कर्नाटक: प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति पर SC पहुंची कांग्रेस, ऐसी होती है भूमिका
कांग्रेस और जेडीएस ने प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति को असंवैधानिक बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। कर्नाटक में सरकार बनाने की दौड़ में शामिल कांग्रेस और जेडीएस ने एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। दोनों ही दलों ने इस बार राज्यपाल के प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति के फैसले को चुनौती दी है। साथ ही इसे नियम विरूद्ध बताया है। दोनों ही दलों ने सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार के सामने शुक्रवार देर शाम को इसे लेकर अपनी याचिका दाखिल की है। साथ ही कोर्ट से इस पर तत्काल सुनवाई की मांग की। कोर्ट ने तत्काल सुनवाई की मांग पर याचिका पर कल शनिवार को सुनवाई की मंज़ूरी दे दी है। कांग्रेस और जेडीएस की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट शनिवार को सुबह 10.30 पर सुनवाई करेगा।
कांग्रेस और जेडीएस से जुड़े वकीलों की मानें तो इस मामले को लेकर कोर्ट देर रात तक सुनवाई कर सकता है। दोनों ही दलों ने इस दौरान प्रोटेम स्पीकर के पद पर केजी बोपैया की नियुक्ति को जिस आधार पर चुनौती दी है, उनमें पहला यह है कि वह सदन में जूनियर हैं। सदन में उनसे ज्यादा वरिष्ठ सदस्य मौजूद है। ऐसे में जूनियर को प्रोटेम स्पीकर बनाया जाना गलत है। इसके अलावा बोपैय्या पर पूर्व में फ्लोर टेस्ट के दौरान ही गड़बड़ी के आरोप लगे है। सुप्रीम कोर्ट ने उनके काम-काज के तरीके पर खुद ही अंगुली उठाई थी। ऐसे में इस तरह के व्यक्ति को फिर से प्रोटेम स्पीकर बनाया जाना ठीक नहीं होगा। देखना होगा, कि कोर्ट इस मामले में पहले की तरह रात में सुनवाई को तैयार होगा या फिर इसे नियमित कोर्ट में सुनवाई के लिए कहता है। फिलहाल देर रात तक इसे लेकर सियासी ड्रामा चल सकता है। कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि भाजपा नियमों के खिलाफ काम कर रही है। सबसे सीनियर सदस्य को ही इस पद के लिए चुना जाता है।
कांग्रेस के आरोपों पर भाजपा नेता प्रकाश जावड़ेकर जवाब देते हुए कहा कि केजी बोपैया को साल 2008 में भी राज्यपाल ने प्रोटेम स्पीकर बनाया गया था। उस समय बोपैया की उम्र आज से 10 साल कम थी। कांग्रेस की आपत्ति बेवजह है। नियमों के मुताबिक ही बोपैया की नियुक्ति हुई है।
सबसे अहम है प्रोटेम स्पीकर का रोल
नवनिर्वाचित विधायकों को शपथ दिलाने और इसके बाद बहुमत परीक्षण करवाने की जिम्मेदारी प्रोटेम स्पीकर की होती है। इस वजह से पूरे घटनाक्रम में प्रोटेम स्पीकर का रोल सबसे अहम हो जाता है। प्रोटेम स्पीकर हालांकि बहुमत परीक्षण के दौरान खुद वोटिंग नहीं कर सकता है, पर स्पीकर की तरह उनके पास भी टाई होने की स्थिति में निर्णायक वोट करने का अधिकार होता है। इसके अलावा उनका सबसे अहम रोल किसी भी वोट को क्लालिफाई या डिसक्वालिफाई करने में होगा।
शनिवार शाम 4 बजे होगा बहुमत परीक्षण
सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार शाम चार बजे येद्दयुरप्पा को कर्नाटक विधानसभा में बहुमत साबित करने को कहा है। कोर्ट का यह फैसला एक तरह से कांग्रेस और जेडीएस के लिए राहत लेकर आया है और कांग्रेस ने इस फैसले को ऐतिहासिक बताने में भी देर नहीं लगायी। हालांकि भाजपा की ओर से इसका विरोध करते हुए कुछ समय और मांगा गया, लेकिन कोर्ट ने इसके लिए इन्कार कर दिया। भाजपा के वकील सात दिन का समय चाहते थे।
अभी क्या हैं कर्नाटक के हालात
कर्नाटक विधानसभा में 222 सीटों के लिए चुनाव हुए हैं। यानी बहुमत के लिए 112 सीटों की जरूरत होगी।भाजपा के 104 विधायक जीतकर आए हैं। जेडीएस के 37 और कांग्रेस के 78 विधायक और 3 अन्य जीत कर आए हैं। यानी बहुमत साबित करने के लिए भाजपा को अभी भी 8 विधायकों की जरूरत पड़ेगी। लेकिन जेडीएस के कुमारस्वामी दो सीटों से जीतकर विधायक बने हैं। ऐसे में उन्हें एक सीट से इस्तीफा देना पड़ेगा। तो फिर 221 सीट के लिहाज से भाजपा को 111 सीटों की जरूरत पड़ेगी बहुमत साबित करने के लिए।
कौन हैं बोपैया
कर्नाटक विधानसभा के प्रोटेम स्पीकर नियुक्त किए गए केजी बोपैया चार बार विधायक रह चुके हैं। वह कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष रह चुके हैं और पहले भी एक बार उन्हें प्रोटेम स्पीकर बनाया गया था।
दो वरिष्ठों का नाम भेजा गया था
विधानसभा सचिवालय की ओर से प्रोटेम स्पीकर के लिए आरवी देशपांडे और उमेश कट्टी के नाम भेजे गए थे। लेकिन कर्नाटक के राज्यपाल वजुभाई वाला ने भाजपा विधायक बोपैया को प्रोटेम स्पीकर की शपथ दिलाई।
विधानसभा अध्यक्ष रह चुके हैं बोपैया
बोपैया 2009 से 2013 तक कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष रह चुके हैं। 2008 में उन्हें चार दिनों के लिए प्रोटेम स्पीकर बनाया गया था और इसके बाद वह उपाध्यक्ष चुने गए थे।
संघ से जुड़े रहे हैं बोपैया
बीएससी और कानून की पढ़ाई करने वाले बोपैया शुरुआती दिनों में वकालत कर चुके हैं। स्कूली दिनों से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहे और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में भी सक्रिय रहे।
आपातकाल में हुए थे गिरफ्तार
आपातकाल के दौरान वह गिरफ्तार भी हुए थे। उन्होंने 1970 में कोगाडू में प्रस्तावित बांध का विरोध किया था और बाद में वह यहां के भाजपा प्रमुख भी चुने गए। बाद में उन्हें भाजपा अध्यक्ष बनाया गया था।
16 विधायकों को अयोग्य ठहराने का फैसला हुआ था खारिज
2011 में येद्दयुरप्पा सरकार को बचाने के लिए बोपैया ने भाजपा के 11 और पांच निर्दलीय विधायकों को अयोग्य ठहराया था। उनके इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने निरस्त कर दिया था।