भविष्य में भाजपा का गढ़ बन सकता है कर्नाटक, येद्दयुरप्पा के पुत्र विजयेंद्र की रणनीति आई काम
भाजपा चाहे और कोशिश करे तो भविष्य में कर्नाटक भाजपा के लिए गुजरात मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ जैसा राज्य बन सकता है जहां लगातार जीत का आधार बना था।
नई दिल्ली, आशुतोष झा। महाराष्ट्र और हरियाणा की घटना के बाद कर्नाटक में एक दर्जन विधायकों की जीत के साथ स्थायी सरकार सुनिश्चित तो हुई ही, भविष्य के दरवाजे की चाभी भी दिखा दी है। दरअसल इस एक दर्जन में से एक सीट - केआर पेट की जीत ने यह संभावना जगा दी है कि भाजपा चाहे और कोशिश करे तो भविष्य में कर्नाटक भाजपा के लिए गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसा राज्य बन सकता है जहां लगातार जीत का आधार बना था। भाजपा भविष्य की रोशनी के आलोक में बढ़ी तो अपने दोनों बड़े नेताओं की शिथिलता के कारण जदएस का प्रभाव कम होना तय है।
नौ दिसंबर को उपचुनाव के नतीजों में भाजपा कांग्रेस और जदएस के बागी नेताओं के जरिए 12 सीटें जीतने में सफल रही थी। तय माना जा रहा है कि इनमें से नौ-दस विधायक बीएस येद्दयुरप्पा सरकार में मंत्री भी बनेंगे। अगले डेढ़ दो हफ्ते में इसकी घोषणा हो सकती है। हालांकि इससे इनकार किया जा रहा है कि इनमें से किसी को उपमुख्यमंत्री भी बनाया जा सकता है।
मंत्री बनने वालों में केआर पेट सीट से जीते जदएस के बागी भी शामिल होंगे। सूत्रों की मानी जाए तो ओल्ड मैसूर क्षेत्र के केआर पेट सीट का महत्व येद्दयुरप्पा की सरकार में काफी दिखेगा। एक तरफ जहां यह येद्दयुरप्पा का जन्मस्थान है। वहीं केआर पेट को भविष्य के लिहाज से अहम माना जा रहा है। दरअसल, जदएस के गढ़ रहे इस क्षेत्र को येद्दयुरप्पा के पुत्र विजयेंद्र ने जिस रणनीति के साथ फतह किया उसने यह रास्ता दिखा दिया है कि सबकुछ मुमकिन है।
गौरतलब है कि केआर पेट के लगभग सवा दो लाख वोटरों में वोकालिग्गा की संख्या लगभग एक लाख है। वोकालिग्गा पर देवेगौड़ा परिवार का एकछत्र राज रहा है और यही कारण है कि ओल्ड मैसूर क्षेत्र की 89 विधानसभा सीटों से ही जदएस के सर्वाधिक सीटें मिलती रही हैं। भाजपा इन 89 सीटों में से कभी भी 28 से ज्यादा सीटें नहीं जीत पाई है और वह भी तब जबकि बंगलूरू से ही भाजपा को 17 सीटें मिली थीं। ध्यान रहे कि 224 सीटों वाली विधानसभा में भाजपा हर बार बहुमत से कुछ पीछे छूट जाती है। 2008 के चुनाव मे 210 सीटें मिली थी और 2018 में 104 सीटें। अगर जदएस के गढ़ में भाजपा कुछ सेंध लगाने में भी कामयाब हो जाए तो कर्नाटक में भाजपा का भविष्य स्थायी हो सकता है।
बताया जाता है कि केआर पेट को लेकर विजयेंद्र ने खास रणनीति बनाई थी। उस अकेले क्षेत्र के लिए अलग से मेनीफेस्टो भी जारी किया गया था और विकास की भूख जगाई थी। वह रणनीति काम आ गई। यानी विकास की ललक देवेगौड़ा की जातिगत पकड़ को भी कम कर सकती है। इसकी संभावना इसलिए ज्यादा देखी जा रही है क्योंकि खुद एचडी देवेगौड़ा 86 के पार हो चुके हैं। जबकि उनके पुत्र और पूर्व मुख्यमंत्री कुमारास्वामी बीमार हैं। वैसे भी यह चर्चा आम है कि देवेगौड़ा से विपरीत उनके स्वभाव के कारण पार्टी के अंदर ही खिंचाव है।
देवेगौड़ा के बड़े पुत्र एचडी रेवण्णा में कभी नेतृत्व की क्षमता नहीं दिखी। दूसरी ओर से फिलहाल कांग्रेस नेतृत्वविहीन है। इस क्षेत्र में कांग्रेस की भी दखल है लेकिन सिद्धरमैया को पार्टी के अंदर से ही विरोध का सामना करना पड़ रहा है जबकि दूसरे नेता डीके शिवकुमार का प्रभाव उनके गृह जिले तक सीमित माना जाता है। भाजपा सूत्रों के अनुसार केआर पेट की जीत से पार्टी उत्साहित है और माना जा रहा है कि केंद्रीय नेतृत्व से मशविरा के बाद इस क्षेत्र में अभी से सक्रियता बढ़ाने की कोशिश होगी और केआर पेट का विकास दूसरे क्षेत्रों के लिए उदाहरण बनेगा।