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माइक्रोवेव स्पेक्ट्रम आवंटन में गड़बड़ी के आरोप आधारहीन : मनोज सिन्हा

संचार मंत्री ने स्पेक्ट्रम कीमत के विलंब से भुगतान की कंपनियों को छूट देने के सरकार के निर्णय का भी बचाव किया।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Published: Wed, 16 Jan 2019 09:42 PM (IST)Updated: Wed, 16 Jan 2019 09:42 PM (IST)
माइक्रोवेव स्पेक्ट्रम आवंटन में गड़बड़ी के आरोप आधारहीन : मनोज सिन्हा
माइक्रोवेव स्पेक्ट्रम आवंटन में गड़बड़ी के आरोप आधारहीन : मनोज सिन्हा

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। संचार मंत्री मनोज सिन्हा ने माइक्रोवेव स्पेक्ट्रम के आवंटन में घोटाले के आरोपों को सिरे खारिज करते हुए इन्हें पूर्णतया आधारहीन, तथ्यहीन और राजनीति से प्रेरित बताया है। सिन्हा ने कहा कि (2जी मामले में) सुप्रीमकोर्ट के 2012 के निर्णय में 'पहले आओ, पहले पाओ' के आधार पर बैकहॉल स्पेक्ट्रम के आबंटन पर किसी तरह की रोक नहीं लगाई गई थी।

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उन्होंने कहा, 'सुप्रीमकोर्ट का आदेश एक्सेस स्पेक्ट्रम पर था, न कि बैकहॉल स्पेक्ट्रम पर। उसके बाद एक नहीं, बल्कि सभी वास्तविक सेवा प्रदाताओं को प्रशासनिक आधार पर माइक्रोवेव स्पेक्ट्रम दिए गए। यह स्पेक्ट्रम का कोई आवंटन नहीं हुआ था। बल्कि ये प्रशासनिक आधार पर दिए गए थे। वस्तुत: बैकहॉल स्पेक्ट्रम का आज तक कोई आवंटन नहीं हुआ है। दूरसंचार नियामक ट्राई ने भी इसकी सिफारिश की थी।'

इस सवाल पर कि क्या इस प्रकार के स्पेक्ट्रम के आवंटन का कोई निर्णय हुआ है, सिन्हा ने कहा कि 'अब तक न तो कोई निर्णय हुआ है और न ही हम इस पर विचार या अध्ययन कर रहे हैं। इस बारे में बाकायदा एहतियाती प्रावधान हैं कि जब भी सरकार निर्णय लेगी तो स्पेक्ट्रम प्राप्त करने वालों को पिछली तारीख से पूरा भुगतान करना होगा।'

संचार मंत्री ने स्पेक्ट्रम कीमत के विलंब से भुगतान की कंपनियों को छूट देने के सरकार के निर्णय का भी बचाव किया। उन्होंने कहा भुगतान की अवधि को 16 साल तक बढ़ाए जाने के परिणामस्वरूप सरकार को 74,446 करोड़ रुपये की अतिरिक्त रकम हासिल होगी। 'अंतरमंत्रालयी समूह ने मसले पर विचार करने के बाद शुद्ध मौजूदा कीमत पर विचार का सुझाव दिया था। दूरसंचार विभाग और दूरसंचार आयोग ने भी इसे सही माना। इसलिए पर्याप्त सोच विचार के बाद उद्योग को इस तरीके से तत्काल राहत देने का फैसला किया गया।'

गौरतलब है कि पिछले दिनो पेश रिपोर्ट में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने कहा है कि दूरसंचार विभाग ने 2015 में केवल एक कंपनी को 'पहले आओ पहले पाओ' के आधार पर माइक्रोवेव आवंटन कर 2012 के सुप्रीमकोर्ट के निर्णय तथा दूरसंचार विभाग की समिति की सिफारिशों का उल्लंघन किया। जबकि उस समय माइक्रोवेव स्पेक्ट्रम आवंटन के 101 अन्य आवेदन विचाराधीन थे। रिपोर्ट में कैग ने स्पेक्ट्रम प्रबंधन में गड़बड़ी के कई और उदाहरण भी दिए हैं तथा इनसे सरकारी खजाने को 560 करोड़ के नुकसान का आकलन पेश किया है। कांग्रेस ने इसी रिपोर्ट के आधार पर पिछले दिनो मामले की जांच की मांग की थी।


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