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अंतर्विरोध से सियासत के दोराहे पर नेशनल कांफ्रेंस, जद्दोजहद कर रहे फारूक अब्दुल्ला

नेकां नेताओं का एक वर्ग बदले हालात से समझौता कर पहले राज्य का दर्जा बहाल कराने और विधानसभा के गठन के मुद्दे पर आगे बढ़ने का पक्षधर है।

By Tilak RajEdited By: Published: Sat, 05 Sep 2020 10:11 PM (IST)Updated: Sun, 06 Sep 2020 07:36 AM (IST)
अंतर्विरोध से सियासत के दोराहे पर नेशनल कांफ्रेंस, जद्दोजहद कर रहे फारूक अब्दुल्ला

श्रीनगर, राज्य ब्यूरो। नेशनल कांफ्रेंस बदले सियासी माहौल में तालमेल बैठाते-बैठाते खुद असमंजस में पहुंच गई है। पार्टी का शीर्ष नेतृत्व समेत लगभग उसके सभी नेता प्रशासनिक पाबंदियों से बाहर हैं, लेकिन पार्टी के अंदर नीतिगत विचारों की दो नाव बहने लगी हैं। पार्टी का धड़ा बदले हालात के साथ आगे बढ़ना चाहता है, जबकि दूसरा धड़ा अभी भी पांच अगस्त के पहले की स्थिति पर अटका है। इन्हीं मतभेदों को पाटने के लिए पार्टी अध्यक्ष डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने खुद कमान खुद संभाल रखी है।

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फारूक का अन्य दलों से संवाद और उसके बाद गुपकार घोषणा को दोहराना अपने साथ कट्टरपंथी गुट को भी जोड़े रखने की मुहिम का ही हिस्सा था। वहीं कई बार शीर्ष नेतृत्व बीच का रास्ता खोजने की चाह भी दिखाता दिखा। यहां तक कि पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला साफ कर चुके हैं कि वह भारत के बिना किसी तरह की सियासत में अपना भविष्य नहीं देखते हैं।

नेशनल कांफ्रेंस की सियासत पर नजर रखने वालों के मुताबिक, जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के लागू होने के बाद नेशनल कांफ्रेंस में इस समय कश्मीर में पार्टी की सियासी गतिविधियों और राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के मुद्दे पर गहन मंथन चल रहा है। इस प्रक्रिया में नासिर असलम वानी और तनवीर सादिक जैसे नेता नेकां राजनीतिक एजेंडे में बदले हालात के मुताबिक, बदलाव लाने की कवायद में जुटे हैं। दूसरी तरफ आगा सैयद रुहुल्ला, मोहम्मद शफी उड़ी, अब्दुल रहीम राथर जैसे नेता अभी भी पुराने रुख पर अटके हैं।

कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ एजाज अहमद वार ने कहा कि पीडीपी की अंतर्कलह सार्वजनिक हो चुकी है। नेशनल कांफ्रेंस में भी मतभेद उभरने लगे हैं। नेकां का कट्टरपंथी वर्ग आगे बढ़ने की मुहिम को लगाम लगा रहा है। इसे नाराज करना फारूक और उमर के बस की बात नहीं है। इसलिए गुपकार घोषणा को संगठन को एकजुट रखने का एक तरीका मान सकते हैं।

...तो उमर की मर्जी से छपे थे लेख

नेकां नेताओं का एक वर्ग बदले हालात से समझौता कर पहले राज्य का दर्जा बहाल कराने और विधानसभा के गठन के मुद्दे पर आगे बढ़ने का पक्षधर है। तभी तो इसी गुट ने सुनियोजित तरीके से मार्च में स्थानीय अखबारों में लेख लिखकर बदले हालात के साथ समझौते का विचार दिया था। कहा जाता है कि यह लेख उमर की मर्जी से ही छपे थे। इन पर आगा सैयद रुहुल्ला समेत पार्टी के कुछ खास नेताओं ने एतराज जताया था। यहां तक नेकां से अलग होने की बात भी कही दी। बाद में उमर ने सफाई दी कि लेख इन नेताओं की निजी राय हैं।

पीडीपी से नेकां में आए बुखारी के सवाल

पीडीपी छोड़ नेशनल कांफ्रेंस में आए पूर्व राजस्व मंत्री बशारत बुखारी भी पूछ चुके हैं कि गुपकार घोषणा को एजेंडा बनाया जाना तो ठीक है, लेकिन इसे हासिल करने का तरीका क्या होगा। वह यहां तक कह चुके हैं कि अगर पार्टी नेता कुछ रियायतों का दरवाजा बनाकर आगे बढऩा चाहते हैं, यह मंजूर नहीं है।


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