सांसद हैं कि मानते ही नहीं, बिना कोरम ही चला सदन, पीएम मोदी की नसीहत नहीं कर रही काम
लोकसभा में तो माननीयों की गैर-मौजूदगी का आलम यह था कि शुक्रवार को निजी विधायी कामकाज के दौरान सदन में कोरम तक नहीं था।
संजय मिश्र, नई दिल्ली। संसद में जनता की मुखर आवाज बनने की दुहाई देने वाले सांसद हैं कि सदन में बैठते ही नहीं। मुद्दों पर चर्चा-बहस के सवाल तो दूर माननीय हैं कि संसद में अपने लिए तय वक्त के दौरान भी सदन में मौजूद रहने की जहमत नहीं उठाते। हकीकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि शुक्रवार को सांसदों के निजी विधायी कार्य के लिए तय समय के दौरान दोनों सदनों के मौजूदा कुल 781 सांसदों में से महज 58 सांसद ही सदन में उपस्थित थे।
बिना कोरम के ही चली लोकसभा की कार्यवाही
लोकसभा में तो माननीयों की गैर-मौजूदगी का आलम यह था कि शुक्रवार को निजी विधायी कामकाज के दौरान सदन में कोरम तक नहीं था। लोकसभा में इस दौरान मौजूदा कुल 543 में से करीब 25 सांसद मौजूद थे। जबकि नियमानुसार कार्यवाही चलाने के लिए सदन में कम से कम 10 फीसद सदस्यों यानि कम से कम 54 सांसदों की उपस्थिति जरूरी है।
मोदी का असर मंत्रियों पर तो पड़ा, लेकिन सांसद बेखबर
इस लिहाज से सदन में सदस्यों की कम संख्या पर कोई एक सदस्य भी सवाल उठाता तो कोरम के अभाव में सदन की कार्यवाही नियमों के हिसाब से स्थगित हो जाती। हालांकि दोनों सदनों में सदन से नदारद रहने पर दो दिन पहले केंद्रीय मंत्रियों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से लगाई गई फटकार का असर जरूर दिखा। मंत्री तय रोस्टर के हिसाब से मौजूद थे, सांसद गायब थे।
भाजपा के लोकसभा में 303 सदस्यों में से बमुश्किल डेढ़ दर्जन सांसद थे
कई सांसद तो अपने सूचीबद्ध विधेयक को पेश करने तक के लिए मौजूद नहीं थे। दिलचस्प बात यह थी कि लोकसभा में वोटिंग को अनिवार्य बनाने के भाजपा के राजनीतिक एजेंडे से जुड़े निजी विधेयक पर चर्चा हो रही थी। मगर भाजपा के सदन में 303 सदस्यों में से बमुश्किल डेढ़ दर्जन सदस्य ही उपस्थित थे।
पीएम मोदी और सोनिया गांधी की नसीहतें भी नहीं कर रहीं काम
संसद सत्र की अवधि बढ़ाने की दुहाई देने वाले माननीयों की बैठक से गायब रहने की यह स्थिति तब है जब पीएम मोदी हर सत्र में कई मौकों पर अपने सांसदों को सदन में मौजूद रहने की नसीहत देते रहे हैं। इसी तरह कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी हर सत्र में सरकार की घेरेबंदी के लिए अपने सांसदों की सदन में मौजूदगी पर जोर देती रही हैं। मगर माननीय हैं कि अपने-अपने नेतृत्व की नसीहतों की भी परवाह नहीं करते।
राज्यसभा की भी स्थिति बहुत खराब रही
राज्यसभा में सांसदों के निजी विधायी कार्य की कार्यवाही शुरू हुई तो सदन में कोरम भी नहीं था। उपसभापति हरिवंश को कुछ मिनटों तक कोरम की घंटी बजवानी पड़ी और बड़ी बमुश्किल से कोरम पूरा हुआ। तब इस दौरान राज्यसभा के मौजूदा 238 में से 33 सांसद सदन में भाजपा सरकार और पीएम मोदी के दिल के सबसे करीब के एजेंडे स्वच्छता से जुड़े मसले को कानूनी जामा पहनाने की जरूरत पर भाजपा के वरिष्ठ सांसद प्रभात झा के पेश निजी विधेयक पर चर्चा चल रही थी।
संसद के मौजूदा 781 में दोनों सदनों को मिलाकर केवल 58 सदस्य रहे मौजूद
राज्यसभा में अभी सात सीट रिक्त हैं जबकि लोकसभा के केवल दो नामित सदस्यों की सीट खाली है। इस तरह दोनों सदनों में कुल 790 में से वर्तमान में 781 सदस्य हैं। प्रभात झा ने इस विधेयक के जरिये स्वच्छता को नागरिकों का बुनियादी कर्तव्य बनाने की मांग की है।
राज्यसभा में विपक्षी सांसदों की गैर-मौजूदगी
विपक्षी सांसदों की गैर-मौजूदगी को दरकिनार भी कर दिया जाए तो पीएम मोदी के स्वच्छता के मिशन को जन आंदोलन बनाने में भाजपा सांसदों की अनुपस्थिति काबिले गौर रही। वैसे राजद सांसद मनोज झा ने सदन में सदस्यों की बेहद कम संख्या में मौजूदगी की चर्चा कर उपसभापति से इसका संज्ञान लेने की बात जरूर कही।
सांसदों के निजी विधायी कार्य वाधित
संसद सत्र के दौरान हर हफ्ते शुक्रवार को दोपहर 3.30 बजे से दोनों सदनों में सांसदों के निजी विधायी कार्य का समय तय है और सांसद इसमें अपने निजी प्रस्तावों के जरिये देश या जनहित में नये कानून बनाने से लेकर संविधान में संशोधन की मांग कर सकते हैं। सांसदों के कई निजी विधेयकों पर विगत में सरकारों ने कानून भी बनाया है मगर संसदीय व्यवस्था में अपने सबसे अहम अधिकार को लेकर सांसदों का यह रुख उन्हें सवालों के कठघरे में तो खड़ा करता ही है।