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जस्टिस मदन बी लोकूर ने तोड़ी चुप्पी, कोलेजियम और जजों पर कही बड़ी बात

जस्टिस लोकूर ने 12 दिसंबर की कोलेजियम बैठक का ब्योरा वेबसाइट पर सार्वजनिक न होने से निराशा जाहिर की लेकिन जजों की नियुक्ति में सिफारिश और भाई भतीजावाद की बातों को नकार दिया है।

By TaniskEdited By: Published: Wed, 23 Jan 2019 09:52 PM (IST)Updated: Wed, 23 Jan 2019 09:52 PM (IST)
जस्टिस मदन बी लोकूर ने तोड़ी चुप्पी, कोलेजियम और जजों पर कही बड़ी बात
जस्टिस मदन बी लोकूर ने तोड़ी चुप्पी, कोलेजियम और जजों पर कही बड़ी बात

नई दिल्ली, जेएनएन। सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति को लेकर चल रहे विवाद पर कभी कोलेजियम का हिस्सा रहे सेवानिवृत न्यायाधीश जस्टिस मदन बी लोकूर ने चुप्पी तोड़ी है। जस्टिस लोकूर ने बुधवार को एक चर्चा में कहा कि 12 दिसंबर की कोलेजियम बैठक का ब्योरा वेबसाइट पर सार्वजनिक न होने से निराशा हुई। हालांकि जस्टिस लोकूर ने जजों की नियुक्ति में सिफारिश और भाई भतीजावाद की बातों को नकारा। उन्होंने कहा जजों की नियुक्ति पर कोलेजियम में स्वस्थ चर्चा होती है उसमें सहमति और असहमति दोनों होतीं हैं और दोनों दर्ज की जाती हैं।

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सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति पर 12 दिसंबर की कोलेजियम बैठक में लिए गए फैसले 10 जनवरी की बैठक में बदल दिये गए थे। जिसे लेकर विवाद चल रहा है। वेबसाइट पर 10 जनवरी की बैठक का ब्योरा है लेकिन 12 दिसंबर का ब्योरा नहीं डाला गया है। 12 दिसंबर को जस्टिस लोकूर कोलेजियम का हिस्सा थे जबकि 10 जनवरी तक सेवानिवृत हो चुके थे और वरिष्ठताक्रम के अनुसार जस्टिस अरुण मिश्रा शामिल हो गए थे।

माना जाता है कि गत 12 दिसंबर की कोलेजियम में जस्टिस प्रदीप नंदराजजोग और जस्टिस राजेन्द्र मेनन को सुप्रीम कोर्ट प्रोन्नत करने का फैसला हुआ था। हालांकि, 12 दिसंबर का निर्णय सरकार को नहीं भेजा गया था। वेबसाइट पर जारी 10 जनवरी की कोलेजियम बैठक के ब्योरे में यह तो कहा गया है कि 12 दिसंबर को कुछ फैसले हुए थे लेकिन फैसले क्या थे यह नहीं बताया गया है। कहा गया है कि उन पर और विचार विमर्श की जरूरत थी जो कि अवकाश हो जाने के कारण नहीं हो पाया।

5 और 6 जनवरी को नयी कोलोजियम में विचार विमर्श हुआ और प्राप्त अतिरिक्त सामग्री को देखते हुए नये सिरे से विचार हुआ और सर्वसम्मति से जस्टिस दिनेश महेश्वरी और जज संजीव खन्ना को सुप्रीम कोर्ट प्रोन्नत करने के लिए उपयुक्त पाया। जस्टिस महेश्वरी आल इंडिया वरिष्ठता में 21वें और जस्टिस खन्ना 33वें नंबर पर हैं। कोलेजियम की सिफारिश में वरिष्ठता की अनदेखी पर कुछ रिटायर्ड जजों और बार काउंसिल आफ इंडिया ने सवाल उठाए थे। विवाद फैसलों को बदलने को लेकर भी उठ रहा था।

