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तमिलनाडु में आरक्षण के आधार पर प्रमोशन असंवैधानिक घोषित, मद्रास हाई कोर्ट का फैसला

मद्रास हाई कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार के अपने कर्मचारियों को आरक्षण के आधार पर प्रमोशन देने और वरिष्ठता तय करने के फैसले को असंवैधानिक घोषित कर दिया है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sat, 16 Nov 2019 09:04 AM (IST)Updated: Sat, 16 Nov 2019 02:56 PM (IST)
तमिलनाडु में आरक्षण के आधार पर प्रमोशन असंवैधानिक घोषित, मद्रास हाई कोर्ट का फैसला
तमिलनाडु में आरक्षण के आधार पर प्रमोशन असंवैधानिक घोषित, मद्रास हाई कोर्ट का फैसला

चेन्नई, पीटीआइ। मद्रास हाई कोर्ट ने शुक्रवार को तमिलनाडु सरकार के अपने कर्मचारियों को आरक्षण के आधार पर प्रमोशन देने और वरिष्ठता तय करने के फैसले को असंवैधानिक और अधिकार क्षेत्र से बाहर घोषित कर दिया। जस्टिस एमएन सुंदरेश और जस्टिस आरएमटी टीका रमन की पीठ ने कहा कि सरकार द्वारा सरकारी कर्मचारियों की वरिष्ठता का निर्धारण करने के लिए रोस्टर बिंदु प्रणाली को अपनाना अप्रत्यक्ष रूप से 69 फीसद से ज्यादा आरक्षण मुहैया कराने के सिवा कुछ नहीं है।

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तमिलनाडु सरकार के कर्मचारी (सेवा की शर्तें) अधिनियम, 2016 की धारा 40, जो कि आरक्षण के नियम और रोटेशन को नियंत्रित करती है और धारा 70 जो इसको मान्य करती है, किसी निर्णय के बावजूद उसे असंवैधानिक घोषित किया गया था। इसके अलावा उपरोक्त अधिनियम की धारा 40 के तहत नियंत्रित वरिष्ठता के पहलु को पूर्वव्यापी प्रभाव देने वाले एक प्रावधान को भी असंवैधानिक घोषित किया गया था। पीठ ने कहा कि राज्य सरकार आरक्षण की सुविधा मुहैया कराने वाले संविधान के अनुच्छेद 16(4) की आड़ ले रही है। अदालत ने कहा कि जब तक संवैधानिक संशोधन नहीं किया जाता सरकार इस अनुच्छेद की आड़ नहीं ले सकती है।

दूसरी ओर उत्‍तराखंड में पदोन्नति में आरक्षण का मामला फिर से सरकार के पाले में चला गया है। उत्‍तराखंड हाई कोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण से संबंधित मामले में सुनवाई करते हुए सरकार को चार माह के भीतर एससी/एसटी और जनरल कोटा के कर्मचारियों का डेटा तैयार करके फैसला लेने के निर्देश दिए हैं। बता दें कि हाई कोर्ट के ज्ञान चंद बनाम सरकार से संबंधित आदेश में कहा गया है कि कि पदोन्नति में आरक्षण देना ही होगा। इस आदेश को सचिवालय संघ के दीपक जोशी की ओर से चुनौती दी गई थी। वहीं सुप्रीम कोर्ट के जरनैल सिंह से संबंधित आदेश में कहा गया है कि प्रमोशन में आरक्षण की कवायद के लिए कर्मचारियों का डेटा संकलन जरूरी नहीं है। 


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