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महबूबा की हिरासत बढ़ाने का चिदंबरम ने किया विरोध, कहा- सभी लोगों को आवाज करनी चाहिए बुलंद

चिदंबरम ने सवाल उठाया कि 61 वर्षीया पूर्व सीएम जो चौबीसों घंटे उच्च सुरक्षा घेरे में होंगी जन सुरक्षा के लिए खतरा हैं।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Sat, 01 Aug 2020 08:07 PM (IST)Updated: Sat, 01 Aug 2020 08:07 PM (IST)
महबूबा की हिरासत बढ़ाने का चिदंबरम ने किया विरोध, कहा- सभी लोगों को आवाज करनी चाहिए बुलंद
महबूबा की हिरासत बढ़ाने का चिदंबरम ने किया विरोध, कहा- सभी लोगों को आवाज करनी चाहिए बुलंद

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती समेत कई राजनीतिक नेताओं की हिरासत अवधि बढ़ाए जाने के फैसले पर कांग्रेस ने सवाल उठाते हुए केंद्र सरकार पर पब्लिक सेफ्टी एक्ट का दुरूपयोग करने का आरोप लगाया है। पूर्व गृहमंत्री कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने कहा कि महबूबा की हिरासत को लगातार बढ़ाए रखना गैरकानूनी ही नहीं बल्कि संविधान के तहत नागरिकों को मिले अधिकार पर प्रहार है।

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जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के एक साल पूरा होने से ठीक पहले महबूबा की नजरबंदी बढ़ाए जाने के फैसले पर ट्वीट करते हुए चिदंबरम ने सवाल उठाया कि 61 वर्षीया पूर्व सीएम जो चौबीसों घंटे उच्च सुरक्षा घेरे में होंगी जन सुरक्षा के लिए खतरा हैं। केंद्र और राज्य प्रशासन की शर्त मानने पर रिहा कर दिए जाने का प्रस्ताव ठुकराने के महबूबा के कदम को भी पूर्व गृहमंत्री ने सही ठहराया।

पार्टी के झंडे का रंग भी है एक वजह: चिदंबरम

उनका कहना था कि कोई भी स्वाभिमानी ऐसा करेगा। उन्होंने कहा कि महबूबा को हिरासत में रखने की एक वजह उनके पार्टी के झंडे का रंग बताया गया है जो बेहद हास्यास्पद है। अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के खिलाफ नहीं बोलने की गारंटी मांगना क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के खिलाफ नहीं है। 

चिदंबरम ने कहा कि सभी लोगों को महबूबा को रिहा करने की आवाज बुलंद करनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में कांग्रेस नेता सैफुद्दीन सोज के हिरासत में नहीं होने की बात कहने के बावजूद हकीकत में उन्हें घर में ही कैद रखने पर भी चिदंबरम ने मुखर आवाज उठाते हुए केंद्र और जम्मू-कश्मीर प्रशासन को आड़े हाथों लिया था।

गौरतलब है कि पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती समेत करीब एक दर्जन नेताओं को इसी साल फरवरी में पीएसए के तहत नजरबंद किया गया। इन सभी नेताओं को मार्च में रिहा करने की प्रक्रिया शुरु हुई। सिर्फ महबूबा ही पीएसए के तहत कैद रह गई थी। 


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