Maharashtra Political Crisis: विधायकों की बगावत के बीच महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे ने छोड़ा सरकारी आवास, अटकलों का बाजार गर्म
शिवसेना ने आज साफ कर दिया है कि उद्धव ठाकरे फिलहाल मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं देंगे। यदि अवसर मिला तो वह विधानसभा में अपना बहुमत सिद्ध करके दिखाएंगे। लेकिन उद्धव ठाकरे ने विधायकों से भावुक होकर यह भी कहा कि जो जाना चाहे जा सकता है।
ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। अपने ही विधायकों की बगावत के कारण राजनीतिक संकट में घिरे शिवसेना अध्यक्ष और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे परिवार समेत बुधवार रात सरकारी बंगले 'वर्षा' से अपने निजी आवास 'मातोश्री' में चले गए। वहां से निकलने से पहले उद्धव ने वहां मौजूद विधायकों से भावुक होकर कहा कि जो जाना चाहे, जा सकता है।इस दौरान भारी संख्या में शिवसैनिक मातोश्री के बाहर मौजूद रहे। इस दौरान समर्थकों ने 'उद्धव तुम आगे बढ़ो, हम तुम्हारे साथ हैं' का नारा लगाया। इस दौरान उनके साथ महाराष्ट्र के मंत्री आदित्य ठाकरे, उनकी पत्नी रश्मि ठाकरे और बेटे तेजस ठाकरे भी साथ रहे।
इससे पहले उद्धव ने शिवसैनिकों से भावनात्मक अपील की और कहा कि वह न सिर्फ मुख्यमंत्री पद, बल्कि शिवसेना प्रमुख का पद भी छोड़ने को तैयार हैं, लेकिन हमारा कोई शिवसैनिक खुद मेरे सामने आकर मांगे तो। मेरे मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद अगर कोई शिवसैनिक मुख्यमंत्री बनता है तो मुझे खुशी होगी। बाद में पार्टी प्रवक्ता संजय राउत ने स्पष्ट किया कि उद्धव मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं देंगे। अवसर मिला तो वह विधानसभा में बहुमत सिद्ध करके दिखाएंगे।
#WATCH Maharashtra CM Uddhav Thackeray along with his family leaves from his official residence, amid chants of "Uddhav tum aage badho, hum tumhare saath hain" from his supporters.#Mumbai pic.twitter.com/m3KBziToV6— ANI (@ANI) June 22, 2022
बुधवार को दिनभर चली राजनीतिक उठापटक
देर शाम संजय राउत ने स्पष्ट किया कि किसी ने भी मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पद से इस्तीफा देने की सलाह नहीं दी है। राउत ने राकांपा अध्यक्ष शरद पवार, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ और बालासाहब थोराट द्वारा उद्धव ठाकरे को दिए गए समर्थन पर उनका आभार भी व्यक्त किया। राउत ने कहा कि मुख्यमंत्री को पद का मोह नहीं है। इसलिए वह अब अपने निजी आवास 'मातोश्री' जा रहे हैं।
इस बयान के कुछ घंटे पहले राउत ने खुद ही ट्वीट किया था कि महाराष्ट्र का राजनीतिक घटनाक्रम विधानसभा भंग करने की ओर बढ़ रहा है। राउत का यह ट्वीट और उद्धव का सरकारी आवास छोड़ना इस बात का संकेत है कि शिवसेना को सत्ता जाने का आभास हो गया है। लेकिन वह इस्तीफा देकर सत्ता नहीं छोड़ना चाहते। साथ ही वह विधानसभा में अपना बहुमत सिद्ध करने का मौका भी नहीं छोड़ना चाहते। यानी वह संघर्ष करते हुए दिखना चाहते हैं। राउत ने एक ट्वीट में इसका संकेत भी दिया, उन्होंने लिखा, 'हां, संघर्ष करेंगे।' उन्होंने प्रेस से बातचीत में भी कहा कि हम लड़ने वाले लोग हैं। अंतिम विजय सत्य की ही होगी।
विधानसभा उपाध्यक्ष के भरोसे संघर्ष का की रणनीति
