अतीत के आईने से : जब इंदिरा की हत्या के बाद सहानुभूति के रथ पर सवार कांग्रेस को मिली ऐतिहासिक जीत
राजीव गांधी ने 1984 के चुनाव में भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम छेड़ी। प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को प्रोत्साहित किया और मुक्त अर्थव्यवस्था की वकालत की।
नई दिल्ली, [जागरण स्पेशल]। 1984 का आम चुनाव ऐसे समय हुआ जब कांग्रेस इंदिरा गांधी की हत्या से पैदा हुई सहानुभूति की लहर पर सवार थी। चुनाव प्रचार में अपने परिवार का हवाला देते हुए राजीव गांधी ने आर्थिक सुधारों का नारा दिया। पार्टी को इसका लाभ भी मिला। 404 सीटें जीतकर कांग्रेस अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने में कामयाब रही।
कुल सीटें - 514
बहुमत के लिए - 258
कुल 38 करोड़ मतदाता
कुल 64 फीसद हुआ मतदान
राजीव गांधी की साफ छवि
राजीव गांधी ने इस चुनाव में भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम छेड़ी। प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को प्रोत्साहित किया और मुक्त अर्थव्यवस्था की वकालत की।
भाजपा का प्रदर्शन
भारतीय जनता पार्टी को महज दो सीटें मिलीं। दिलचस्प यह कि ये दोनों सीटें अटल बिहारी वाजपेयी या लालकृष्ण आडवाणी ने नहीं जीती थीं। गुजरात की मेहसाणा सीट से भाजपा के एके पटेल ने बाजी मारी थी और आंध्र प्रदेश की हनामकोंडा सीट से भाजपा के चंदूपाटिया जंगा रेड्डी ने जीत का परचम लहराया था।
तेलुगु देसम पार्टी
आंध्र प्रदेश एक मात्र राज्य रहा जहां कांग्रेस के विजय रथ को रोक दिया गया। एनटी रामाराव की नवगठित तेलुगु देसम पार्टी ने राज्य की 34 में से 30 सीटें जीतकर कीर्तिमान बनाया। कांग्रेस के बाद सर्वाधिक सीट जीतने के कारण यह मुख्य विपक्षी पार्टी बनी। किसी भी क्षेत्रीय दल की यह अब तक की सबसे बड़ी कामयाबी मानी जाती है।
अन्य पार्टियों का प्रदर्शन
जनता पार्टी 229 सीटों पर चुनाव लड़कर केवल 10 सीटें जीत सकी। भाकपा ने 66 पर चुनाव लड़कर मात्र छह सीटों पर कामयाबी पाई। माकपा ने 66 पर चुनाव लड़कर 22 सीटें हासिल कीं।
अभिनेता से नेता बने अमिताभ
राजीव गांधी को इलाहाबाद सीट की चिंता थी, क्योंकि वहां से पूर्व कांग्रेसी दिग्गज और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा मैदान में थे। उन्हें हराना आसान नहीं था। राजीव गांधी ने दांव आजमाते हुए वहां से सुपरस्टार और अपने पुराने दोस्त अमिताभ बच्चन को मैदान में उतार दिया। अमिताभ ने हेमवती नंदन बहुगुणा को शिकस्त दी।