Maharashtra Assembly polls: यूं ही अजेय नहीं है बारामती में पवार का परिवार
बारामती विधानसभा क्षेत्र में अजीत पवार को चुनौती देने के लिए भाजपा को जातीय गणित के आधार पर एक उम्मीदवार बाहर से लाना पड़ा है।
बारामती, पुणे (ओमप्रकाश तिवारी)। सामान्यतया किसी जनप्रतिनिधि का पांच वर्ष के बाद दुबारा चुनकर आना भी मुश्किल होता है। ऐसे में 52 वर्ष तक लगातार किसी क्षेत्र में एक ही परिवार का अजेय रहना किसी अचरज से कम नहीं है, लेकिन यह सच हो रहा है पुणे जिले के बारामती विधानसभा क्षेत्र में, जहां से राकांपा अध्यक्ष शरद पवार के भतीजे अजीत पवार सातवीं बार चुनकर आने के लिए पूरी तरह आश्वस्त दिखते हैं।
पवार परिवार के प्रति मतदाताओं की वफादारी
रोटी फिल्म में राजेश खन्ना पर फिल्माया गया एक गाना था, जिसके बोल थे – ये जो पब्लिक है, सब जानती है। बारामती का मतदाता भी अपने क्षेत्र में विकास होते रहा है, और पवार परिवार को बारामती विधानसभा से लेकर बारामती लोकसभा तक लगातार चुनकर भेजता जा रहा है। बारामती विधानसभा क्षेत्र से पहली बार 1967 में शरद पवार खुद चुनकर आए थे। तबसे इसी विधानसभा क्षेत्र से छह बार वह स्वयं और छह बार उनके भतीजे अजीत पवार चुनकर आ चुके हैं। इसके अलावा बारामती लोकसभा सीट से शरद पवार स्वयं पांच बार और उनकी बेटी सुप्रिया सुले तीन बार चुनकर लोकसभा में पहुंच चुके हैं। पवार परिवार के प्रति मतदाताओं की इस वफादारी का सीधा कारण है क्षेत्र में स्पष्ट दिखाई देता विकास। जो देश के किसी भी जनप्रतिनिधि के लिए अनुकरणीय हो सकता है।
शरद पवार ने दल जरूर बदले, लेकिन दिल नहीं बदला
शरद पवार की छवि महाराष्ट्र में उलटफेर करते रहने वाले नेता की रही है। सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर कांग्रेस छोड़कर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी बनाने वाले शरद पवार उससे पहले भी अर्स कांग्रेस और इंडियन कांग्रेस सोशलिस्ट जैसे दलों में रह चुके हैं, लेकिन वही पवार अपने क्षेत्र के मतदाताओं के हमेशा वफादार रहे हैं।
सरकार की योजनाओं का लाभ बारामती को हमेशा मिला
बारामती विधानसभा क्षेत्र हो, या संपूर्ण लोकसभा क्षेत्र, केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ यहां के लोगों को जिनता मिलता रहा है, शायद ही किसी और क्षेत्र के लोगों को मिला हो। महाराष्ट्र अपनी सहकारी चीनी मिलों के लिए मशहूर है, तो उसमें बहुत बड़ा योगदान शरद पवार का भी रहा है। अकेले बारामती लोकसभा क्षेत्र में ही सात चीनी मिलें हैं। जिनमें सीधे काम करनेवाले लोगों के अलावा इनका सीधा लाभ यहां के किसानों को मिलता है।
किसानों को पहुंचाया लाभ
किसानों को मिलने वाला यह लाभ सिर्फ गन्ने की खेती तक ही सीमित नहीं है। उनकी आमदनी बढ़ाने के लिए पवार के ही प्रयास से दुग्धउत्पाद तैयार करने वाली एक मल्टीनेशनल कंपनी श्रीबर डायनमिक्स यहां काम कर रही है, जो क्षेत्र के किसानों से ही दूध लेती है। भारत फोर्ज और पियाजो जैसी और भी कई कंपनियां इस क्षेत्र को किसी उन्नत औद्योगिक क्षेत्र की छवि प्रदान करती हैं।
बारामती पुणे शहर के बाद शिक्षा का दूसरा बड़ा केंद्र है
पवार परिवार द्वारा ही चलाए जा रहे कई शैक्षणिक संस्थानों के कारण बारामती आज पुणे शहर के बाद शिक्षा का दूसरा बड़ा केंद्र बन चुका है। यहां देश भर से विद्यार्थी आईटी, इंजीनियरिंग, बायोटेक और मेडिकल की शिक्षा पाने आते हैं। यहीं के रहनेवाले अभिजीत शिंदे कहते हैं कि इन शैक्षणिक संस्थानों के कारण स्थानीय लोगों के रोजगार के अवसर बढ़े हैं। अभिजीत बताते हैं कि केंद्र या राज्य सरकार द्वारा घोषित होनेवाली जनकल्याण की योजनाओं का जैसा लाभ बारामती के लोगों को मिलता है, वैसा शायद ही कहीं और मिल पाता हो। इसका एक उदाहरण वह दिव्यांगों के लिए बनी राष्ट्रीय वयोश्री योजना का देते है, जिसमें दिव्यांगों को उनके उपयोग के उपकरण निशुल्क प्रदान किए जाते हैं। इस योजना में बारामती पूरे देश में अव्वल है।
बारामती के विकास ने हमेशा पवार परिवार को ही चुना है
शायद इन्हीं विकास कार्यों का सुफल है कि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में प्रबल मोदी लहर के बावजूद बारामती लोकसभा क्षेत्र से शरद पवार की पुत्री सुप्रिया सुले को डेढ़ लाख से ज्यादा मतों से जीत हासिल हुई है। अब बारामती विधानसभा क्षेत्र में अजीत पवार को चुनौती देने के लिए भाजपा को जातीय गणित के आधार पर एक उम्मीदवार बाहर से लाना पड़ा है। चूंकि बारामती विधानसभा क्षेत्र में मराठा समुदाय के अलावा धनगरों की आबादी भी अच्छी-खासी है। इसलिए मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने चंद दिनों पहले ही भाजपा में शामिल हुए धनगर नेता गोपीचंद पडालकर को उम्मीदवार बनाया है, लेकिन भाजपा सरकार द्वारा मराठों को सफलतापूर्वक 16 फीसद आरक्षण देने के बावजूद मराठों का संगठन मराठी क्रांति मोर्चा बारामती में पूरी तरह मराठा छत्रप शरद पवार के परिवार के साथ है।