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उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू बोले, गुमनाम नायकों को पद्म सम्मान एक तरह से भारत की खोज जैसा

Vice President M Venkaiah Naidu ने गुमनाम नायकों को पद्म सम्मान दिए जाने की सराहना करते हुए रविवार को कहा कि यह एक तरह से भारत की खोज है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sun, 26 Jan 2020 08:47 PM (IST)Updated: Sun, 26 Jan 2020 08:58 PM (IST)
उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू बोले, गुमनाम नायकों को पद्म सम्मान एक तरह से भारत की खोज जैसा
उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू बोले, गुमनाम नायकों को पद्म सम्मान एक तरह से भारत की खोज जैसा

नई दिल्ली, पीटीआइ। उप राष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने गुमनाम नायकों को पद्म सम्मान दिए जाने की सराहना करते हुए रविवार को कहा कि यह एक तरह से भारत की खोज है। एक समय था जब ज्यादातर नामचीन लोगों के हिस्से में ये पुरस्कार आते थे, लेकिन अब अपने काम से अलग पहचान बनाने वाले आम लोगों को पद्म पुरस्कार मिल रहे हैं। नायडू ने ट्वीट कर कहा, 'मुझे हर्ष है कि इस वर्ष के पद्म पुरस्कार, देश के उन अनजान विभूतियों को समर्पित हैं जिन्होंने समाज के उत्थान में अनुकरणीय योगदान दिया है।'

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यह भारत की खोज

उप राष्ट्रपति ने कहा, 'मैं सरकार की सराहना करता हूं कि प्रचार की चकाचौंध से दूर इन विभूतियों के प्रयासों को सम्मानित किया जा रहा है। वास्तव में ये भारत की खोज है। मैं पद्म पुरस्कार विजेताओं का उनकी समाज सेवा और अनुकरणीय राष्ट्र निष्ठा के लिए अभिनंदन करता हूं।' बता दें कि राष्ट्रपति ने इस साल 141 पद्म पुरस्कार प्रदान किए जाने को मंजूरी दी है। इनमें जाने-माने लोगों के अलावा ऐसे लोग शामिल हैं जो आम आदमी का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन अपने काम से खास हो गए हैं।

ऐसे ही लोगों में शामिल हैं चंडीगढ़ के जगदीश लाल आहूजा, फैजाबाद के मोहम्मद शरीफ और असम के कौशल कुवंर शर्मा। आहूजा पीजीआइ चंडीगढ़ में आने वाले मरीजों और तीमारदारों को मुफ्त में भोजन कराते हैं। मोहम्मद शरीफ ने अब तक 25 हजार से ज्यादा लावारिश शवों का अंतिम संस्कार किया है, जबकि, कौशल कुवंर शर्मा हाथियों का इलाज करते हैं और उन्हें डॉक्टर हाथी के नाम से ही जाना जाता है।

कुलीन वर्ग का दबदबा कम हुआ

नरेंद्र मोदी सरकार शुरू से ही समाज के उन लोगों को पद्म पुरस्कारों से सम्मानित करती रही है, जो आम होते हुए भी दूसरों के लिए प्रेरणा बने हुए हैं। वो आम लोगों की तरह ही रहते हैं और प्रचार से भी उनका कुछ लेना देना नहीं है। जबकि, कुछ समय पहले तक पद्म पुरस्कारों पर समाज के कुलीन लोगों का ही दबदबा रहता था। मुश्किल से किसी आम आदमी को ये पुरस्कार मिलते थे।

स्थानीय भाषाओं के लेखकों को मिले पुरस्कार

सही मायने में देश के असली नायक ये ही लोग हैं। इनमें पूर्वोत्तर के राज्यों से लेकर दक्षिण भारत के अनजान इलाकों के लोग शामिल हैं। संथाली, उडि़या, भोजपुरी, डोगरी, असमी, कश्मीरी, कन्नड़, तमिल जैसी स्थानीय भाषाओं के लेखकों को सम्मानित किया गया है।

नि:स्वार्थ सेवा करने वालों को सम्मान

पिछले पांच साल के दौरान सरकार ने उन लोगों को पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया है जो समाज की निस्वार्थ सेवा करते हैं। इनमें महिला किसानों से लेकर मिड-वाइफ, देवदासी लेकर गांधीवाही महिलाएं और योग शिक्षक से लेकर डॉक्टर तक शामिल हैं। 2017 में केरल की लगभग 80 साल की मीनाक्षी अम्मा को पद्म सम्मान दिया गया था, जो पारंपरिक मार्शल आर्ट सिखाती हैं। 2018 में सुभासिनी मिस्त्री को पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। मिस्त्री जब 23 साल की थी, उसी समय उनके पति की मौत हो गई। लेकिन वह चुप होकर घर में नहीं बैठीं, बल्कि समाजसेवा को अपना लक्ष्य बना लिया था। इन जैसे अनेक नाम हैं, जिन्हें भले ही बहुत लोग नहीं जानते हों, लेकिन अपने काम के बल पर वो अपने आस-पास के लोगों के लिए प्रेरणा बने हुए हैं।


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