Move to Jagran APP

Ayodhya Case: नरसिम्हा राव ने खारिज कर दी थी गृह मंत्रालय की रिपोर्ट, नहीं तो बच जाता विवादित ढांचा

उस समय केंद्रीय गृह सचिव रहे माधव गोडबोले ने कहा कि 1992 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अनुच्छेद 356 लागू कर इस ढांचे को कब्जे में लेने की एक आकस्मिक योजना तैयार की थी।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Sun, 03 Nov 2019 08:52 PM (IST)Updated: Mon, 04 Nov 2019 01:58 PM (IST)
Ayodhya Case: नरसिम्हा राव ने खारिज कर दी थी गृह मंत्रालय की रिपोर्ट, नहीं तो बच जाता विवादित ढांचा
Ayodhya Case: नरसिम्हा राव ने खारिज कर दी थी गृह मंत्रालय की रिपोर्ट, नहीं तो बच जाता विवादित ढांचा

 ई दिल्ली, प्रेट्र।  अयोध्या में विवादित ढांचे को ढहाये जाने के समय केंद्रीय गृह सचिव रहे माधव गोडबोले ने दावा किया है कि यदि कार्रवाई करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति होती और तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने इस घटना से पहले गृह मंत्रालय द्वारा तैयार योजना खारिज नहीं की होती, तो इसे बचा लिया गया होता। गोडबोले ने अयोध्या भूमि विवाद पर अपनी पुस्तक में दावा किया है कि यदि प्रधानमंत्री के स्तर पर राजनीतिक पहल की जाती, तो यह घटना टाली जा सकती थी।

loksabha election banner

पुस्तक में विवादित ढांचा ढहाये जाने से पहले और उसके बाद के घटनाक्रमों की स्पष्ट तस्वीर पेश करने का प्रयास करते हुए पूर्व गृह सचिव ने कहा कि बतौर प्रधानमंत्री राव ने इस महत्वपूर्ण विषय में सर्वाधिक अहम भूमिका निभायी थी। ‘द बाबरी मस्जिद-राममंदिर डायलेमा : एन एसिड टेस्ट फॉर इंडियाज कॉन्स्टीट्यूशन' नाम की इस पुस्तक में लेखक ने दावा किया है कि जब यह मस्जिद गंभीर खतरे में थी, तब राव के अलावा पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और वीपी सिंह भी समय पर कार्रवाई करने में नाकाम रहे थे।

गोडबोले ने कहा कि इस विवाद से संबद्ध पक्षों में किसी के भी कठोर रुख अपनाने से पहले राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में विवाद के हल के लिए कुछ व्यावहारिक समाधान सुझाये गये थे, लेकिन कोई कदम नहीं उठाया गया। उन्होंने कहा कि बाबरी मस्जिद और उसके आसपास के विशेष क्षेत्र को केंद्र सरकार के हवाले किये जाने से संबद्ध अध्यादेश जारी किये जाने के बाद वीपी सिंह अपने रुख पर दृढ़ बने रहे।

गोडबोले ने कहा कि 1992 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अनुच्छेद 356 लागू कर इस ढांचे को कब्जे में लेने की एक 'आकस्मिक योजना' तैयार की थी। कानून मंत्रालय ने इसके लिए कैबिनेट नोट को भी मंजूरी दे दी थी। मैंने 'आकस्मिक योजना' चार नवंबर को कैबिनेट सचिव, प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव, प्रधानमंत्री के वरिष्ठ सलाहकार, गृहमंत्री और प्रधानमंत्री को सौंप दी। योजना में इस बात पर जोर दिया गया था कि कारसेवा प्रारंभ होने की प्रस्तावित तारीख से काफी पहले कार्रवाई की जाए, ताकि कार्रवाई के वक्त बड़ी संख्या में कारसेवक और भीड़ की मौजूदगी ना हो। साथ ही अर्धसैनिक बलों की कार्रवाई से पहले राज्य में अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाए, लेकिन राव ने महसूस किया कि आकस्मिक योजना व्यावहारिक नहीं है। उन्होंने इसे खारिज कर दिया और सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार द्वारा दिए गए हलफनामे को वरीयता दी।

उन्होंने कहा कि सबसे बड़ा दोष राज्य सरकार था, जो ढांचे की सुरक्षा के अपने वादों को पूरा करने में जान बूझकर विफल रही। उन्होंने तत्कालीन राज्यपाल बी सत्य नारायण रेड्डी को भी जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा, न्यायपालिका भी विवादित भूमि के मालिकाना हक पर 1950 से लंबित वाद पर फैसला सुनाने में देरी के लिए जिम्मेदार थी, जबकि संबद्ध पक्षों ने सुनवाई तेजी से पूरी करने के लिए बार-बार अनुरोध किया।

बता दें कि विवादित ढांचा ढहाए जाने की घटना के बाद गोडबोले ने मार्च, 1993 में भारतीय प्रशासनिक सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृति ले ली थी। उस वक्त वह केंद्रीय गृह सचिव और सचिव (न्याय) थे।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.