Ayodhya Land Dispute Case: मुस्लिम पक्ष के वकील को धमकी भरे पत्र का जिक्र
Ayodhya Land Dispute Case में 17वें दिन सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्षकारों की दलीलें सुनींं। सुनवाई की शुरुआत में मुस्लिम पक्ष के वकील को मिले धमकी भरे पत्र का जिक्र किया गया...
नई दिल्ली, ब्यूरो/एजेंसी। Ayodhya Land Dispute Case में सुप्रीम कोर्ट सोमवार 17वें दिन सुनवाई कर रहा है। अदालत में जैसे ही सुनवाई शुरू हुई। सबसे पहले मुस्लिम पक्ष के वकील को मिले धमकी भरे पत्र का जिक्र हुआ जिस पर मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा कि वह इस पर कल सुनवाई करेंगे। इससे पहले सभी हिंदू पक्षों 16 दिनों में अपनी दलीलें पेश कीं। हिंदू पक्षकारों में निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान शामिल हैं।
सुनवाई की शुरुआत में कपिल सिब्बल ने वकील राजीव धवन को मिले धमकी भरे पत्र का उल्लेख किया। उन्होंने इस पर जल्द सुनवाई की मांग की लेकिन मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि इस पर कल विचार किया जाएगा। फिलहाल, सुन्नी वक्फ बोर्ड के वरिष्ठ वकील राजीव धवन हिंदू पक्षकारों के वकीलों की तरफ से पेश की गई बहसों का सिलसिलेवार जवाब दे रहे हैं...
दरअसल, प्रमुख याचिकाकर्ता एम. सिद्दीक तथा ऑल इंडिया सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने एक पूर्व सरकारी अधिकारी के खिलाफ शुक्रवार को अवमानना याचिका दायर की थी। इसमें उन्होंने आरोप लगाया गया था कि सेवानिवृत्त शिक्षा अधिकारी एन. षणमुगम से 14 अगस्त, 2019 को उन्हें एक पत्र मिला था। इस पत्र में उन्हें मुस्लिम पक्षकारों की ओर से पेश होने की वजह से धमकी दी गई थी।
धवन की आपत्ति कर दी थी खारिज
मामले की सुनवाई की शुरुआत में मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन को झटका लगा था। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के चौथे दिन सोमवार से शुक्रवार तक हर दिन सुनवाई करने का फैसला किया था। पांच दिन सुनवाई की बात पर मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने आपत्ति जताई थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया दिया था। राजीव धवन ने शुरूआत में अदालत को बताया था कि वह अपनी बहस 20 दिनों में पूरी करेंगे।
17 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे सीजेआइ
इस तरह यदि मामले की रोजाना सुनवाई जारी रही तो सितंबर के अंत तक खत्म हो जाएगी। इस तरह से देश के इस सबसे चर्चित मामले में अपना फैसला सुनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट को एक महीने से ज्यादा वक्त मिल सकेगा। सनद रहे कि मामले की सुनवाई कर रही पीठ की अध्यक्षता कर रहे प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई 17 नवंबर को सेवानिवृत्त होने वाले हैं।
रामलला विराजमान की दलीलें
ज्ञात हो कि रामलला विराजमान के वकील सीएस वैद्यनाथन (CS Vaidyanathan) ने अपनी दलीलों में कहा था कि कानून की तय स्थिति में भगवान हमेशा नाबालिग होते हैं और नाबालिग की संपत्ति नहीं छीनी जा सकती है, ना ही उस पर प्रतिकूल कब्जे का दावा किया जा सकता है। उक्त भूमि केवल भगवान की है। चूंकि वह भगवान राम का जन्मस्थान है, इसलिए कोई वहां मस्जिद बना कर उस पर कब्जे का दावा नहीं कर सकता है।
निर्मोही अखाड़ा से पूछा था सवाल
निर्मोही अखाड़ा के वकील सुशील कुमार जैन ने अखाड़ा को विवादित स्थल पर रामलला विराजमान का एकमात्र आधिकारिक उपासक होने का दावा किया था। इस संविधान पीठ ने कहा कि जब आप यह कहते हैं कि आप उपासक हैं तो आपका संपत्ति पर मालिकाना हक नहीं रह जाता है। अदालत ने कहा कि आप साफ बताएं कि आप जन्मस्थान को देवता और कानूनी व्यक्ति मानते हैं कि नहीं। इस पर निर्मोही अखाड़ा के वकील जैन ने कहा कि वह उन्हें कानूनी व्यक्ति मानने से इन्कार नहीं कर रहे। वह सिर्फ पूजा प्रबंधन का अधिकार और कब्जा मांग रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि अयोध्या मामले में मध्यस्थता की कोशिश नाकाम होने पर मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान बेंच ने रोजाना सुनवाई का फैसला किया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2010 में राम जन्मभूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था। इसमें एक हिस्सा भगवान रामलला विराजमान, दूसरा निर्मोही अखाड़ा व तीसरा हिस्सा सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को देने का आदेश था।
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