एक साथ चुनाव की दिशा में मध्य प्रदेश ने बढ़ाया कदम, CM चौहान ने की बड़ी घोषणा
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने घोषणा की है कि राज्य में सहकारिता को छोड़कर सारे स्थानीय चुनाव एक साथ होंगे।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। एक साथ चुनाव को लेकर गर्म हो रही चर्चा के बीच मध्य प्रदेश ने अपना कदम बढ़ा दिया है। प्रदेश में सारे स्थानीय चुनाव (सहकारिता को छोड़कर) एक साथ कराने का फैसला लिया गया है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसकी घोषणा करते हुए कहा कि बार-बार के चुनाव राज्यों के लिए एक बड़ी दिक्कत है। ऐसे में स्थानीय चुनावों को एक साथ कराने से समय, संसाधन के साथ राज्य के पैसे की भी काफी बचत होगी।
सहकारिता को छोड़कर एक साथ होंगे सारे स्थानीय चुनाव
शिवराज ने 'जागरण राउंड टेबल' में चर्चा के दौरान यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि राज्य निर्वाचन आयोग ने इसका एक फार्मूला बनाया है। इसे अंतिम रुप देने की तैयारी चल रही है। इसके तहत सहकारिता को छोड़कर प्रदेश के सभी स्थानीय चुनाव, इनमें नगरीय निकाय और पंचायत सभी शामिल होंगे, को एक साथ कराया जाएगा। उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश जैसे राज्यों के लिए यह कदम बेहद अहम होगा, क्योंकि मौजूदा परिस्थिति में प्रदेश में सरकार गठन के बाद लगभग एक से डेढ़ साल अन्य चुनाव में चला जाता है।
नवंबर-दिसंबर में विधानसभा के चुनाव होते है। नई सरकार के शपथ लेने के कुछ महीनों बाद अप्रैल-मई में लोकसभा चुनाव आ जाता है। इसके खत्म होते ही प्रदेश में सितंबर-अक्टूबर में होने वाले नगरीय निकाय चुनाव और उसके बाद पंचायत चुनाव की तैयारी शुरु हो जाती है। इसके बाद सहकारिता का चुनाव आ जाता है। राज्य का एक से डेढ़ साल चुनाव में ही निकल जाता है। ऐसे में सरकार का पूरा ध्यान चुनाव पर ही केंद्रित रहता है, क्योंकि चुनाव में एक भी हार-जीत से उसकी लोकप्रियता तय होने लगती है। कहा जाता है कि जमीन खिसक गई। इस बीच विकास कार्य लगभग ठप पड़ जाता है।
राज्य निर्वाचन आयोग ने तैयार किया फार्मूला
गौरतलब है कि एक साथ चुनाव कराने का विषय शिवराज सिंह चौहान के लिए रुचिकर रहा है। वह इसको लेकर पहले भी कई मंचों से बोल चुके है। लेकिन उनकी इस मुहिम को उस समय ताकत मिली, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन सुधारों की ओर बढ़ने की बात कही। हाल ही राष्ट्रपति ने संसद के बजट सत्र की शुरूआत में अपने अभिभाषण में इसका जिक्र कर एक बार फिर से इस मुद्दे को गरम कर दिया है। ऐसे में मध्य प्रदेश की यह पहल देश को एक नई दिशा दे सकता है।
13 राज्यों में 2018 में, 9 राज्यों में 2019 में और 1 राज्य में 2020 में चुनाव होने हैं।
महाराष्ट्र- शिवसेना के साथ लगातार टकराव के बीच राज्य के सीएम देवेन्द्र फडणवीस ने भी संकेत दिया है कि वह साल के अंत में चुनाव कराने को तैयार हैं।
ओडिशा- ओडिशा का टर्म हालांकि 2019 के मई-जून में पूरा होता है लेकिन नवीन पटनायक ने इस मुद्दे पर साफ कर दिया है कि अगर 6 महीने पहले चुनाव कराने को कहा जाता है तो वह इसके लिए तैयार हैं।
आंध्र प्रदेश- बताया जा रहा है कि चंद्रबाबू नायडू ने भी इसके लिए हरी झंडी दी है। टीडीपी-भाजपा गठबंधन का टर्म भी 2019 के मई में पूरा हो रहा है।
तेलंगाना- एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने पर सबसे पहले सहमति देने वालों में टीआरएस नेता ही शामिल थे। उनके लिए टर्म से 6 महीने पहले चुनाव करवाना कठिन नहीं होगा।
तमिलनाडु- तमिलनाडु में भी राजनीतिक हालात अस्थिर हैं और तमाम दल वहां जल्द चुनाव की मांग कर रहे हैं। सरकार भी वहां अल्पमत में है। ऐसे में वहां भी लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव कराने का विकल्प खुला हुआ है।
सिक्किम- यहां भी मौजूदा विधानसभा का टर्म 2019 में खत्म हो रहा है। ऐसे में यहां भी साल के अंत में चुनाव कराने में कोई परेशानी नहीं होगी।
कुछ राज्यों में आगे खिसकाए जा सकते हैं चुनाव
साथ ही इस साल अक्टूबर से पहले होने वाले 4 राज्यों कर्नाटक,त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय का चुनाव 2023 में 6 महीने आगे बढ़ाया जा सकता है ताकि इन राज्यों के भी चुनाव साथ हो सकें।
पूरी बहस का क्या है आधार?
2016 में केंद्र सरकार ने अपने वेबपोर्टल ‘My Gov’ पर इस मुद्दे पर ओपन डिबेट करने के लिए लोगों को कहा था। इस पर 15 अक्टूबर तक अपने-अपने विचार भेजना था। इसमें लोगों से पांच सवाल थे पूछे गए थे।
- क्या लोक सभा, विधानसभा चुनाव एक साथ करवा सकते हैं? इसके फायदे और नुकसान क्या हैं?
- अगर एक साथ चुनाव होते हैं, तो उन विधानसभाओं का क्या होगा जहां चुनाव होने हैं?
- क्या लोक सभा और विधानसभा चुनावों का कार्यकाल फिक्स होना चाहिए?
- अगर कार्यकाल के बीच में चुनाव करवाना जरूरी हो जाए तो क्या होगा?
- क्या होगा अगर सत्ता पर काबिज पार्टी या गठबंधन कार्यकाल के बीच में बहुमत खो दे?
चुनावों पर कितना होता है खर्च
-राष्ट्रीय खजाने से साल 2014 के लोकसभा चुनाव में 3426 करोड़ रुपये खर्च किए गए, वहीं राजनीतिक दलों द्वारा 2014 के लोकसभा चुनाव में लगभग 26,000 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे।
- साल 2009 के लोकसभा चुनाव में सरकारी खजाने से 1483 करोड़ रुपये का खर्च हुआ था।
- 1952 के चुनाव में प्रति मतदाता खर्च 60 पैसे था, जो साल 2009 में बढ़कर 12 रुपये पहुंच गया।
- चुनाव आयोग के अनुसार विधानसभाओं के चुनावों में लगभग 4500 करोड़ रुपये का खर्च बैठता है। लेकिन एक साथ चुनाव कराए जाने पर इस खर्च को काफी हद तक कम किया जा सकता है।