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MP Politics: मप्र में उपचुनाव वाले क्षेत्रों को नेताओं के प्रभाव से मुक्त कराने में जुटी कांग्रेस

मंत्री तुलसी सिलावट के प्रभाव वाले इंदौर में कांग्रेस को सिंधिया समर्थकों की पहचान करने में मुश्किल आई तो शहर व ग्रामीण की कमेटियों को ही भंग करना पड़ा।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Thu, 25 Jun 2020 06:10 AM (IST)Updated: Thu, 25 Jun 2020 06:10 AM (IST)
MP Politics:  मप्र में उपचुनाव वाले क्षेत्रों को नेताओं के प्रभाव से मुक्त कराने में जुटी कांग्रेस
MP Politics: मप्र में उपचुनाव वाले क्षेत्रों को नेताओं के प्रभाव से मुक्त कराने में जुटी कांग्रेस

भोपाल, जेएनएन। मध्य प्रदेश में कांग्रेस संगठन से ज्यादा नेता हावी रहे हैं। यही वजह है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके साथ पार्टी छोड़ने वाले नेताओं के क्षेत्रों में कांग्रेस को संगठन की मजबूती के लिए करीब दो महीने से मशक्कत करना पड़ रही है। उपचुनाव वाले विधानसभा क्षेत्रों की बैठकों में भी ग्वालियर-चंबल संभाग हो या फिर बुंदेलखंड का सागर, मालवा के इंदौर व मंदसौर और भोपाल संभाग के रायसेन-विदिशा जिले, सभी में संगठन की मजबूती की बात की जा रही है। खास बात यह है कि बैठकों में स्थानीय नेताओं की शिकायतों पर जिला कांग्रेस कमेटियों को बदला भी जा रहा है।

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दिग्गजों के नाम से ही पार्टी की पहचान रही

मध्य प्रदेश में हमेशा कांग्रेस संगठन के नाम पर क्षेत्र में दिग्गजों के नाम से ही पार्टी की पहचान रही है। ग्वालियर-चंबल और मालवा के कुछ क्षेत्र में कांग्रेस का मतलब ज्योतिरादित्य सिंधिया और सिंधिया का मतलब कांग्रेस रहा है। इसी तरह बुंदेलखंड व भोपाल-होशंगाबाद क्षेत्र में दिग्विजय सिंह, भोपाल-होशंगाबाद व महाकोशल के कुछ क्षेत्र में कांग्रेस की पहचान सुरेश पचौरी के रूप में रही तो विंध्य में अर्जुन सिंह व श्रीनिवास तिवारी के बाद कुछ हद तक अजय सिंह के नाम से पहचान मानी जाने लगी है।

कमोबेश कांग्रेस की ऐसी स्थिति रतलाम-झाबुआ और मंदसौर में है, जहां कांतिलाल भूरिया व मीनाक्षी नटराजन का नाम है। वहीं, छिंदवाड़ा व महाकोशल के जिलों में कमल नाथ ही कांग्रेस माने जाते हैं। पूर्व कांग्रेस नेता गोविंद सिंह राजपूत व संजय पाठक जैसे नेता जब तक कांग्रेस में रहे तो उनके क्षेत्रों में कांग्रेस का मतलब वे ही रहे। कांग्रेस को हुआ नुकसान कांग्रेस को क्षेत्रों के संगठन में पार्टी से ज्यादा नेताओं को तव्वजो मिलने का नुकसान सिंधिया और उनके समर्थकों के एक साथ पार्टी छोड़ने पर उठाना पड़ा है।

 कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं के क्षेत्र में कांग्रेस को करनी पड़ रही मशक्कत

ग्वालियर-चंबल संभाग में 16 सीटों पर उपचुनाव होने वाले हैं, लेकिन वहां कांग्रेस अभी तक स्थानीय स्तर पर बनी कांग्रेस मतलब सिंधिया वाली छवि को साफ नहीं कर पाई है। यही वजह है कि ग्वालियर हो या अशोक नगर, कांग्रेस ने जिला कमेटियों से सिंधिया समर्थकों की संगठन से विदाई कर दी है। मंत्री तुलसी सिलावट के प्रभाव वाले इंदौर में कांग्रेस को सिंधिया समर्थकों की पहचान करने में मुश्किल आई तो शहर व ग्रामीण की कमेटियों को ही भंग करना पड़ा।

सिंधिया तो ठीक है, उनके समर्थक मंत्री गोविंद सिंह राजपूत के प्रभाव वाले सागर जिले में उनकी पहचान को बेअसर नहीं किया जा सका है। राजपूत ने अपने परिवार व समर्थकों को संगठन में बैठा रखा था, जिन्हें कांग्रेस ने हटा दिया। मगर आज भी जिला कांग्रेस के कई पदाधिकारी राजपूत के साथ घूमते नजर आते हैं। कटनी में भी आई थी दिक्कत जब संजय पाठक ने कांग्रेस छोड़ी थी तो कटनी में हर एक नेता को संदेह की दृष्टि से देखा गया। इससे वहां संगठन को मजबूत करने में पार्टी को बेहद मुश्किलें आई थीं।


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