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Molding of relief on Ayodhya: फैसला देते समय कोर्ट बहुधर्म और बहुसांस्कृतिक मूल्यों को कायम रखे

सुप्रीम कोर्ट को अयोध्या राम जन्मभूमि पर अनुच्छेद 142 में प्राप्त विशेष शक्तियों का इस्तेमाल कर देश हित में फैसला देना चाहिए।li

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sun, 20 Oct 2019 08:01 PM (IST)Updated: Sun, 20 Oct 2019 09:45 PM (IST)
Molding of relief on Ayodhya: फैसला देते समय कोर्ट बहुधर्म और बहुसांस्कृतिक मूल्यों को कायम रखे
Molding of relief on Ayodhya: फैसला देते समय कोर्ट बहुधर्म और बहुसांस्कृतिक मूल्यों को कायम रखे

माला दीक्षित, नई दिल्ली। अयोध्या राम जन्मभूमि पर मालिकाना हक का दावा कर रहे छह मुस्लिम पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट में मोल्डिंग ऑफ रिलीफ यानी वैकल्पिक राहत पर पक्ष रखते हुए कहा है कि फैसला कुछ भी हो इसका असर भावी पीढि़यों और देश की राजनीति पर पड़ेगा। कोर्ट विवाद का हल निकालते समय बहुधर्म और बहु सांस्कृतिक मूल्यों को कायम रखे। मुस्लिम पक्ष ने कोर्ट को संविधान का प्रहरी बताते हुए कहा है कि वैकल्पिक राहत पर विचार करते समय इसका भी अवश्य ख्याल रखा जाए कि आने वाली पीढि़यां इस फैसले को कैसे देखेंगी।

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मुस्लिम पक्ष की सुप्रीम कोर्ट से वैकल्पिक राहत की मांग

मुस्लिम पक्ष के छह अपीलकर्ताओं की ओर से शनिवार को सील बंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट में वैकल्पिक राहत की मांग दी गई थी। मुस्लिम पक्ष की ओर से सील बंद लिफाफे में वैकल्पिक राहत दाखिल करने पर हिंदू पक्ष ने ऐतराज जताया था और इस बावत सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेट्री जनरल को पत्र भी दिया था। जिसके बाद मुस्लिम पक्ष ने रविवार को हिंदू पक्ष के वकीलों को वैकल्पिक राहत का कोर्ट में दिया गया ब्योरा उपलब्ध कराया। सुन्नी वक्फ बोर्ड की एक अपील में वकील शकील अहमद सहित कुल पांच वकीलों एजाज मकबूल, एमआर शमशाद, इरशाद अहमद और फुजैल अहमद की ओर से वैकल्पिक राहत की मांग पर स्टेटमेंट जारी किया गया है।

कोर्ट के फैसले का असर भावी पीढि़यों और देश की राजनीति पर पड़ेगा

जिसमें मुस्लिम पक्षकारो ने कोर्ट से वैकल्पिक राहत पर कहा है कि इस मामले में कोर्ट का फैसला जो भी लेकिन उसका भावी पीढि़यों पर असर होगा। इसके अलावा देश की राजनीति भी प्रभावित होगी। फैसले का उन लाखों नागरिकों के मन पर असर पड़ेगा जो उन संवैधानिक मूल्यों में विश्वास करते हैं, जिसे 26 जनवरी 1950 को भारत को पूर्ण गणतंत्र घोषित करते वक्त अपनाया गया था।

वैकल्पिक राहत तय करना कोर्ट की जिम्मेदारी है- मुस्लिम पक्षकार

मुस्लिम पक्षकारों का कहना है कि इस फैसले के दूरगामी परिणाम होंगे इसलिए कोर्ट वैकल्पिक राहत को इस तरीके से तय करे जिसमें वे संवैधानिक मूल्य परिलक्षित हों जिन्हें देश ने अपनाया है। उनका कहना है कि कोर्ट विवाद का हल निकालते समय देश के बहुधर्म और बहुसांस्कृतिक मूल्यों को कायम रखे। कोर्ट संविधान का प्रहरी है और वैकल्पिक राहत तय करना उसकी जिम्मेदारी है। ऐसा करते समय कोर्ट इस बात पर अवश्य विचार करे कि भविष्य की पीढि़यां इस फैसले को कैसे देखेंगी।

हिंदू-मुस्लिम पक्षों ने वैकल्पिक राहत पर अपना पक्ष कोर्ट में दाखिल किया

सुप्रीम कोर्ट ने गत 16 अक्टूबर को मामले में फैसला सुरक्षित रखते वक्त सभी पक्षकारों को तीन दिन के भीतर वैकल्पिक राहत के बारे में लिखित नोट दाखिल करने की छूट दी थी। जिसके बाद हिंदू-मुस्लिम सभी पक्षों ने शनिवार को वैकल्पिक राहत पर अपना पक्ष कोर्ट में दाखिल किया था।

देश हित में फैसला दे कोर्ट- सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड

मुस्लिम पक्ष में सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की एक अपील में वकील सैयद शाहिद रिजवी ने अलग से वैकल्पिक राहत दाखिल कर कहा है कि कोर्ट अनुच्छेद 142 में प्राप्त विशेष शक्तियों का इस्तेमाल कर देश हित में फैसला दे। जबकि सुन्नी वक्फ बोर्ड की दूसरी अपील में वकील शकील अहमद सईद ने बाकी मुस्लिम पक्षों के साथ उपरोक्त नोट ही कोर्ट को दिया है।

पूरी जमीन रामलला विराजमान को मिलनी चाहिए- हिंदू पक्ष

हिंदू पक्ष की ओर से दाखिल वैकल्पिक राहत में पूरी जमीन रामलला विराजमान को देने की बात कही है और कोर्ट से विशेषाधिकार का इस्तेमाल कर पूर्ण न्याय करने की गुहार लगाई गई है।

हिन्दू महासभा ने कहा, मुस्लिम पक्ष की मांग का कोई मायने नहीं 

अयोध्या विवाद में फैसला देते वक्त देश की बहुधर्म और बहुसंस्कृति को ध्यान में रखने की मुस्लिम पक्ष की गुहार पर प्रतिक्रिया देते हुए हिन्दू महासभा के वकील हरि शंकर जैन ने कहा कि इन सारी बातों का कोई कानूनी मायने नहीं है। उन्होंने कहा कि कोर्ट के समक्ष मुद्दा यह है कि राम जन्मभूमि का मालिक कौन है और कोर्ट उसी पर फैसला देगा।

हिन्दू महासभा का मानना है कि सारी जमीन के मालिक भगवान रामलला हैं और उनके सिवा किसी और को मालिक नहीं घोषित किया जा सकता। मोल्डिंग आफ रिलीफ यानी वैकल्पिक राहत का इस मामले में सिर्फ इतना अर्थ है कि रामलला को मालिक घोषित करने के बाद वहां का प्रशासन और प्रबंधन कौन देखे। इस संबंध में या तो कोर्ट स्वयं प्रशासन और प्रबंधन के लिए कोई ट्रस्ट बना दे या फिर रिलीजियस इंडोवमेंट एक्ट 1890 की धारा 5 के तहत वह केन्द्र सरकार को ऐसा करने को कहे। इसके बाद केन्द्र सरकार वहां के बेहतर प्रबंधन और प्रशासन के लिए कोई ट्रस्ट गठित कर दे।


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