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अब आसान नहीं होगा निर्दलीय चुनाव लड़ना, देने पड़ेंगें ज्यादा प्रस्तावक; गंभीरता से इलेक्शन न लड़ने वालों को रोकने की तैयारी

भारतीय चुनाव आयोग के मुताबिक यह कदम आम चुनावों में निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए उठाया गया है। हालांकि इनमें जीतने वालों की संख्या लगातार बेहद कम होती जा रही है ।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Published: Fri, 24 Jun 2022 09:02 PM (IST)Updated: Fri, 24 Jun 2022 09:03 PM (IST)
अब आसान नहीं होगा निर्दलीय चुनाव लड़ना, देने पड़ेंगें ज्यादा प्रस्तावक; गंभीरता से इलेक्शन न लड़ने वालों को रोकने की तैयारी
साल 2019 आम चुनावों में प्रत्येक लोकसभा सीट से औसतन 15 निर्दलीय प्रत्याशी थे मैदान में

अरविंद पांडेय, नई दिल्ली। चुनाव सुधारों को लेकर तेजी से जुटा चुनाव आयोग अब चुनावों में ऐसे उम्मीदवारों पर सख्ती करना चाहता है कि जो चुनाव में सिर्फ नाम गिनाने के लिए खड़े हो जाते है लेकिन गंभीरता से चुनाव लड़ते नहीं है। इसका अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि आम चुनाव में कई ऐसे निर्दलीय प्रत्याशी भी होते है, जिन्हें सौ वोट भी नहीं मिलते है। हालांकि, इनके चुनाव लड़ने से आयोग का खर्च जरूर बढ़ जाता है। चुनाव आयोग ऐसे निर्दलीय प्रत्याशियों पर शिकंजा कसने की तैयारी में है। आयोग ने पिछले दिनों विशेषज्ञों के साथ भी रायशुमारी की है।

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सूत्रों की मानें तो अब तक जो राय बन पायी है, उसके तहत नामांकन के साथ कुछ शर्ते जोड़ी जा सकती हैं। ऐसे प्रत्याशियों को नामांकन के दौरान संबंधित क्षेत्र से कम के कम सौ प्रस्तावक देने पड़ सकते है। फिलहाल उन्हें सिर्फ दस प्रस्तावक देने होते हैं। जबकि पार्टी के प्रत्याशियों को नामांकन के समय जहां दो प्रस्तावक देने होते है।  इसके साथ ही आयोग निर्दलीय प्रत्याशियों की जमानत राशि को बढ़ाने पर विचार कर रहा है।

प्रत्याशियों को नामांकन के दौरान बतौर जमानत राशि देने होते हैं 25 हजार रुपए

अभी सभी एससी व एसटी को छोड़कर लोकसभा चुनाव लड़ने वाले सभी प्रत्याशियों को नामांकन के दौरान बतौर जमानत राशि 25 हजार रुपए देने होते है। जबकि एससी-एससी प्रत्याशियों को साढ़े बारह हजार रुपए देने होते है। आयोग ने इसके अलावा एक और प्रस्ताव पर विचार कर रहा है, जिसमें ऐसे निर्दलीयों को चुनाव से रोकना है, जो बार-बार चुनाव हार रहे है। साथ ही जमानत जब्त भी करा रहे है।

चुनाव आयोग के मुताबिक यह कदम आम चुनावों में निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए उठाया गया है। हालांकि, इनमें जीतने वालों की संख्या लगातार बेहद कम होती जा रही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2014 के आम चुनावों में कुल 8251 प्रत्याशी मैदान में थे, इनमें से 3235 प्रत्याशी ऐसे थे जो निर्दलीय मैदान में उतरे थे। यह संख्या 2019 में और बढ़ गई। वर्ष 2019 के आम चुनावों में कुल प्रत्याशियों की संख्या 8049 थी। हालांकि, यह 2014 से कम थी, लेकिन निर्दलीय प्रत्याशियों की संख्या 2014 से ज्यादा थी। वर्ष 2019 के आम चुनावों में कुल 3438 निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में थे।

खड़े हुए थे करीब 3438 निर्दलीय प्रत्याशी, जीते सिर्फ तीन

चुनाव आयोग ने यह पहल तब तेज की है, जब निर्दलीय प्रत्याशियों को मिलने वाले वोट का ग्राफ भी लगातार गिर रहा है। वर्ष 2019 के आम चुनाव में वैसे तो खड़े हुए थे करीब 3438 निर्दलीय प्रत्याशी, लेकिन जीते सिर्फ तीन ही निर्दलीय थे। यही हाल वर्ष 2014के चुनाव में भी था। उसमें भी सिर्फ तीन निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव जीते थे। हालांकि अब तक के आम चुनावों में सबसे ज्यादा निर्दलीय प्रत्याशी वर्ष 1957 के चुनाव में जीते थे। इसकी संख्या 42 थी। वहीं पहले आम चुनाव में 1952 में 37 निर्दलीय प्रत्याशी जीते थे।


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