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आदर्शमयी प्रतिभा का इंद्रधनुष था अटल जी का जीवन

अटल बिहारी वाजपेयी इस देश की राष्ट्रीयता के प्राणतत्व थे। भारत क्या है, अगर इसे एक पंक्ति में समझना हो तो अटल बिहारी वाजपेयी का नाम ही काफी है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Fri, 17 Aug 2018 12:40 AM (IST)Updated: Fri, 17 Aug 2018 12:40 AM (IST)
आदर्शमयी प्रतिभा का इंद्रधनुष था अटल जी का जीवन
आदर्शमयी प्रतिभा का इंद्रधनुष था अटल जी का जीवन

अमित शाह

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भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष

अटल बिहारी वाजपेयी इस देश की राष्ट्रीयता के प्राणतत्व थे। भारत क्या है, अगर इसे एक पंक्ति में समझना हो तो अटल बिहारी वाजपेयी का नाम ही काफी है। वे लगभग आधी शताब्दी तक हमारी संसदीय प्रणाली के बेजोड़ नेता रहे। अपनी व्यक्तत्व क्षमता से वे लोगों के दिलो में बसते थे। उनकी वाणी पर सरस्वती विराजमान थी। वे उदारता के प्रणेता थे। वे एक ऐसे युग मनीषी थे, जिनके हाथों में काल के कपाल पर लिखने, मिटाने का अमरत्व था। पांच दशक के लंबे संसदीय जीवन मे देश की राजनीति ने इस तपस्वी को सदैव पलकों पर बिठाए रखा। एक ऐसा तपस्वी जो आजीवन राग-अनुराग और लोभ-द्वेष से दूर राजनीति को मानव सेवा की प्रयोगशाला सिद्ध करने में लगा रहा।

मौलिकता की छाप

अटल जी का जीवन आदर्शमयी प्रतिभा का ऐसा इंद्रधनुष था जिसके हर रंग में मौलिकता की छाप थी। पत्रकार का जीवन जिया तो उसके शीर्षस्थ प्रतिमानों के हर खांचे पर कुंदन की तरह खरे उतरे। कवि की भूमिका अपनाई तो उदारमना चेतना की समस्त उपमाएं बौनी कर दीं। कभी कुछ मांगा भी तो बस इतना-

'मेरे प्रभु!

मुझे इतनी ऊंचाई कभी मत देना

गैरों को गले न लगा सकूं

इतनी रुखाई कभी मत देना।'

शोषितों और वंचितों के प्रति लगाव 

उनके भीतर का राजनेता हमेशा शोषितों और वंचितों की पीड़ा से तड़पता रहा। उनकी एक ही दृष्टि रही कि एक ऐसे भारत का निर्माण कर सकें जो भूख, भय, निरक्षरता और अभाव से मुक्त हो। जीवन में न कुछ जोड़ा, न घटाया। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पण्डित दीन दयाल उपाध्याय के आदर्शों की भूमि पर उन्होंने राजनीति के जो अजेय सोपान गढ़े वो आज ऐसी लकीर बन चुके हैं जिन्हें पार करने का साहस स्वयं काल के पास भी नहीं।

मन, कर्म और वचन से राष्ट्रवाद का व्रत

देश के सवा सौ करोड़ से ज्यादा लोगों के 'अटल जी' हमारी इस राजनीति से कहीं ऊपर थे। मन, कर्म और वचन से राष्ट्रवाद का व्रत लेने वाले वे अकेले राजनेता थे। देश हो या विदेश अपनी पार्टी हो या विरोधी दल सभी उनकी प्रतिभा के कायल थे। सिफऱ् बीसवीं सदी के ही नहीं वे इक्कीसवीं सदी के भी सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय वक्ता रहे।

वाजपेयी में भारत का भविष्य देखा था

पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने अटल बिहारी वाजपेयी में भारत का भविष्य देखा था। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि 'वे एक दिन भारत का नेतृत्व करेंगे। डा.राममोहर लोहिया उनके हिंदी प्रेम के प्रशंसक थे। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर उन्हें संसद में 'गुरुदेव' कह कर ही बुलाते थे। डा.मनमोहन सिंह ने न्यूक्लियर डील के दौरान 5 मार्च 2008 को संसद में उन्हें राजनीति का भीष्म पितामह कहा था। इस देश में ऐसे गिनती के लोग होंगे, जिन्हें जनसभा से लेकर लोकसभा तक लोग नि:शब्द होकर सुनते थे।

अटल का सफर पत्रकार से प्रधानमंत्री तक

ग्वालियर के शिंदे की छावनी से 25 दिसंबर 1924 को शुरू हुआ अटल बिहारी वाजपेयी का सफर पत्रकार, कवि, राजनेता, लोकप्रिय वक्ता से होता भारत के प्रधानमंत्री पद तक पहुंचा था। उनकी यह यात्रा बेहद ही रोचक और अविस्मरणीय रही। तीन बार देश के प्रधानमंत्री बनने वाले अटल बिहारी वाजपेयी सही मायनों में पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे। यानी अब तक बने प्रधानमंत्रियों से इतर न तो वे कभी कांग्रेस में रहे, न नही कांग्रेस के समर्थन से रहे। वो शुद्ध अथरें में कांग्रेस विरोधी राजनीति की धुरी थे। वाजपेयी जी देश के एक मात्र सांसद थे, जिन्होंने देश की छह अलग- अलग सीटों से चुनाव जीता था। वे पहले प्रधानमंत्री थे, जो प्रधानमंत्री बनने से पहले लंबे समय तक नेता विरोधी दल रहे। भारतीय राजनीति के विस्तृत कैनवास को अटलजी ने सूक्ष्मता और व्यापकता से समझा। वे उसके हर रंग को पहचानते थे। इसलिए प्रभावी रुप से उसे बिखेरते थे।

ताकतवर देशों में शुमार

अटल जी के शासनकाल में भारत दुनिया के उन ताकतवर देशों में शुमार हुआ, जिसका सभी लोहा मानने लगे। पोखरण में परमाणु विस्फोटों की श्रृंखला से हम दुनिया के सामने सीना तान सके। प्रधानमंत्री रहते उन्होंने 'भय' और 'भूखमुक्त' भारत का सपना देखा था। बतौर विदेशमंत्री उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में पहली बार हिंदी को गुंजाया था। विपक्ष का नेता रहते हुए भी जेनेवा में उन्होंने भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करते हुए आतंकवाद के सवाल पर पाकिस्तान को अलग- थलग कर दिया था। ये उनकी ही सोच थी जो संकीर्णताओं की दहलीज पारकर चमकती थी।

स्वर्णिम चतुर्भुज योजना के शिल्पी

वे देश के चारों कोनों को जोड़ने वाली स्वर्णिम चतुर्भुज जैसी अविस्मरणीय योजना के शिल्पी थे। नदियों के एकीकरण जैसे कालजयी स्वप्न के द्रष्टा थे। मानव के रूप में महामानव थे। असंभव की किताबों पर जय का चक्त्रवर्ती निनाद करने वाले मानवता के स्वयंसेवक थे।


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