शिवसेना की बदली रणनीति का कारण विधानसभा उपाध्यक्ष राकांपा का होना है। फिलहाल विधानसभा में अध्यक्ष का पद रिक्त है। महाविकास अघाड़ी (एमवीए) मान रहा है कि यदि विधानसभा में बहुमत सिद्ध करने की नौबत आई तो उपाध्यक्ष कई तकनीकी कारण बताकर भाजपा और एकनाथ शिंदे के मंसूबों पर पानी फेर सकते हैं या नई सरकार बनने में अधिक से अधिक विलंब कर सकते हैं। गुवाहाटी में एकनाथ शिंदे के साथ अभी भी शिवसेना के इतने विधायक नजर नहीं आ रहे हैं कि वे दलबदल कानून का दायरे से बाहर हो गए हों और अपने समर्थक विधायकों का एक अलग गुट बनाकर उसे ही असली शिवसेना साबित कर सकें।
कई विधायकों के लौटने से बंधी उम्मीद
एकनाथ शिंदे के साथ 20 जून की रात सूरत गए विधायकों में से कुछ वापस उद्धव खेमे में लौट चुके हैं। इसलिए भी उद्धव को उम्मीद है कि अगर उनकी भावनात्मक अपील काम कर गई व शिंदे के खेमे में गए कुछ और विधायक वापस आ सके तो शिंदे को दलबदल कानून का दायरा तोड़ने में मुश्किल हो सकती है।
कहा, मुझे जबरन कुर्सी पर बैठने का मोह नहीं
राजनीतिक संकट शुरू होने के बाद पहली बार फेसबुक लाइव के जरिये प्रदेश की जनता से भावनात्मक अपील में उद्धव ने कहा कि पद लेने के पीछे मेरा कोई स्वार्थ नहीं है। राजनीति कोई भी मोड़ ले सकती है। मुझे आश्चर्य है कि कांग्रेस और राकांपा में से कोई कहता कि मुझे मुख्यमंत्री पद पर आप नहीं चाहिए, तो मैं समझ सकता था। लेकिन बुधवार को कमलनाथ और शरद पवार ने मुझे फोन किया और कहा कि हम आपके साथ हैं। दूसरी ओर मेरे ही लोग मुझे मुख्यमंत्री पद पर नहीं चाहते, तो मैं क्या कर सकता हूं।
उन्होंने बगावत का बिगुल बजा रहे एकनाथ शिंदे का नाम लिए बिना कहा कि यही बात आप मेरे सामने आकर कहते तो क्या हर्ज था। इसके लिए सूरत जाने की क्या जरूरत थी? यदि आप चाहते हैं कि मैं मुख्यमंत्री न रहूं तो ठीक है। इनमें से एक भी विधायक मेरे सामने आकर कहे तो मैं आज ही इस्तीफा देने के लिए तैयार हूं। मुझे जबरन कुर्सी पर बैठने का कोई मोह नहीं है, लेकिन आपको सामने आकर कहना होगा। मेरे मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद अगर कोई शिवसैनिक मुख्यमंत्री बनता है तो मुझे खुशी होगी।
खुद मुख्यमंत्री बनने पर दिया स्पष्टीकरण
ढाई साल पहले राज्य में महाविकास अघाड़ी सरकार बनने की प्रक्रिया शुरू होने के बाद माना जा रहा था कि उद्धव ठाकरे अपने पिता दिवंगत बालासाहब ठाकरे की परंपरा का पालन करते हुए किसी अन्य शिवसेना नेता को ही मुख्यमंत्री बनाएंगे। चूंकि पिछली फड़नवीस सरकार में शिवसेना के शामिल होने से पहले उद्धव ने एकनाथ शिंदे को नेता विरोधी दल की जिम्मेदारी सौंपी थी और सरकार में शामिल होने के बाद उन्हें सार्वजनिक निर्माण विभाग जैसा महत्वपूर्ण विभाग भी सौंपा था, इसलिए मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शिंदे को आगे माना जा रहा था। बाद में मुख्यमंत्री खुद उद्धव ही बने।
इसका स्पष्टीकरण देते हुए उद्धव ने कहा कि पिछला विधानसभा चुनाव मैंने कांग्रेस और राकांपा के विरुद्ध लड़ा था। लेकिन उन्हीं के साथ हम सरकार में गए। शरद पवार ने मुझसे आग्रह किया था कि उनकी पार्टी और कांग्रेस में कई वरिष्ठ नेता हैं, उन्हें आपका नेतृत्व ही संभाल सकता है इसलिए मैंने मुख्यमंत्री बनना स्वीकार किया।
शिवसेना और हिंदुत्व एक ही सिक्के के दो पहलू
बागी शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे ने वर्तमान शिवसेना पर हिंदुत्व के एजेंडे से हटने का आरोप लगाया है। बुधवार को सांसद भावना गवली ने भी इसी ओर इशारा करते हुए एक पत्र उद्धव ठाकरे को लिखा है। उद्धव ने अपने संबोधन में हिंदुत्व के मुद्दे पर स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि ये सवाल उठाए जा रहे हैं कि यह बालासाहब ठाकरे वाली शिवसेना है या नहीं? यह हिंदुत्व पर चलने वाली शिवसेना है या नहीं?
