मिशन 2019: उत्तराखंड में किसानों के इर्द-गिर्द घूमेगी सियासत
देश के अन्य हिस्सों के मुकाबले उत्तराखंड में भले ही किसानों की तादाद कम हो, लेकिन लोकसभा चुनाव तक यहां भी सियासत उनके इर्द-गिर्द घूमेगी।
देहरादून, केदार दत्त। देश के अन्य हिस्सों के मुकाबले उत्तराखंड में भले ही किसानों की तादाद कम हो, लेकिन लोकसभा चुनाव तक यहां भी सियासत उनके इर्द-गिर्द घूमेगी। इस कड़ी में दोनों प्रमुख सियासी दल भाजपा और कांग्रेस प्रदेश के 9.12 लाख किसानों को साधने की कोशिशों में जुट गए हैं। साफ है कि अन्नदाता की चिंता को उनके चुनावी एजेंडे में जगह मिलेगी। भाजपा ने केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा खेती-किसानी को तवज्जो देने के साथ ही कृषकों की आय दोगुना करने को चल रही मुहिम को सियासत के केंद्र में रखा है। वहीं, कांग्रेस ने किसानों की अनदेखी को मुद्दा बनाना शुरू कर दिया है। सूरतेहाल, आने वाले दिनों में दोनों दलों के बीच किसानों को अपनी ओर खींचने के लिए दिलचस्प जंग देखने को मिल सकती है।
विषम भूगोल वाले उत्तराखंड में खेती पहाड़ी, घाटी व मैदानी क्षेत्रों में विभक्त है। मैदानी क्षेत्रों में किसानों की अच्छी-खासी संख्या है। खासकर ऊधमसिंहनगर और हरिद्वार जिलों में। इसके अलावा देहरादून, नैनीताल व पौड़ी जिलों के मैदानी इलाकों में भी इनकी ठीक ठाक तादाद है। पर्वतीय जिलों में इनकी संख्या कुछ कम है। अलबत्ता, किसान राज्य की सियासत के लिए बड़े प्रेशर ग्रुप के रूप में सामने हैं।
इस सबको देखते हुए लोकसभा चुनाव के आलोक में सियासी दलों ने अन्नदाता पर डोरे डालने शुरू कर दिए हैं। इस कड़ी में भाजपा की बात करें तो वह केंद्र और राज्य सरकार द्वारा किसानों को तवज्जो देने की बात को खूब प्रचारित कर रही है। इसके साथ ही किसानों की आय दोगुना करने के मद्देनजर उन्हें दो फीसद ब्याज पर ऋण, कृषि उपकरणों के ब्याजमुक्त ऋण, खाद-बीज की उपलब्धता, पारंपरिक खेती के साथ ही वैकल्पिक खेती, नकदी फसलें, फलोत्पादन को बढ़ावा देने जैसे कदमों को उछाल रही है। उसका कहना है कि किसानों की जितनी चिंता भाजपा सरकारों ने की है, वह अभी तक किसी ने नहीं की।
दूसरी तरफ कांग्रेस भी किसानों के मसले को उठाने में पीछे नहीं है। उसका सीधा आरोप यही है कि मौजूदा सरकारें किसानों की सुध नहीं ले रही हैं। कांग्रेस का ये भी कहना है कि फसल का वाजिब दाम न मिलने के कारण कर्ज के बोझ तले दबे किसान आत्महंता जैसा कदम उठाने को मजबूर हो रहे हैं। लिहाजा, वह लोस चुनाव में इसे बड़ा मुद्दा बनाएगी।
साफ है कि किसानों को सियासत के केंद्र में रखने को दोनों दलों ने बिसात बिछा दी है। उनकी कोशिश है कि वे अधिक से अधिक संख्या में किसानों तक पहुंचें। इस दरम्यान अपने-अपने दावों व तर्कों के आधार पर यह दर्शाने का पुरजोर प्रयास होगा कि वे किसानों के सच्चे खैरख्वाह हैं। ऐसे में आने वाले दिनों में किसानों को साधने की जंग दिलचस्प रहने वाली है। किसान क्या फैसला लेते हैं तो यह वक्त ही बताएगा, लेकिन चुनाव के बहाने ही सही अगले दो-तीन माह वे सियासत के केंद्र में अवश्य रहेंगे।