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अर्थशास्त्र से निकली प्रधानमंत्री मोदी की राजनीति, 'अच्छे दिन' को बजट के जरिए धरातल पर उतारने की तैयारी के साथ ही विकास पर जोर

नरेन्द्र मोदी सरकार ने एकबार फिर से सबको चौंका दिया है। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने एक ऐसा बजट सामने रख दिया जिसे सतही तौर पर देखने से नीरस लगेगा लेकिन ढूंढने वाले के लिए यह बजट आर्थिक भी है और अदभुत रूप से राजनीतिक भी।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Tue, 01 Feb 2022 07:53 PM (IST)Updated: Wed, 02 Feb 2022 08:35 AM (IST)
अर्थशास्त्र से निकली प्रधानमंत्री मोदी की राजनीति, 'अच्छे दिन' को बजट के जरिए धरातल पर उतारने की तैयारी के साथ ही विकास पर जोर
आम बजट के जरिए नरेन्द्र मोदी सरकार ने फिर से सबको चौंका दिया है।

आशुतोष झा, नई दिल्ली। नरेन्द्र मोदी सरकार ने फिर से सबको चौंका दिया है। उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं और यह सामान्य अटकल थी कि वोटरों को किसी न किसी तरह तो रिझाया जाएगा लेकिन नहीं वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने एक ऐसा बजट सामने रख दिया जिसे सतही तौर पर देखने से नीरस लगेगा। न तो टैक्स में रियायत, न बड़ी योजनाएं, न ही बड़े सुधार... लेकिन ढूंढने वाले के लिए यह बजट आर्थिक भी है और अदभुत रूप से राजनीतिक भी।

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गोता लगाकर मोती निकालने जैसा बजट

रोचक तथ्य है कि बजट भाषण खत्म होने के बाद शेयर बाजार भी कुछ देर के लिए गिरा और फिर उसी तेजी से बढ़ भी गया। दरअसल यह बजट गोता लगाकर मोती निकालने जैसा ही है। आश्चर्य नहीं होना चाहिए यह बजट लंबी राजनीतिक पारी को भी धार दे दे। वर्ष 2004 में जब भाजपा के पहले मुख्यमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी समय से पहले ही चुनाव करवाने को मैदान में उतरे थे तो नारा था- फील गुड। बाद में पार्टी ने माना था कि उस वक्त फीलगुड संभवत: शहरों तक ही रुक गया था।

विकास के सहारे लंबी राजनीति का लक्ष्‍य

2014 में नरेन्द्र मोदी बहुमत की सरकार के आए तो नारा था- अच्छे दिन आएंगे। ताबड़तोड़ बड़े फैसले हुए, भ्रष्टाचार पर लगाम के लिए अंकुश लगे, उद्योग जगत में सकारात्मकता आई लेकिन कोरोना ने संक्रमित कर दिया। ऐसे में यह बजट सरकार की उस सोच को दर्शाता है जिसके तहत लंबी राजनीति जातिगत या संकीर्ण आधार पर नहीं ठोस और सही अर्थव्यवस्था पर टिकती है। यानी अर्थव्यवस्था और देश के विकास में आम लोगों की भागीदारी दिखे।

फीलगुड को धरातल पर उतारने की कोशिश 

इस बजट के जरिए उस फीलगुड अब धरातल पर उतारने की तैयारी है। पिछले दो वर्षों से प्रधानमंत्री बार बार इज आफ लिविंग की बात कर रहे हैं। बजट में उसे बहुत बारीकी से उतारा गया है।

इनकम टैक्स के नोटिस के भय से मुक्‍ति‍

मध्यमवर्ग को मायूसी हो सकती है कि उसके लिए कर में कोई रियायत नहीं मिली लेकिन ऐसा शायद ही कोई करदाता हो जो टैक्स भरते समय डरता न हो। उसे भय सताता है कि कुछ गलती हुई और इनकम टैक्स का नोटिस आया। सरकार ने इस भय से मुक्ति दे दी है। अन्य कानूनों की तरह ही इसका सरलीकरण कर दिया गया है।

सहकारी समितियों को राहत

सहकारी समितियों से यूं तो 91 फीसद गावों के लोग जुड़े हैं लेकिन सीधे तौर पर लगभग आठ करोड़ सदस्य हैं। उनकी बरसों की मांग पूरी हो गई और टैक्स दर कम कर दिया गया। राज्य सरकारों के कर्मचारियों को केंद्रीय कर्मचारियों के बराबरी में खड़ा कर दिया जब पेंशनफंड में 10 की बजाय 14 फीसद योगदान को मंजूरी दे दी गई।

सस्ता ब्राडबैंड पहुंचाने की कवायद

गावों में सस्ता ब्राडबैंड पहुंचाने की कवायद शुरू हुई, पहाड़ी क्षेत्रों में आवागमन को थोड़ा आसान बनाने के लिए आठ रोपवे प्रोजेक्ट की पहचान की गई। नए जमाने के उद्योगों को पहचान कर न सिर्फ उसके विकास का रोडमैप तैयार किया जा रहा है बल्कि रोजगार का बड़ा दरवाजा खोला जा रहा है।

...ताकि हर घर में आमदनी सुनिश्चित हो

बजट में जिस तरह एमएसपी पर प्रतिबद्धता जताई गई वह जाहिर तौर पर पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए संकेत है। वास्तविकता यह है कि सरकार ने एक ऐसे भारत की सोच को स्थापित करना शुरू किया है जहां हर घर में आमदनी सुनिश्चित हो, गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच हो, बच्चों की पढ़ाई का इंतजाम हो, रहने को छत हो और आवागमन सुचारू हो। बस इतनी सी सुविधा ही फीलगुड पैदा कर सकती है।

योजनाओं के सहारे रजनीति पर फोकस

पिछले छह सात वर्षों में बार बार यह साबित होता रहा है कि उज्जवला, आयुष्मान, सौभाग्य, शौचालय जैसी योजनाओं ने राजनीति में जातिपाति का भेद मिटा दिया था। संभवत: भाजपा अब उस धारा को इतनी मजबूत कर देना चाहती है कि राजनीति अर्थशास्त्र का हिस्सा बन जाए। 


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