लोकसभा चुनाव-2019: विपक्षी मोर्चाबंदी के साथ सेट करेंगे विकास और सुशासन का एजेंडा
भाजपा-एनडीए के खिलाफ कोलकाता में गोलबंदी का जज्बा दिखाने के बाद विपक्षी दल अब विकास और सुशासन का एक साझा दृष्टिकोण देने की कसरत में जुटेंगे।
संजय मिश्र, नई दिल्ली। भाजपा-एनडीए के खिलाफ कोलकाता में गोलबंदी का जज्बा दिखाने के बाद विपक्षी दल अब विकास और सुशासन का एक साझा दृष्टिकोण देने की कसरत में जुटेंगे। विपक्षी दलों की एकजुटता को केवल मोदी विरोधी मोर्चेबंदी के रुप में प्रचारित करने की भाजपा की रणनीति को थामने के लिए विपक्ष कुछ अहम मुद्दों पर वैकल्पिक एजेंडे को सियासी जरूरत मान रहा है। इसीलिए जनवरी के अंत में अंतरिम बजट के लिए बुलाए जा रहे संसद के सत्र के दौरान विपक्षी दलों के नेता संभावित वैकल्पिक एजेंडे को लेकर विचार मंथन करेंगे।
सूत्रों के अनुसार चुनाव में सबसे ज्वलंत मुद्दों पर एक स्पष्ट दृष्टिकोण का मसौदा तैयार करने के लिए विपक्षी मोर्चे में शामिल प्रमुख दलों के कुछ नेताओं को यह जिम्मेदारी दी जाएगी। नेताओं की यह टीम वस्तुत: इन पार्टियों के बीच समन्वय का जिम्मा भी संभालेगी। इसमें जाहिर तौर पर कांग्रेस की भूमिका भी अहम होगी क्योंकि चुनाव से जुड़े ज्वलंत मसलों पर कांग्रेस की स्पष्ट भूमिका के बिना वैकल्पिक एजेंडे को सियासी धार मिलना मुश्किल होगा।
मोदी सरकार को 2019 के चुनाव में शिकस्त देने के लिए वैसे तो विपक्षी एकता की अब तक हुई हर पहल में वैकल्पिक एजेंडे की बात भी उठी है। चाहे पिछले साल यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी की पहल पर विपक्षी दलों की हुई पहली बैठक हो या चंद्रबाबू नायडू के प्रयासों से दिसंबर में हुई बैठक के बाद देश को विकल्प देने की बात हुई।
मगर हकीकत में विपक्षी खेमे का सियासी विमर्श अभी एकजुटता के मसले से आगे नहीं बढ़ा है। इसीलिए कोलकाता की यूनाइटेड इंडिया रैली के बाद विपक्षी गोलबंदी को भाजपा और पीएम इसे मोदी को हटाने के लिए जुटे दलों का जमावड़ा करार देते हैं तो विपक्षी खेमे के नेताओं का चिंतित होना स्वाभाविक है।
कोलकाता में विपक्षी नेताओं के सियासी कुंभ में शरीक होकर लौटे क्षेत्रीय दल के एक नेता ने अनौपचारिक बातचीत में कहा भी कि मोदी और भाजपा राजनीतिक विमर्श को इस वक्त संचालित व नियंत्रित कर रहे हैं। ऐसे में विपक्ष के लिए जरूरी है कि राजनीतिक विमर्श मोदी विरोध न होकर मुद्दों पर केंद्रित दिखाई दे।
उन्होंने बताया कि 31 जनवरी को शुरू हो रहे संसद सत्र के दौरान इस मसले पर विपक्षी दलों में गहन चर्चा होगी। हालांकि विपक्ष के लिए चुनौती यह भी होगी कि उसका वैकल्पिक एजेंडा चुनाव घोषणा-पत्र के स्वरूप में नहीं होगा। विपक्षी दलों में से कई दल एक मंच पर होते हुए भी अलग-अलग चुनाव मैदान में उतर रहे हैं। विपक्षी खेमे के सूत्रों के अनुसार किसानों की कर्ज माफी से लेकर खेती व खेतिहर मजदूरों की चुनौती, बेरोजगारी खासकर नोटबंदी से हुए नुकसान और संवैधानिक संस्थाओं पर मोदी सरकार में हुए प्रहार के मुद्दे को कांग्रेस ने तीन राज्यों में कामयाबी के साथ उठाए हैं। इसीलिए इन मुद्दों पर विकास का एक नया रोडमैप देने के साथ असहिष्णुता व मॉब लिंचिंग की घटनाओं को रोकने के लिए स्पष्ट प्रतिबद्धता जताए जाने की उम्मीद है।
मोदी सरकार पर वार के लिए राफेल सौदे में गड़बड़ी से लेकर पांच साल बाद भी भ्रष्टाचार के विरूद्ध लोकपाल का मजबूत तंत्र नहीं बनाने का मसला विपक्षी एजेंडे का हिस्सा बनाया जाएगा। विपक्षी नेताओं का यह भी कहना है कि भले ही नीयत, नीति और नेता नहीं होने का हवाला देकर भाजपा प्रहार कर रही हो। मगर विपक्षी दलों के कोलकाता में साथ आने के बाद भाजपा में बेचैनी तो बढ़ ही गई है।
ममता की इस रैली में शामिल हुए नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने तो भाजपा की बैचेनी की ओर खुलकर इशारा भी किया। उमर ने ट्वीट कर कहा कि 24 घंटे बीत जाने के बाद भी आश्चर्य है कि प्रधानमंत्री ब्रिगेड ग्राउंड की यूनाइटेड इंडिया रैली की बात कर रहे हैं। तंज कसते हुए उमर ने कहा कि वे तो यही सोच रहे थे कि पीएम यह चाहेंगे कि लोग इस रैली में दिखी ताकत को भूल जाएं।