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यूपी की कैराना संसदीय सीट पर उपचुनाव के लिए राजनीतिक दलों ने फूंका चुनावी बिगुल

कैराना संसदीय क्षेत्र के चुनाव में समाजवादी पार्टी गोरखपुर और फूलपुर की तर्ज पर अपना प्रत्याशी उतारने की जुगत में है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sun, 22 Apr 2018 08:17 PM (IST)Updated: Mon, 23 Apr 2018 11:42 AM (IST)
यूपी की कैराना संसदीय सीट पर उपचुनाव के लिए राजनीतिक दलों ने फूंका चुनावी बिगुल
यूपी की कैराना संसदीय सीट पर उपचुनाव के लिए राजनीतिक दलों ने फूंका चुनावी बिगुल

सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश की कैराना संसदीय सीट पर चुनाव की तैयारियों में सभी राजनीतिक दल जुट गए हैं। समाजवादी पार्टी ने बूथ स्तर की तैयारियों को अंजाम देकर चुनावी बिगुल फूंक दिया है। कैराना के चुनाव के लिए पार्टी में उपयुक्त व मजबूत प्रत्याशी की तलाश शुरू कर दी गई है। इसके लिए अपने से दूर हो चुके अति पिछड़ी जाति के मतदाताओं को रिझाने के लिए उसी समुदाय के नेताओं को चुनाव तैयारियों में झौंका गया है।

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- मुस्लिम प्रत्याशी उतारकर सांप्रदायिक रंग देने से बचना चाहेगी पार्टी

- बूथ स्तर पर कमेटी के गठन को अति पिछड़ी जाति के नेताओं को लगाया

संसदीय क्षेत्र के उपचुनाव में समाजवादी पार्टी गोरखपुर और फूलपुर की तर्ज पर अपना प्रत्याशी उतारने की जुगत में है। इसके लिए जहां बसपा के साथ गठबंधन को मजबूत बनाने पर जोर दिया जा रहा है, वहीं पार्टी के भीतर प्रत्याशियों के चयन पर ध्यान केंद्रित किया गया है। प्रदेश की कुछ चुनिंदा भारी भरकम संसदीय सीटों में से एक कैराना में भाजपा का मुकाबला करने में गठबंधन का मजबूत होना जरूरी है।

राज्य में भाजपा विरोधी गठबंधन के बैनर तले चुनाव लड़ने की कवायद को अंजाम देने और उसमें शामिल होने के लिए राष्ट्रीय लोकदल के नेता अजित सिंह के पुत्र और पूर्व सांसद जयंत चौधरी ने बसपा मुखिया से मुलाकात की है। माना जा रहा है कि इस मुलाकात का मुख्य मकसद कैराना से जयंत चौधरी को संयुक्त प्रत्याशी बनाने का आग्रह था।

सूत्रों का कहना है कि बसपा की ओर से फिलहाल कोई संकेत नहीं दिया गया है। पिछले चुनाव में कैराना में लोकदल प्रत्याशी को बहुत कम मत मिले थे। यहां के मुस्लिम मतदाताओं में राष्ट्रीय लोकदल पर संदेह है। दरअसल पहले भी कई बार अजित सिंह भाजपा के साथ रहे हैं, जिससे रालोद प्रत्याशी के साथ मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। राज्यसभा चुनाव में रालोद विधायक ने बसपा का विरोध कर भाजपा के पक्ष में मतदान कर दिया था। रालोद कार्यकर्ताओं व दलित मतदाताओं के बीच तनातनी से भी बसपा नेतृत्व जयंत को समर्थन देने से पहले कई बार सोचेगा।

दूसरी ओर, बसपा सैद्धांतिक तौर पर उपचुनाव में अपना प्रत्याशी नहीं उतारती है। ऐसे में वह समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी का समर्थन कर सकती हैं। विधानसभा परिषद के चुनाव में सपा ने अपने हिस्से की एक सीट बसपा के साथ गठबंधन धर्म को मजबूत बनाने के लिहाज से छोड़ दी थी। इससे बसपा उसका समर्थन कर सकती है। इन्हीं समीकरणों व तालमेल के मद्देनजर समाजवादी पार्टी की तैयारियां तेज हो गई हैं।

समाजवादी पार्टी के महासचिव सुरेंद्र नागर का कहना है कि समाजवादी पार्टी अपना प्रत्याशी उतारने की तैयारियां कर रही है, जिसके लिए बूथ स्तर पर संगठन को मजबूत बनाया जा रहा है। कैराना संसदीय सीट की पांचों विधानसभा क्षेत्रों के लिए दो-दो पर्यवेक्षकों की नियुक्ति की गई है। यहां के बूथ स्तर पर संगठन के गठन की प्रक्रिया को पूरा करना है। नियुक्त किए गए पर्यवेक्षकों में ज्यादातर अति पिछड़ी जाति के नेताओं को शामिल किया गया है।

भाजपा की ओर से संभावित प्रत्याशी स्वर्गीय सांसद हुकुम सिंह की बेटी हो सकती हैं। माना जा रहा है कि सपा किसी गूजर नेता को यहां से प्रत्याशी नहीं बनाएगी। हालांकि पार्टी के पास एमएलसी बीरेंद्र सिंह हैं। पार्टी किसी मुस्लिम को भी उम्मीदवार बनाने में हिचकेगी, क्योंकि उन्हें डर है कि कहीं चुनाव सांप्रदायिक रंग न पकड़ ले। जबकि पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव के खास डॉक्टर सुधीर पंवार को चुनाव मैदान में उतारा जा सकता है। विवादों से परे डॉक्टर पंवार ने क्षेत्र का सघन दौरा भी शुरू कर दिया है।


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