मध्य प्रदेश में शिवराज के मंत्रियों का आयकर चुकाएगी कमलनाथ सरकार
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव केएस शर्मा ने इस व्यवस्था पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि मंत्रियों व विधायकों को यह विशेष दर्जा क्यों मिलना चाहिए।
नईदुनिया, भोपाल। मध्य प्रदेश में शिवराज सरकार के मंत्रियों का आयकर अब कमलनाथ सरकार चुकाएगी। तत्कालीन आठ मंत्रियों ने आयकर कटौती की प्रतिपूर्ति के प्रस्ताव दिए हैं, जिन्हें सामान्य प्रशासन विभाग ने मान्य करते हुए मंत्रालय के मुख्य लेखाधिकारी को नौ लाख 71 हजार रुपये से ज्यादा राशि खाते में जमा करने के आदेश दिए हैं। गौरतलब है कि विधायकों के वेतन-भत्ते पर लगने वाले आयकर को विधानसभा सचिवालय अदा करता है। इस व्यवस्था पर पूर्व मुख्य सचिव केएस शर्मा ने सवाल उठाए हैं। उन्होंने इसे वीआइपी कल्चर करार दिया।
आठ पूर्व मंत्रियों के खाते में 9 लाख 71 हजार रुपए जमा करने के दिए आदेश
सामान्य प्रशासन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि मंत्री वेतन तथा भत्ता अधिनियम 1972 में मुख्यमंत्री, मंत्री और राज्यमंत्री को मिलने वाले वेतन, भत्ते तथा परिलब्धियों की राशि पर आयकर शासन देता है। 2018-19 में मंत्रियों को मिले वेतन तथा भत्ते पर जो कटौती की गई, उसकी प्रतिपूर्ति करने के आदेश दिए गए हैं। इसमें तत्कालीन मंत्री डॉ. गौरीशंकर शेजवार को दो लाख 10 हजार, कुसुम महदेले को दो लाख 55 हजार, अर्चना चिटनिस को एक लाख 30 हजार, राजेंद्र शुक्ल को 80 हजार, अंतर सिंह आर्य को एक लाख, भूपेंद्र सिंह को 75 हजार, जयभान सिंह पवैया को 45 हजार, सुरेंद्र पटवा को 30 हजार और ललिता यादव के खाते में 46 हजार 350 रुपये जमा कराए जाएंगे। यह राशि अप्रैल से लेकर नवंबर तक की बताई जा रही है।
विधायकों के वेतन-भत्ते पर लगने वाला आयकर चुकाती है विधानसभा
हर तीन माह में आयकर कटौती की प्रतिपूर्ति का प्रावधान है। विधानसभा के प्रमुख सचिव एपी सिंह ने बताया कि विधायकों के वेतन तथा भत्ते पर लगने वाले आयकर की प्रतिपूर्ति विधानसभा सचिवालय करता है।
मंत्री-विधायकों को क्यों मिलना चाहिए विशेष दर्जा : केएस शर्मा
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव केएस शर्मा ने इस व्यवस्था पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि मंत्रियों व विधायकों को यह विशेष दर्जा क्यों मिलना चाहिए। वह जो काम करते हैं, उसके लिए उन्हें वेतन-भत्ते दिए जाते हैें। यह ठीक उसी तरह है, जैसे अन्य अधिकारी और कर्मचारियों को मिलते हैं, लेकिन उन्हें अपना आयकर स्वयं अदा करना होता है।
जनता की गाढ़ी कमाई से खजाने में जमा होने वाली राशि से इसे चुकाए जाने का कोई तार्किक आधार नहीं है। दरअसल, सरकारें वीआइपी कल्चर खत्म करने की बातें तो बहुत करती हैं पर वास्तविकता कुछ और ही है। इसे बंद होना चाहिए, क्योंकि संविधान में समानता के अधिकार की बात कही गई है।