गडकरी बोले, पर्यावरण मंत्रालय की नीतियां आउटडेटेड, अधिकारियों का रवैया बेहद निराशाजनक
केंद्रीय एमएसएमई मंत्री नितिन गडकरी ने कहा है कि वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की नीतियां बेहद पुरानी हैं और ये विकास में बाधक हैं। पढ़ें केंद्रीय मंत्री का पूरा बयान...
मुंबई, पीटीआइ। केंद्रीय एमएसएमई मंत्री नितिन गडकरी ने वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की नीतियों की जमकर आलोचना की है। उन्होंने कहा कि ये नीतियां बेहद पुरानी हैं और ये विकास में बाधक हैं। इन पुरानी नीतियों के चलते ही देश में बांस उद्योग का विकास नहीं हो पाया है। उन्होंने कहा कि पर्यावरण मंत्रालय के अधिकारियों के रवैये की वजह से ही ना तो पर्यावरण की ही रक्षा हो पा रही है और न आर्थिक विकास में कोई मदद मिल रही है। उनके मुताबिक उन्होंने प्रधानमंत्री से भी इस बारे में बात की है।
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की जिम्मेदारी भी संभाल रहे गडकरी का कहना था कि पर्यावरण मंत्रालय की उलटी-सीधी नीतियों के चलते ही एनएचएआइ अपनी सड़कों के किनारे पेड़ लगाने से हिचकता रहा है। उनके मुताबिक भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआइ) का कहना है कि जब भी सड़क चौड़ी करने की नौबत आती है, तो उसके लिए एक पेड़ काटने से पहले कई कानूनों से पार पाने की चुनौती सामने आ जाती है। इसलिए प्राधिकरण अपनी सड़कों के किनारे पेड़ तक लगाना नहीं चाहता है।
कोंकण बैंबू एंड केन डेवलपमेंट सेंटर द्वारा आयोजित एक ऑनलाइन सेमिनार में गडकरी ने कहा, 'वन व पर्यावरण मंत्रालय की नीतियां पूरी तरह अव्यावहारिक हो चुकी हैं। ऐसे कानूनों को तत्काल बाहर फेंक देना चाहिए। मंत्रालय के अधिकारी आलीशान भवनों में बैठे रहते हैं और 25 वर्षो तक बांस काटने की इजाजत नहीं देते।' उन्होंने कहा कि राजमार्गो के किनारे वर्षो तक खाली जमीन पड़ी रहती है और कोई देखने नहीं आता। लेकिन जैसे ही उस पर इकलौता बांस लगाया जााता है, वन मंत्रालय उस जगह को तत्काल संरक्षित जोन घोषित कर देता है और सड़क चौड़ी करना दुश्वार हो जाता है।
एक पुराना वाकया याद करते हुए गडकरी बोले कि एक बार एक अधिकारी से उनकी मुलाकात हुई। उन्होंने अधिकारी से पूछा कि बांस पेड़ की श्रेणी में आता है या घास की श्रेणी में। जब उन्हें बताया गया कि यह घास की श्रेणी में आता है, तो उन्होंने पलटकर पूछा कि फिर इसे काटने की इजाजत क्यों नहीं दी जाती है।