जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ चले महाभियोग, निष्पक्ष हो जांच: माजिद मेमन
जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग चलाया भी जाता है तो वह ऐसे पहले न्यायधीश नहीं होंगे। इनसे पहले कलकत्ता हाईकोर्ट के पूर्व जज सौमित्र सेन और पीडी दिनाकरन के खिलाफ भी ऐसे प्रस्ताव आ चुके हैं।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश के खिलाफ महाभियोग चलाने का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। इसकी बड़ी वजह पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के चार जजों का मीडिया में आकर चीफ जस्टिस के कामकाज पर सवाल उठाना है। उस वक्त कुछ दिनों तक सुर्खियों में रहने के बाद लग रहा था कि यह मामला शांत हो गया है, लेकिन अब इस मामले का जिन्न फिर बोतल से बाहर आता दिखाई दे रहा है। आपको बता दें कि 12 जनवरी को जस्टिस चेलामेश्वर, जस्टिस मदन लोकुर, जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस रंजन गोगोई ने मीडिया से बात कर शीर्ष अदालत के प्रशासन पर गंभीर सवाल उठाए थे।
जजों का मीडिया में आना बना बड़ी वजह
इस दौरान न्यायमूर्ति चेलामेश्वर ने यहां तक कहा कि हम नहीं चाहते कि 20 साल बाद कोई कहे कि चारों वरिष्ठतम न्यायाधीशों ने अपनी आत्मा बेच दी थी। उनका कहना था कि किसी भी देश में लोकतंत्र को बरकरार रखने के लिए यह जरूरी है कि सुप्रीम कोर्ट जैसी संस्था सही ढंग से काम करे। इन जजों द्वारा इस दौरान कही गई बातों और लगाए गए आरोपों की गूंज सदन में भी सुनाई दी थी। अब जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग लाने के प्रस्ताव का समर्थन तृणमूल कांग्रेस, एनसीपी समेत कम्युनिस्ट पार्टी भी कर रही है। महाभियोग के इस प्रस्ताव पर राज्य सभा के सांसद माजिद मेमन ने भी हस्ताक्षर किए हैं।
कांग्रेस लेकर आई थी प्रस्ताव
दैनिक जागरण से बात करते हुए उन्होंने कहा कि इस मसौदे पर उन्होंने इसलिए साइन किए क्योंकि यह कांग्रेस लेकर आई थी। उन्होंने मीडिया में चल रही उन खबरों का भी खंडन किया है जिसमें कहा गया था कि इस मसौदे पर जरूरी 50 सांसदों ने हस्ताक्षर कर दिए हैं। उनका साफतौर पर कहना था कि इस तरह का बयान उन्होंने कभी नहीं दिया है। उनका यह भी कहना था कि 12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के जजों के मीडिया में आने के बाद उन्होंने सदन में इस बाबत सरकार से सवाल भी किया था। लेकिन उस वक्त सदन चल नहीं पाया लिहाजा उनके सवाल का जवाब उन्हें नहीं मिल सका था।
जस्टिस रॉय ने भी उठाए थे सवाल
इस घटना के करीब छह सप्ताह बाद सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अमित्व रॉय ने भी अपनी रिटायरमेंट पार्टी के दौरान इसी ओर इशारा किया था। इस बातचीत में उन्होंने जस्टिस रॉय की बात को कोट करते हुए कहा कि रॉय ने अपनी स्पीच में कहा था कि हम लोग बेहद खतरनाक माहौल में काम कर रहे हैं। कुछ लोग सुप्रीम कोर्ट को हाईजैक करने की कोशिश करने में लगे हैं। मेमन का कहना था कि जस्टिस रॉय ने सुप्रीम कोर्ट के कार्यशैली और अस्तित्व को लेकर जो सवाल उठाया था वह बेहद गंभीर था। माजिद मेमन का सीधेतौर पर कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के खिलाफ यदि अंगुली उठी है तो उनके खिलाफ महाभियोग चलाया जाना चाहिए और इसकी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए जिससे सच्चाई सामने आ सके।
कांग्रेस ने झाड़ा पल्ला
हालांकि जिस कांग्रेस की बात माजिद मेमन ने महाभियोग को लेकर की है वह अब इस पूरे मामले से अपना पल्ला झाड़ चुकी है। इन सभी के बावजूद मीडिया में आई कुछ अपुष्ट खबरों में कुछ कांग्रेसी सांसदों द्वारा इस मसौदे पर हस्ताक्षर करने की बात की जा रही है। दैनिक जागरण भी इस तरह की खबरों की पुष्टि नहीं कर रहा है। माजिद मेमन ने इस पूरे मामले को लेकर एक ट्वीट भी किया है जिसमें कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट में सब कुछ सही नहीं चल रहा है। यदि इस पर सदन भी बंटा हुआ रहता है तो इससे न्याय प्रभावित होगा और जनता का भरोसा भी इस पर से उठ जाएगा।
पहला मामला नहीं
आपको यहां पर ये भी बता दें कि यदि जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग चलाया भी जाता है तो वह ऐसे पहले न्यायधीश नहीं होंगे। इनसे पहले कलकत्ता हाईकोर्ट के पूर्व जज सौमित्र सेन और पीडी दिनाकरन के खिलाफ भी ऐसे प्रस्ताव आ चुके हैं। कहा जा रहा है कि जस्टिस मिश्रा के खिलाफ महाभियोग के ड्राफ्ट को प्रशांत भूषण ने तैयार किया है। माना यह भी जा रहा है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दिल्ली में तीसरे मोर्चे के साथ इस मुद्दे पर भी चर्चा की थी।
कैसे चलता है महाभियोग
देश के मुख्य न्यायाधीश या सर्वोच्च न्यायालय के किसी जज को हटाने का अधिकार राष्ट्रपति के पास ही होता है। वह भी संसद से अनुरोध मिलने के बाद ही हटा सकते हैं। वहीं महाभियोग प्रस्ताव के लिए लोकसभा में 100 और राज्यसभा में कम से कम 50 सदस्यों का हस्ताक्षर जरूरी होता है। प्रस्ताव पारित होने के बाद पीठासीन अधिकारी की ओर से तीन जजों की समिति गठित होती है। इसमें सर्वोच्च न्यायालय के एक मौजूदा न्यायाधीश, हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और एक कानूनविद् शामिल होता है। समिति आरोपों की जांच करती है और आरोप साबित होने पर सदन में प्रस्ताव पारित होने के बाद राष्ट्रपति उसे पद से हटा देते हैं।
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