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मोहन भागवत बोले, सबको साथ लेकर चलने के स्वभाव का नाम है हिंदुत्व

मोहन भागवत ने साफ किया कि हिंदुत्व का विचार कोई आरएसएस का खोजा हुआ विचार नहीं है बल्कि यह सनातन विचार है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Tue, 18 Sep 2018 09:52 PM (IST)Updated: Tue, 18 Sep 2018 10:00 PM (IST)
मोहन भागवत बोले, सबको साथ लेकर चलने के स्वभाव का नाम है हिंदुत्व
मोहन भागवत बोले, सबको साथ लेकर चलने के स्वभाव का नाम है हिंदुत्व

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सरसंघचालक ने हिंदुत्व की विचाराधारा को लेकर संघ के आलोचकों को करारा जवाब दिया है। उनके अनुसार आरएसएस का हिंदुत्व किसी का विरोध नहीं करता है, बल्कि सभी को समाहित करने वाला है। यह भारत की सनातन संस्कृति का हिस्सा है, जो वसुधैव कुटुंबकम की बात करता है। उन्होंने कहा कि सभी का सम्मान करने वाली और साथ लेकर चलने वाली इस हिंदुत्व की इस विचारधारा की विश्व को सख्त जरूरत है।

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सनातन विचार है हिंदुत्व 
मोहन भागवत ने साफ किया कि हिंदुत्व का विचार कोई आरएसएस का खोजा हुआ विचार नहीं है बल्कि यह सनातन विचार है। सबका माना हुआ सर्वसम्मत विचार है। उनके अनुसार 'धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो (अधर्मी का नहीं), प्राणियों में सद्भावना हो। यह वैश्विक विचार है। इस तरह हिंदू धर्म सिर्फ हिंदुओं के लिए नहीं बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए है।' उन्होंने कहा कि हमने कभी विश्व मानवता से खुद को अलग नहीं माना।

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सामूहिक मूल्य बना हिंदुत्व  
मोहन भागवत ने कहा कि हिंदू शब्द विदेशी है और पहली बार इसका प्रयोग नौवीं शताब्दी में हुआ था। लेकिन आम जनमानस ने इस प्रयोग बाहरी आक्रमणकारियों के दमन के दौरान शुरू किया था। लेकिन इसके पहले हजारों सालों से भारत में विभिन्न संप्रदाय और मत-मतांतर के लोग रहते आए थे। इस तरह मध्यकाल में भारत से निकले सभी संप्रदायों का सामूहिक मूल्य हिंदुत्व बनाया।

विविधता के सम्मान के लिए पूरी जगह 
उनके अनुसार इस हिंदुत्व में सभी विविधता के सम्मान के लिए पूरी जगह है। भारत में विकसित सभी संप्रदायों का मूल एक ही है कि सबका भला हो। यह किसी के विरोध में नहीं है। उन्होंने कहा कि 'सबको साथ लेकर चलने के स्वाभाव का नाम ही हिंदुत्व है।' लेकिन धर्म के अंग्रेजी अनुवाद रिलीजन से इसकी तुलना करने के कारण कई गलतफहमी पैदा हो गई। धर्म शब्द भारत की देन है, किसी दूसरे देश में यह नहीं मिलता है।

देश में रहने वाले सभी मतावलंबियों के लिए जगह  
मोहन भागवत ने आरएसएस के हिंदुत्व को समावेशी बताते हुए कहा कि इसमें देश में रहने वाले सभी मतावलंबियों के लिए जगह है। संघ का मूल उद्देश्य हिंदुत्व में सभी धर्मावलंबियों को शामिल करने की है, जिसमें मुस्लिम और इसाई भी शामिल है। लेकिन जैसे परीक्षा में छात्र सबसे पहले सरल प्रश्नपत्र का उत्तर लिखता है। वैसे ही संघ पहले उन लोगों को जोड़ने का काम कर रहा है, जो खुद को हिंदू मानते हैं। लेकिन सभी को इसमें जोड़े बिना संघ का काम खत्म नहीं होगा।

अपने धर्म का पालन कर भी चल सकते हैं हिंदुत्व के रास्ते   
उन्होंने कहा कि कोई इसाई या मुस्लिम अपने धार्मिक क्रियाकलापों का पूरी तरह पालन करते हुए भी हिंदुत्व के रास्ते पर चल सकता है। इसमें सभी विविधताओं का सम्मान होगा और लेकिन यह हमारे भेद का कारण नहीं बनेगा। उन्होंने कहा कि 'ये सभी लोग अपने हैं, भारत के हैं और सबका संगठन हिंदू संगठन है। हमारे हिंदुत्व की संकल्पना यही है।'

हिंदुत्व के तीन आधार 
उन्होंने बताया कि इस हिंदुत्व के तीन आधार है देशभक्ति, पूर्वज गौरव और संस्कृति। ये तीनों भारत में रहने वाले सभी धर्मावलंबियों के लिए साझा हैं। भारत में रहने वाले जो भी हैं, सब एक पहचान के रूप में है, जिन्हें हिंदू कहा जाता है। यही सच्चाई है। किसी के कहने या नहीं कहने से कोई फर्क नहीं पड़ता है।

जापान सा जज्बे का किया उल्‍लेख   
अनुशासन, आचरण और वसुधैव कुटुंबकम का संघ का फार्मूला देश निर्माण में हर नागरिक की भूमिका चाहता है। भागवत ने जापान का उदाहरण देते हुए कहा कि देश के लिए सबकी जरूरत है। भागवत ने इंक्रेडिबल जापान नाम की पुस्तक का उल्लेख किया।
उन्होंने कहा जापान के उत्थान के लिए जो निष्कर्ष थे उसमें आर्थिक कारणों से ज्यादा नागरिकों के जज्बे का उल्लेख था। उनके अनुसार जापान के लोग अनुशासित हैं। जब कोई जापानी अपना कोई काम शुरू करते हैं तो कम से कम पूरे गांव की भलाई का ध्यान रखते हैं। वहां के लोग देश के विकास के लिए किसी भी तरह की चुनौती स्वीकार करते हैं। वह देश के लिए हर त्याग करने के लिए तैयार होते हैं। यही जज्बा भारतीयों में पैदा होना चाहिए। हिंदुत्व भी यही सिखाता है।


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