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New MV Act: ट्रैफिक नियम तोड़ने पर हो रही कड़ी कार्रवाई, जानें- भारी-भरकम जुर्माने के पीछे सरकार की मंशा

जिस साल भारत ने घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए थे देश में सालाना साढ़े चार लाख सड़क दुर्घटनाओं में डेढ़ लाख लोगों की मौत हुई। चार वर्ष बाद भी स्थिति में विशेष सुधार नहीं हुआ।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sun, 15 Sep 2019 09:44 PM (IST)Updated: Mon, 16 Sep 2019 12:17 AM (IST)
New MV Act: ट्रैफिक नियम तोड़ने पर हो रही कड़ी कार्रवाई, जानें- भारी-भरकम जुर्माने के पीछे सरकार की मंशा
New MV Act: ट्रैफिक नियम तोड़ने पर हो रही कड़ी कार्रवाई, जानें- भारी-भरकम जुर्माने के पीछे सरकार की मंशा

संजय सिंह, नई दिल्ली। सड़क दुर्घटना में मौत की डरावनी संख्या कम करने के लिए सरकार ने मोटर वाहन संशोधन एक्ट के जुर्माने वाले प्रावधानों को फटाफट लागू तो कर दिया, लेकिन यह भूल गयी कि सिर्फ इतना नाकाफी है। खुद मोटर एक्ट में इससे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण प्रावधानों का जिक्र है। यही वजह है कि तमाम नेकनीयती के बावजूद इस कानून को लागू करने में व्यावहारिक मुश्किलें पेश आ रही हैं, और जनता ही नहीं राज्य सरकारें भी इसके खिलाफ गोलबंद हो गई हैं।

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नवंबर, 2015 में ब्राजील में विश्व स्वास्थ्य संगठन [ डब्लूएचओ] द्वारा सड़क सुरक्षा पर वैश्विक सम्मेलन का आयोजन किया गया था। इसमें भारत समेत डब्लूएचओ के सदस्य देशों के 2200 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था।

संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में आयोजित इस सम्मेलन में 2011-20 के दौरान सदस्य देशों के लिए सड़क सुरक्षा संबंधी योजनाओं और कार्यक्रमों के कार्यान्वयन का रोडमैप पेश किया गया था। 'ब्राजीलिया डिक्लेरेशन' नाम से जारी सम्मेलन के घोषणापत्र पर भारत समेत तमाम देशों ने हस्ताक्षर किए थे। इसमें भारत को 2020 तक सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों को आधा करने का लक्ष्य दिया गया था।

सम्मेलन के बाद सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने घोषणापत्र के लक्ष्यों पर काम करना शुरू कर दिया था। इसके लिए फरवरी, 2016 में राजस्थान के परिवहन मंत्री यूनुस खान की अध्यक्षता में 18 राज्यों व 4 केंद्रशासित प्रदेशों के परिवहन मंत्रियों की सदस्यता वाले मंत्रिसमूह (जीओएम) का गठन किया गया।

जीओएम को सड़क हादसे कम करने के साथ-साथ परिवहन व्यवस्था में सुधार के उपाय सुझाने थे। बाद में इसी जीओएम की रिपोर्ट के आधार पर मोटर वाहन संशोधन विधेयक, 2016 की रूपरेखा तैयार हुई, जिसे उसी वर्ष 9 को लोकसभा में पेश कर दिया गया था।

इस बिल में यातायात नियमों के उल्लंघन पर जुर्मानों की राशि में भारी बढ़ोतरी से पहले दुर्घटनाओं पर अंकुश के लिए जरूरी कई तकनीकी व प्रशासनिक सुधारों की आवश्यकता बताई गई थी। उदाहरण के लिए इलेक्ट्रानिक एंफोर्समेंट, ड्राइविंग लाइसेंस व वाहन फिटनेस सर्टिफिकेट की प्रणाली में सुधार तथा दुर्घटना पीडि़तों के मददगारों नागरिकों की सुरक्षा के कदम। इसके अलावा सूचना प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल, दुर्घटना पीडि़तों को तुरंत (एक घंटे या गोल्डेन ऑवर के भीतर) अस्पताल पहुंचाने तथा सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन के प्रावधान भी किए गए थे।

लोकसभा से बिल को सांसद मुकुल राय की अध्यक्षता वाली संसद की स्थायी समिति के सुपुर्द कर दिया गया था। चूंकि 31 सदस्यीय समिति ने, जिसमें राज्यसभा के 10 और लोकसभा के 21 सांसद सदस्य थे, 8 फरवरी, 2017 को अपनी रिपोर्ट दी थी, लिहाजा विधेयक पुन: पेश करने से पहले इसके नाम में 2017 जोडऩा पड़ा।

राज्यसभा तक पहुंचते पहुंचते 2019 के आम चुनावों का ऐलान हो गया। अगस्त में प्रचंड बहुमत से आई नई सरकार ने इसे मोटर वाहन संशोधन विधेयक, 2019 के नाम से पहले लोकसभा और फिर राज्यसभा से पारित कराया।

वैसे तो संशोधित मोटर कानून में भी स्थायी समिति के ज्यादातर सुझावों को समाहित कर लिया गया है। लेकिन जुर्माने वाले प्रावधानों को इसलिए तुरंत लागू किया गया ताकि सड़क हादसों और उनसे होने वाली मौतों में जल्द से जल्द कमी लाकर डब्लूएचओ के लक्ष्य को यथासंभव पूरा किया जा सके।

ये अलग बात है कि इस चक्कर में राज्यों को तैयारी के लिए समुचित समय मिला। पारित होने के 22 दिन के भीतर 1 सितंबर से जुर्माने वाले सभी 63 उपबंध लागू कर दिए गए। इससे जनता में हाहाकार मच गया और राज्य सरकारों के कान खड़े हो गए।

जिस साल भारत ने घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए थे, देश में सालाना साढ़े चार लाख सड़क दुर्घटनाओं में डेढ़ लाख लोगों की मौत हुई। लोग मारे जा रहे थे। आज चार वर्ष बाद भी स्थिति में कोई विशेष सुधार नहीं हुआ है।

हालांकि 2017 में मौतों में 4 फीसद की कमी आई थी, लेकिन तब हादसों की रिपोर्टिंग प्रणाली में बदलाव के कारण ऐसा हुआ था। क्योंकि उसके बाद 2018 में फिर स्थिति जस की तस हो गई। इसलिए सरकार के पास सख्ती के अलावा कोई चारा नहीं था।

सरकार का मानना था कि महज भारी जुर्मानों की बदौलत वो अगले चार-छह महीनों में मौतों को लगभग आधे पर ला सकती है। क्योंकि इलेक्ट्रानिक इंफोर्समेंट, आइटी समाधानों व परिवहन सुधारों में समय लगेगा, लेकिन राज्यों ने उसके मंसूबों पर पानी फेर दिया है। 


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