विवाद के बाद यह पहला मौका था जबकि 12 दिसंबर की कोलेजियम का हिस्सा रहे जस्टिस लोकूर ने सार्वजनिक तौर पर अपने विचार प्रकट किये। जस्टिस लोकूर ने लीगल पोर्टल लीफलेट की ओर से आयोजित कार्यक्रम में पत्रकार राजदीप सरदेसाई के साथ चर्चा मे कहा कि उन्हें 12 दिसंबर का ब्योरा वेबसाइट पर न डाले जाने से निराशा हुई। जस्टिस लोकूर जजों की नियुक्ति और कोलेजियम व्यवस्था पर खुल कर बोले।

कोलेजियम व्यस्था में सुधार की जरूरत

उन्होंने कहा कि इसे एकदम खराब कह कर खतम नहीं किया जा सकता इसमें सुधार की की आवश्यकता है। इसमें सुधार के लिए नियुक्ति की नयी प्रक्रिया (एमओपी) तय करने की जरूरत है। एमओपी को समग्र बनाने और नियुक्ति में कोलेजियम की मदद करने के लिए सिक्रेट्रिएट की जरूतर है जो जज के बारे में कोलेजियम को जानकारी दे।

सुप्रीमकोर्ट के लिए वरिष्ठता एकमात्र मानक नहीं

वरिष्ठता की अनदेखी पर जस्टिस लोकूर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति के लिए वरिष्ठता एकमात्र मानक नहीं है। जरूरी नहीं की जो हाईकोर्ट कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश है वह सुप्रीम कोर्ट का भी न्यायाधीश बने।

प्रेस कान्फ्रेंस से आयी पारदर्शिता

जस्टिस लोकूर से जब पूछा गया कि पिछले साल हुई चार जजों की प्रेस कान्फ्रेंस से क्या हासिल हुआ क्योंकि मुख्य न्यायाधीश की कार्यप्रणाली पर उस कान्फ्रेंस में सवाल उठाए गये जबकि नये मुख्य न्यायाधीश की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठ रहे हैं। जस्टिस लोकूर ने कहा कि वे इस पर कोई टिप्पणी नहीं कर रहे लेकिन इतना जरूर कहेंगे कि उस प्रेस कान्फ्रेंस के बाद सिस्टम में पारदर्शिता आयी है।

प्रधानमंत्री के सुप्रीम कोर्ट जाने में कुछ भी गलत नहीं

जस्टिस लोकूर ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सुप्रीम कोर्ट जाने और उनके लिए कोर्ट के दरवाजे खुलने के विवाद पर कहा कि इसमें बुराई क्या है। और देशो के जज आये थे एक समारोह और डिनर था। यह ठीक है कि जजों को राजनैतिक चीजों में हिस्सा नहीं लेना चाहिए लेकिन जज बिल्कुल अलग संत की तरह भी नहीं रह सकता।

समय भीतर होनी चाहिए नियुक्ति

जस्टिस लोकूर ने कहा कि कई बार सरकार नियुक्ति की फाइल दबाकर बैठ जाती है कभी कभी मामला न्यायपालिका मे अटका रहता है। नियुक्ति के बारे में समयबद्ध फैसला होना चाहिए। जस्टिस केएम जोसेफ की फाइल महीनों दबी रही।

किसी भी जज पर आरोप परेशान करते हैं

जस्टिस लोकूर ने कहा कि किसी भी जज पर जब भ्रष्टाचार, ईमानदारी या निष्ठा लेकर आरोप लगते हैं तो वे उससे परेशान होते हैं। उन्होंने माना कि आरोप किसी पर भी लगें उसकी जांच होनी चाहिए। हालांकि जजों के मामले में इन हाउस जांच प्रक्रिया का उन्होंने समर्थन किया और कहा कि तेजी से काम होता है।


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