गांधी परिवार से इतर देखने की नरेश गुजराल की सलाह कांग्रेस को लगी बेहद नागवार
राजनीति की मौजूदा चुनौतियों को देखते हुए 2024 के चुनाव में कांग्रेस को एक खास परिवार से इतर देखने की अकाली दल नेता नरेश गुजराल की सलाह पार्टी को बेहद नागवार लगी है। मगर सियासी वजहों से पार्टी इसे तूल न देना ही मुनासिब मान रही है।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। राजनीति की मौजूदा चुनौतियों को देखते हुए 2024 के चुनाव में कांग्रेस को एक खास परिवार से इतर देखने की अकाली दल नेता नरेश गुजराल की सलाह पार्टी को बेहद नागवार लगी है। मगर सियासी वजहों से पार्टी इसे तूल न देना ही मुनासिब मान रही है। सोमवार रात कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल के डिनर में विपक्षी दलों के बड़े नेताओं का जमावड़ा लगा था।
कपिल सिब्बल के डिनर में था विपक्षी नेताओं का जमावड़ा
इस जमावड़े में अकाली दल के नरेश गुजराल ने कहा कि 2024 के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देने के लिए विपक्ष एकजुट हो। एकजुटता के लिए उन्होंने लगे हाथ मौजूद कांग्रेस नेताओं को एक परिवार से अलग हटकर सियासी दृष्टिकोण अपनाने की सलाह दे डाली। सूत्रों ने बताया कि डिनर के दौरान अकाली नेता ने अगले लोकसभा चुनाव में विपक्षी एकजुटता और नेतृत्व के लिहाज से कांग्रेस की महत्वपूर्ण भूमिका के पहलुओं की बात उठाते हुए कहा कि पार्टी को परिवार की परिधि से बाहर निकलकर देखने की जरूरत है। गुजराल की यह टिप्पणी सीधे तौर पर कांग्रेस में गांधी परिवार के नेतृत्व की मौजूदा समय में राजनीतिक स्वीकारोक्ति की चुनौतियों की ओर साफ इशारा करती है।
अकाली नेता गुजराल ने कांग्रेस को दी सलाह तो मौजूद नेताओं में छा गई खामोशी
सूत्रों के अनुसार गुजराल ने जब यह टिप्पणी की तो इस डिनर वार्ता में अचानक कुछ पलों के लिए खामोशी छा गई और किसी अन्य विपक्षी नेता ने इस बारे में कोई टीका-टिप्पणी करने से परहेज किया। वहीं डिनर में मौजूद कांग्रेस नेताओं की ओर से भी गुजराल के बयान पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई। डिनर टेबल पर हालांकि इसके साथ ही 2024 के चुनाव के मद्देनजर विपक्षी एकजुटता से लेकर राजनीतिक पहलुओं पर खुलकर चर्चा की गई।
सिब्बल ने किया था राजनीतिक मित्रों के साथ विपक्षी दलों के बड़े नेताओं को आमंत्रित किया
कपिल सिब्बल ने अपने जन्म दिन के दो दिन बाद अपने राजनीतिक मित्रों के साथ विपक्षी दलों के बड़े नेताओं को आमंत्रित किया था। कांग्रेस के जी 23 समूह के नेताओं गुलाम नबी आजाद, भूपेंद्र सिंह हुड्डा, मनीष तिवारी, पृथ्वीराज चव्हाण और पी.चिदंबरम के साथ राजद प्रमुख लालू प्रसाद, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, एनसीपी प्रमुख शरद पवार, टीएमसी के डेरेक ओ ब्रायन व कल्याण बनर्जी, नेशनल कांफ्रेंस के उमर अब्दुल्ला, द्रमुक के त्रिची शिवा आदि जैसे विपक्षी दिग्गज इसमें शरीक हुए।
विपक्षी खेमे से बाहर रहे चार दलों को किया आमंत्रित
खास बात यह भी रही कि सिब्बल के सियासी डिनर में विपक्षी खेमे से अब तक बाहर रहे अकाली दल के गुजराल के अलावा बीजेडी के पिनाकी मिश्रा, वाइएसआर कांग्रेस और टीआरएस के प्रतिनिधि भी शामिल हुए। ये चारों दल संसद के बाहर ही नहीं भीतर भी विपक्ष के खेमे से दूरी रखते रहे हैं और ऐसे में 2024 में विपक्षी नेताओं की मंत्रणा की मेज पर इनका आना दूरगामी राजनीति के लिहाज से मायने रखता है।
कांग्रेस ने दी प्रतिक्रिया
कांग्रेस ने हालांकि डिनर में हुई जुटान और चर्चाओं पर किसी तरह की प्रतिक्रिया से परहेज किया, मगर पार्टी नेताओं ने अनौपचारिक बातचीत में कहा कि अकाली दल से पंजाब में कांग्रेस की सीधी लड़ाई है। अगले छह महीने में चुनाव हैं। इसी तरह तेलंगाना में टीआरएस से और ओडिशा में बीजेडी उसकी मुख्य विरोधी है और इस लिहाज से इन दलों के साथ साझेदारी की गुंजाइश ही नहीं है।
उन्होंने कहा कि ओबीसी आरक्षण को लेकर जो भी लोग बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हैं, वे यह भूल रहे हैं कि जब वे सत्ता में थे तो उन्होंने इसके लिए कुछ नहीं किया। कांग्रेस ने तो मंडल कमीशन की सिफारिशों को लंबे समय तक रोककर रखा था। बाद में जब भाजपा के समर्थन वाली सरकार केंद्र में आई, तो इसे लागू किया गया था। इसी तरह ओबीसी क्रीमीलेयर की सीमा बढ़ाने का फैसला अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार ने लिया। इसके बाद मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद ओबीसी कमीशन को संवैधानिक दर्जा दिया। मेडिकल में दाखिले से जुड़ी नीट परीक्षा के आल इंडिया कोटे में ओबीसी आरक्षण लागू करने का काम किया।
ओबीसी समुदाय का बड़ा वोट बैंक हर किसी के लिए अहम
ओबीसी समुदाय का बड़ा वोट बैंक हर किसी पार्टी के लिए अहम है। इसीलिए कांग्रेस नेता राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ विपक्षी खेमे के तमाम नेताओं की सोमवार सुबह संयुक्त बैठक हुई तो इसमें एक मत से हंगामे को विराम देकर विधेयक का समर्थन करने का फैसला हुआ। बैठक में तृणमूल कांग्रेस, शिवसेना, द्रमुक, राजद, सपा, माकपा, भाकपा, आप, एनसीपी आदि दलों के नेता शामिल थे।