ले 1931 की जनगणना को आधार बनाया था। इसके बाद मंडल कमीशन बनने तक ओबीसी कैटेगरी में कई और नई जायितों को शामिल कर दिया गया था। इससे ओबीसी कैटेगरी की आबादी बढ़ गई थी, लेकिन उस अनुपात में कोटा नहीं बढ़ाया गया।

क्या होगा सवर्णों के आरक्षण का फार्मूला
यहां आपके लिए ये भी जानना जरूरी है कि आरक्षण की सीमा अधिकतम 50 फीसद तक ही हो सकती है। वर्ष 1963 में सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में फैसला दिया था। इस आदेश में कोर्ट ने कहा था कि 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण किसी भी सूरत में नहीं दिया जा सकता है। फिलहाल जिन जातियों या वर्गों को आरक्षण मिलता है उन्हें तीन कैटेगरी में रखा गया है। इसमें अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) हैं। वर्तमान में SC को 15 फीसद, ST को 7.5 फीसद और OBC को 24 प्रतिशत आरक्षण प्राप्त है। मतलब कुल मिलाकर 49.5 प्रतिशत आरक्षण वर्तमान में दिया जा रहा है। ऐसे में सरकार कैसे आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णो को 10 फीसद का अतिरिक्त आरक्षण देगी। जानकारों का मानना है कि इसके लिए सरकार को संविधान में बड़े पैमाने पर बदलाव करना होगा। अन्यथा सुप्रीम कोर्ट से ये आरक्षण फिर निरस्त हो जाएगा।

ये है देश में आरक्षण का इतिहास

  1. देश में आरक्षण की शुरुआत वर्ष 1882 में हंटर आयोग की नियुक्ति के साथ हुई। महात्मा ज्योतिराव फुले ने मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के साथ सरकारी नौकरी में आनुपातिक आरक्षण की मांग की।
  2. त्रावणकोर के सामंती रियासत में 1891 की शुरूआत में सार्वजनिक सेवा में मनमानी कर विदेशियों को भर्ती करने के खिलाफ जबरदस्त प्रदर्शन हुआ। इसके साथ ही सरकारी नौकरियों में आरक्षण के लिए मांग की गयी।
  3. वर्ष 1901 में महाराष्ट्र के सामंती रियासत कोल्हापुर में शाहू महाराज ने आरक्षण देना शुरू किया। सामंती बड़ौदा और मैसूर रियासतों में पहले से आरक्षण लागू था।
  4. वर्ष 1908 में अंग्रेजों ने बहुत सी जातियों और समुदायों के पक्ष में आरक्षण शुरू किया।
  5. 1909, 1919 व 1935 में भारत सरकार अधिनियम में आरक्षण का प्रावधान किया गया।
  6. वर्ष 1920 में मद्रास प्रेसीडेंसी ने जातिगत सरकारी आज्ञापत्र जारी किया। इसमें गैर ब्राह्मणों के लिए 44 फीसद, ब्राह्मणों के लिए 16 फीसद, मुसलमानों के लिए 16 फीसद, भारतीय एंग्लो/ईसाइयों के लिए 16 प्रतिशत और अनुसूचित जातियों के लिए 8 फीसद आरक्षण की व्यवस्था की गयी थी।
  7. 1935 में पहली बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पूना समझौता प्रस्ताव के तहत दलित वर्ग के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र आवंटित किया था।
  8. वर्ष 1942 में भीमराव आंबेडकर ने अनुसूचित जातियों की उन्नति के लिए अखिल भारतीय दलित वर्ग महासंघ बनाया। साथ ही सरकारी सेवाओं और शिक्षा में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण की मांग की।
  9. 1947 में भारत आजाद हुआ। आंबेडकर को भारतीय संविधान बनाने के लिए मसौदा समिति का अध्यक्ष बनाया गया। उन्होंने संविधान में नागरिकों के लिए समान अवसर प्रदान करते हुए सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछले वर्गों या अनुसूचित जाति-जानजातियों की उन्नति के लिए विशेष धाराएं रखीं।
  10. आंबेडकर ने आजाद भारत के संविधान में 10 सालों के लिए SCST के राजनीतिक प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के लिए अलग से निर्वाचन क्षेत्र आवंटित करने की जरूरत बताई।
  11. 1953 में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए कालेलकर आयोग को स्थापित किया गया।
  12. 1979 सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ों की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए मंडल आयोग की स्थापना की गई।
  13. 1980 मंडल आयोग ने रिपोर्ट देते हुए उस वक्त के आरक्षण कोटा में बदलाव करते हुए 22 फीसद को 49.5 प्रतिशत वृद्धि करने की सिफारिश की थी। इसके बाद बड़े पैमाने पर सवर्णों ने मंडल आयोग का विरोध किया था।
  14. 1990 में मंडल आयोग की सिफारिश तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने सौकरी नौकरियों में लागू कर दी।
  15. 1991 में प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव सरकार ने सवर्ण जातियों में गरीबों के लिए अलग से 10 फीसद आरक्षण शुरू किया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद कर दिया।
  16. 1995 में संसद ने 77वें संविधान संशोधन के तहत SCST वर्ग को तरक्की में आरक्षण का समर्थन करते हुए अनुच्छेद 16(4)(ए) जोड़ा। बाद में 85वें संशोधन द्वारा इसमें अनुवर्ती वरिष्ठता को शामिल किया गया।
  17. 1998 में केंद्र सरकार ने विभिन्न सामाजिक समुदायों की आर्थिक और शैक्षिक स्थिति जानने के लिए पहली बार राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण कराया।
  18. 2005 में निजी शिक्षण संस्थानों में पिछड़े वर्ग और SCST आरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए 93वां संविधान संशोधन किया गया। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट वर्ष 2005 में इसे खारिज कर चुका था।
  19. 2006 केंद्र सरकार के शैक्षिक संस्थानों में अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण शुरू हुआ।
  20. 2007 केंद्र सरकार के शैक्षिक संस्थानों में ओबीसी आरक्षण पर सर्वोच्च न्यायालय ने स्थगन दे दिया।
  21. 10 अप्रैल 2008 को सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी धन से पोषित संस्थानों में 27 फीसद ओबीसी कोटा शुरू करने के निर्णय को सही ठहराया।

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