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पीएम मोदी का असम दौरा: अहोम राजाओं की राजधानी बनने के गौरव पाने से लेकर बाढ़ की त्रासदी झेलता धेमाजी

प्रधानमंत्री मोदी असम के धेमाजी पहुंचे। इस दौरे की खासियत यह है कि वे जहां-जहां भी गए उन इलाकों का कोई न कोई ऐतिहासिक महत्व है। इसी तरह धेमाजी का भी महत्व है। अहोम राजाओं की पहली राजधानी की गौरव गाथा से लेकर बाढ़ की त्रासदी तक का सफर।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Mon, 22 Feb 2021 08:50 PM (IST)Updated: Mon, 22 Feb 2021 08:50 PM (IST)
पीएम मोदी का असम दौरा: अहोम राजाओं की राजधानी बनने के गौरव पाने से लेकर बाढ़ की त्रासदी झेलता धेमाजी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को असम के धेमाजी पहुंचे।

नेशनल डेस्क, नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को असम के धेमाजी पहुंचे। बीते एक महीने में उनका यह तीसरा असम दौरा है। इस दौरे की खासियत यह है कि वे जहां-जहां भी गए, उन इलाकों का कोई न कोई ऐतिहासिक महत्व है। इसी तरह धेमाजी का भी महत्व है। अहोम राजाओं की इस पहली राजधानी की गौरव गाथा से लेकर बाढ़ की त्रासदी तक का सफर।

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ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तर में धेमाजी के पिछले हिस्से में अरुणाचल है 

गुवाहाटी से लगभग 400 किलोमीटर दूर स्थित धेमाजी पुरातन इतिहास, कला-संस्कृति के साथ बाढ़ त्रासदी का भी गवाह रहा है। ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तर में बसे इस जिले के पिछले हिस्से में अरुणाचल बसा है। जहां से हिमालय की पहाड़ियां नजर आती है। हिमालय और ब्रह्मपुत्र नदी की वजह से यहां की धरती में कई तरह की वनस्ततियां है।

अहोम राजाओं ने दो बार नियंत्रण में लिया

धेमाजी जिला प्रशासन द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार वर्ष 1240 ईस्वी के आसपास प्रथम अहोम राजा चाउ चुक्फा ने धेमाजी जिले के हाबूंग नामक स्थान पर अपनी राजधानी बनाई, पर यहां बार-बार आने वाली बाढ़ की वजह से बाद अपनी राजधानी बदल ली। उसके बाद यह चुटिया राजाओं के अधीन आ गया। वर्ष 1523 ई. में एक बार फिर अहोम राजा चुहुंग-मूंग ने चुटिया राज्य पर हमला करके धेमाजी को अपने नियंत्रण में ले लिया।

भारत-चीन लड़ाई से लेकर उल्फा के हमले झेल चुका है धेमाजी

अरुणाचल प्रदेश की सीमा से सटा यह शहर ऐतिहासिक अहोम राजाओं से जुड़े स्थानों से लेकर 1965 की भारत-चीन लड़ाई और 2004 में उल्फा उग्रवादियों द्वारा किए गए बम हमले (जब धेमाजी स्कूल के बहुत से छात्र मारे गए थे) असम के इतिहास में इस जिले की उपस्थिति को दर्शाते हैं।

प्रमुख पांच प्रजातियां रहती हैं यहां

प्राचीन काल में समूचा धेमाजी स्थानीय मूल निवासियों का निवास स्थान था। इनमें मिसींग, सोनोवाल कचारी, देओरी और लालूंग आदि प्रमुख हैं। इनके अलावा, अहोम, राभा, ताई खाम्ति, कोंच, केवट, कोलिबोर्ता, कलिता आदि मूल निवासी भी धेमाजी जिले में निवास करते हैं। इनके रहने से इस स्थान की संस्कृति खास है। दरअसल, अलग-अलग लोग अपनी अलग भाषा, विधि-विधान और परिधान के साथ खास विशिष्टता लाते हैं। समग्र रूप में वे स्थानीयता को बहुआयामी बना देते हैं। जैसे, मिसींग की भाषा और लिपि बोडो से अलग है। यही बात उनके पारंपरिक पहनावे के साथ भी है।

पुरुषों के कंधे पर गमछा विशेष पहचान

इनकी पारंपरिक पोशाक विशेष अवसरों पर देखने में आती है, लेकिन यहां पुरुषों के कंधे का गोमोसा या गमछा सबको एक साथ जोड़े रखता है। मूल निवासियों की संस्कृति में बहुत कुछ ऐसा है, जो एक दूसरे से अलग है, पर कुछ ऐसी बातें भी हैं जो उनमें समान हैं। उनमें भाषाई भिन्नता है तो खानपान की समानता है। पहनावे में मोटे तौर पर समानता है, पर उसकी बारीकियों का अंतर आप देख सकते हैं।

बुनाई का पारंपरिक कौशल

धेमाजी की मूल निवासी महिलां बहुत अच्छी बुनाई करती है। यह पंरपरागत तरीके से पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित होती चली आ रही है। माना जाता है कि यहां की महिलाओं में प्राकृतिक रंगों के संबंध में इनका ज्ञान बहुत खास होता है। पारंपरिक रूप से कपास की खेती कर रुई तैयार करना और उस धागे से कपड़े तैयार करना इनकी दिनचर्या में शामिल है। इन कपड़ों को मेंडि कहते हैं। जैकेट, तौलिया, मफलर, चादर और शॉल शामिल है। यहां 170 से ज्यादा बुनकरों की सहकारी संस्थाएं हैं। मिसींग लोगों द्वारा बनाए गए कपड़ों की मांग देश से बाहर भी है।

तीन तरह के बीहू उत्सव होते हैं

त्योहारों में असम और अरुणाचल दोनों का प्रभाव दिखता है। बीहू तीन प्रकार से मनाया जाता है-बोहाग बीहू, कांगाली बीहू और भोगाली बीहू। बोहाग बीहू वैशाख महीने में मनाया जाने वाला त्योहार है। किसान खेतों में पहली बार हल डालते हैं। पारंपरिक पोशाक पहने युवक-युवतियां मंडली बनाकर नृत्य करते हैं। इन्हीं दिनों वे अपने मनपसंद जीवनसाथी भी चुनते हैं। यही वजह है कि धेमाजी में इस समय को विवाह का समय भी कहा जाता है। खेतों की फसल को कीड़े लग जाने पर ईश्वर को याद करते हुए कांगली बीहू मनाया जाता है। भोगाली बीहू में तिल, चावल, नारियल, गन्ना आदि फसलें तैयार होकर आ जाती हैं। यह उत्सव खुशी का होता है।

धेम खेमली से बना धेमाजी

धेमाजी का बाढ़ से पुराना नाता रहा है। मान्यता थी कि यहां की एक नदी थी जो बार-बार अपना पाट (किनारा) बदल लेती थी। इसकी वजह से किसी भी समय अप्रत्याशित रूप से बाढ़ आ जाती थी। गांववाले इसे बुरी आत्मा की साया मानते हुए कहते थे कि नदीं के लिए धल धेमली यानी खेल का मैदान है। इसका ही अपभ्रंश है धेमाजी। नाम बदल गए, समय बदल गया, लेकिन बाढ़ जस का तस है।

- 250 जिलों में शामिल, जहां देश में सबसे ज्यादा गरीबी

27 फीसद फसलों पर हमेशा रहता है बाढ़ का खतरा

3737 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है।


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