ये सवाल उठाने वाले लोगों को समझ लेना चाहिए कि शिवसेना और हिंदुत्व एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इन्हें अलग करके नहीं देखा जा सकता। हिंदुत्व के मुद्दे पर विधानसभा में बात करने वाला मैं अकेला मुख्यमंत्री था। हम हिंदुत्व के मुद्दे को लेकर अयोध्या गए। कुछ दिन पहले आदित्य ठाकरे (उद्धव के पुत्र) भी कई विधायकों, सांसदों एवं शिवसैनिकों के साथ अयोध्या जाकर आए। बालासाहब के विचारों को हम ही आगे लेकर जा रहे हैं।
विधायकों से नहीं मिलने की बात मानी
उद्धव पर ये आरोप भी लग रहे हैं कि वह अपने ही विधायकों से नहीं मिलते थे। विधायकों से उनका संपर्क नहीं हो पाता था। इस आरोप को स्वीकार करते हुए उद्धव ने कहा, यह सही है कि हम लोगों से ज्यादा मिलजुल नहीं पा रहे थे। सरकार बनने के बाद पहले दो साल कोविड के कारण ऐसा हुआ, उसके बाद मेरा आपरेशन होने के कारण लोगों से मिलना संभव नहीं हो सका। लेकिन आपरेशन के बाद हमने अस्पताल के कमरे में ही कैबिनेट की बैठक भी की थी।
सुप्रिया के साथ जाकर शरद पवार ने की उद्धव से मुलाकात
उद्धव के जनता को संबोधन के बाद राकांपा प्रमुख शरद पवार ने अपनी बेटी एवं सांसद सुप्रिया सुले के साथ मुख्यमंत्री से उनके आधिकारिक आवास 'वर्षा' पर मुलाकात की। इससे पहले दिन में उद्धव की रिपोर्ट कोविड पाजिटिव आई थी।
बुधवार को ये भी रहा घटनाक्रम
- शिवसेना ने अपने सभी विधायकों से शाम पांच बजे मुंबई में विधायक दल की बैठक में भाग लेने को कहा।
- सूरत से लौटे शिवसेना विधायक नितिन देशमुख ने दावा किया कि उन्हें जबरन अस्पताल में भर्ती कराया गया।
- महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे कोविड से संक्रमित मिले।
- कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ अपनी पार्टी के विधायकों से मिलने मुंबई पहुंचे।
- कमलनाथ ने उद्धव से फोन पर बात की और राकांपा प्रमुख शरद पवार से मुलाकात की।
- महाराष्ट्र कांग्रेस के विधायक दल की बैठक हुई। कमलनाथ ने कहा- उनकी पार्टी एकजुट, उनके विधायक बिकाऊ नहीं।
- शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे का गुवाहाटी पहुंचने पर दावा, 40 विधायक उनके साथ।
क्या होगा भावनात्मक अपील का असर
महाविकास आघाड़ी मान रही है कि यदि विधानसभा में बहुमत सिद्ध करने की नौबत आई तो उपाध्यक्ष कई तकनीकी कारण बताकर भाजपा और एकनाथ शिंदे के मंसूबों पर पानी फेर सकते हैं, या नई सरकार बनने में अधिक से अधिक विलंब कर सकते हैं। क्योंकि गुवाहाटी में एकनाथ शिंदे के साथ अभी भी सिर्फ शिवसेना के इतने विधायक नजर नहीं आ रहे हैं कि वे दलबदल कानून का दायरा से बाहर हो गए हों, और अपने समर्थक विधायकों का एक अलग गुट बनाकर उसे ही असली शिवसेना साबित कर सकें। एकनाथ शिंदे के साथ 20 जून की रात सूरत गए विधायकों में से कुछ वापस उद्धव के खेमे में लौट चुके हैं। इसलिए उद्धव को यह उम्मीद भी है कि उनकी भावनात्मक अपील काम कर गई तो शिंदे के खेमे में गए कुछ विधायक और वापस आ सकें तो शिंदे को दलबदल कानून का दायरा तोड़ने में मुश्किल हो सकती है।