भयभीत नेताओं की मंशा पर सवाल, भारत के लिए घातक है पित्रोदा और रामगोपाल की सोच
सबूत मांगने का भी दौर चल रहा है। किससे सबूत चाहिए.? क्या कभी भी किसी भी देश की सेना ने अपने आपरेशन का सबूत दिया है क्या सबूत मांगने का चलन भी रहा है।
प्रशांत मिश्र
यह समझना बहुत मुश्किल हो गया है कि पुलवामा आतंकी घटना और उसके बाद बालाकोट पर एअरफोर्स की कार्रवाई को लेकर कुछ राजनीतिक दल और नेता इतने असहज या भयभीत क्यों हैं? सवाल इसलिए उठता है क्योंकि रुक रुक कर कुछ नेताओं की ओर से इसपर उंगली उठती है। जनता की नब्ज पहचानने का दावा करने वाले इन नेताओं को क्या देश की नब्ज का अहसास नहीं है? क्या वे पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद और पाकिस्तान के तेवर से भी अनजान हैं? या फिर वह जानबूझ कर इसे अपनी राजनीति के तहत रंग देना चाहते हैं?
होली के दिन सपा महासचिव रामगोपाल यादव का एक बयान आया और पुलवामा में शहीद हुए सीआरपीएफ जवानों को षड़यंत्र बता दिया। जाहिर तौर पर वह सरकार को दोषी ठहराने की कोशिश कर रहे थे, उस घटना के लिए जिसकी जिम्मेदारी आतंकी संगठन जैश ए मोहम्मद तत्काल ले चुका था। वहां जश्न मनाया जा रहा था। हालांकि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने यह कहकर बचाव की कोशिश की कि जवानों की शहादत पर सवाल नहीं उठाना चाहिए। लेकिन क्या पार्टी के वरिष्ठ महासचिव और रणनीतिकार राम गोपाल के बयान को एक व्यक्ति का बयान माना जा सकता है। कभी नहीं। क्या यह सवाल नहीं उठेगा कि अल्पसंख्यक वर्ग की हितैषी होने का दावा करती रही सपा के महासचिव का बयान एक खास राजनीतिक मकसद के कारण दिया गया था?
ध्यान रहे कि पहले कांग्रेस के कई नेताओं की ओर से भी सवाल उठाए गए थे। फिर थोड़ी ठिठकी। लेकिन अब 10, जनपथ करीबी और इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के मुखिया सैम पित्रोदा पाकिस्तान के साथ खड़े हो गए। उन्होंने एक बयान में सीधे तौर पर एक देश के रूप में पाकिस्तान का बचाव किया और कहा कि कुछ लोगो के कारण पूरे देश को बदनाम नहीं किया जा सकता है। घोर आश्चर्य। क्या पहले राजीव गांधी और अब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को सलाह देते रहे पित्रौदा नहीं देख रहे कि अब पूरी दुनिया मानती है कि पाकिस्तान गुनहगार है।
पाकिस्तान रंग बदल बदल कर आतंकियों को पनाह देता है, जैश के मुखिया को संरक्षण देता है, खुद पाकिस्तान के अंदर एक वर्ग पाकिस्तानी हुक्मरानों और सेना के इस रुख के विरोध में खड़ा है। लेकिन पित्रौदा साहब आहत हैं कि भारत ने बालाकोट के आतंकी ठिकाने पर क्यों हमला किया। यहां तक कि पाकिस्तान भी नहीं कह रहा है कि उसके किसी नागरिक को जान माल की हानि हुई लेकिन पित्रोदा साहब बालाकोट में सेना के पराक्रम को पाकिस्तान के नागरिकों पर हमला मानते हैं। यह सोच क्या घातक नहीं है।
सबूत मांगने का भी दौर चल रहा है। किससे सबूत चाहिए.? क्या कभी भी किसी भी देश की सेना ने अपने आपरेशन का सबूत दिया है, क्या सबूत मांगने का चलन भी रहा है। देश अपनी सेना पर भरोसा करती है। एअरचीफ मार्शल ने दावा कि बालाकोट में एअरफोर्स ने लक्ष्य को निशाना बनाया। लेकिन यहां ममता बनर्जी, रामगोपाल, कपिल सिब्बल, दिग्विजय सिंह और अब पित्रोदा को सबूत चाहिए।
हालांकि कांग्रेस ने खुद को पित्रोदा के बयान से अलग कर लिया है लेकिन क्या पित्रोदा कांग्रेस से अलग हैं। वह आज भी राहुल के सलाहकार माने जाते हैं। अगर वह देश को लेकर ऐसा व्यक्तिगत विचार भी रखते हैं तो क्या वह कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी से संबंध रखने के लायक हैं? यह सच है कि राजनीतिज्ञों पर सवाल उठाने का हक हर किसी को है। लेकिन वह सीमा तब खत्म हो जाती है जब विषय देश हित का हो।
विपक्ष की ओर से आरोप लगाया जा रहा है कि सरकार बालाकोट एयरस्ट्राइक का राजनीतिकरण कर रही है। सेना की उपलब्धि को अपने सिर बांध रही है। इसका जवाब सरकार को देना है लेकिन विपक्ष को यह जरूर बताना चाहिए कि बार बार बालाकोट पर उंगली उठाकर वह अपना भय तो नहीं छिपाना चाहते हैं। कम से कम इतना आग्रह जरूर है कि देश को भयभीत न करें।