MP Political Crisis: कांग्रेस को अपनी बुनियाद दरकने का अहसास, चहेतों को रेवड़ी की तरह बांटे पद
मप्र में विभिन्न आयोगों से लेकर महत्वपूर्ण पदों पर जिस तरह हुकूमत धड़ाधड़ नियुक्तियां कर रही है उससे सरकार की बेचैनी जाहिर हो गई है।
आनन्द राय, भोपाल। कमलनाथ सरकार के अल्पमत में आने का डंका तो विपक्षी भाजपा कब से बजा ही रही है लेकिन, कांग्रेस को भी अपनी बुनियाद दरकने का अहसास हो गया है। विभिन्न आयोगों से लेकर महत्वपूर्ण पदों पर जिस तरह हुकूमत धड़ाधड़ नियुक्तियां कर रही है उससे उसकी बेचैनी जाहिर हो गई है। एक मार्च के बाद से सरकार ने मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव, डीजीपी और कलेक्टर समेत 100 से अधिक महत्वपूर्ण तबादले कर दिए हैं। सरकार की इस जल्दबाजी पर हमला बोलते हुए भाजपा ने राज्यपाल से नियुक्तियों और तबादलों को रद करने की मांग उठा दी है।
कमलनाथ सरकार के अस्तित्व में आने के बाद से ही महत्वपूर्ण पदों पर तैनाती को लेकर कयास के दौर चलते रहे लेकिन, सरकार उस ओर से आंख मूंदे थी। राज्यसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने के साथ ही सरकार पर संकट के बादल छाने लगे तो पैंतरेबाजी भी खूब हुई। ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में शामिल होने और उनके 22 समर्थक विधायकों के विद्रोह के बाद कांग्रेस सरकार संकट में आ गई।
चहेतों को रेवड़ी की तरह बांटे पद
ऐसे में सरकार ने खाली पड़े पदों को अपने कुछ खास चहेतों को रेवड़ी की तरह बांटना शुरू कर दिया। मंगलवार को सरकार ने पूर्व सांसद गजेंद्र सिंह राजूखेड़ी को मध्य प्रदेश अनुसूचित जाति जनजाति आयोग का अध्यक्ष और प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता जेपी धनोपिया को राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष बनाया तो भाजपा की भृकुटी तन गई। इसके पहले सरकार ने सोमवार को ही कांग्रेस मीडिया विभाग अध्यक्ष शोभा ओझा को राज्य महिला आयोग का अध्यक्ष बनाया था।
इतना ही नहीं पंडित कुंजीलाल दुबे राष्ट्रीय संसदीय विद्यापीठ में संचालक डॉ़ प्रतिमा यादव की प्रतिनियुक्ति में एक वर्ष की वृद्धि करने के साथ ही अभय तिवारी को मध्य प्रदेश युवा आयोग के अध्यक्ष का ओहदा दे दिया था। विश्वविद्यालयों में कई रजिस्ट्रार और डिप्टी रजिस्ट्रारों की नियुक्ति की तो नौकरशाही में भी कई फेरबदल किए गए। आरोप है कि नौकरशाही में फेरबदल में चेहरों और चहेतों पर विशेष फोकस किया गया।
एक मार्च के बाद के फैसले असंवैधानिक:विजयवर्गीय
प्रदेश भाजपा के मुख्य प्रवक्ता दीपक विजयवर्गीय ने दो टूक कहा कि एक मार्च के बाद कमलनाथ सरकार द्वारा किये जा रहे फैसले असंवैधानिक हैं। जो मुख्यमंत्री विधानसभा का सामना करने की स्थिति में नहीं है और जिसकी सरकार अल्पमत में आ गई है, उस सरकार को नियुक्ति और तबादलों का अधिकार नहीं है। विजयवर्गीय के कथन के उलट सरकारी प्रवक्ता की दलील है कि ये नियुक्तियां और तबादले रटीन प्रक्रिया है।