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त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड के चुनाव की तारीखें तय, जानें तीनों राज्यों का राजनीतिक इतिहास

त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड में विधानसभा चुनाव के लिए चुनाव आयोग ने तारीखों का ऐलान कर दिया है।

By Lalit RaiEdited By: Published: Wed, 03 Jan 2018 04:47 PM (IST)Updated: Fri, 19 Jan 2018 02:43 PM (IST)
त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड के चुनाव की तारीखें तय, जानें तीनों राज्यों का राजनीतिक इतिहास
त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड के चुनाव की तारीखें तय, जानें तीनों राज्यों का राजनीतिक इतिहास

नई दिल्ली [ स्पेशल डेस्क ]। पूर्वोत्तर राज्यों में राजनीतिक असर की बात करें तो देश को आजादी मिलने के बाद से दशकों तक कांग्रेस का दबदबा रहा है। ये बात अलग है कि कांग्रेस के दबदबे को कम करने के लिए क्षेत्रीय दलों ने कमर कसी। लेकिन सुविधा के मुताबिक कभी कांग्रेस के साथ गए तो कभी विरोध भी करते रहे। इन सबके बीच भाजपा इन इलाकों में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने में नाकाम रही। गुरुवार को चुनाव आयोग ने त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड विधानसभा के लिए चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया है। त्रिपुरा में जहां 18 फरवरी को मतदाता अपने अधिकार का इस्तेमाल करेंगे, वहीं मेघालय और नागालैंड नें 27 फरवरी को मत डाले जाएंगे। इन तीनों राज्यों में 3 मार्च को मतगणना होगी।

असम चुनाव के नतीजों से पहले भाजपा को स्थानीय लोग जमानत जब्त पार्टी के रूप में देखते रहे हैं। लेकिन समय से साथ बहुत कुछ बदल गया। असम के साथ-साथ मणिपुर और अरुणाचल में भाजपा की सरकार है, तो सिक्किम में पवन चामलिंग एनडीए का हिस्सा हैं। देश के 19 राज्यों में भाजपा और उसके समर्थकों की सरकार है। अब भाजपा कोशिश कर रही है उनका विजय रथ कुछ यूं आगे बढ़े कि पूर्वोत्तर राज्य केसरिया रंग में रंग जाएं। इस सिलसिले में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने हाल ही में मेघालय और त्रिपुरा का दौरा किया है। 

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मेघालय  का चुनावी इतिहास
मेघालय में साल 2013 में हुए पिछले चुनाव में कांग्रेस ने 29 सीटों के साथ जीत दर्ज की थी। कांग्रेस के अलावा सीटों के आधार पर दूसरे नंबर पर निर्दलीय उम्मीदवार रहे। निर्दलियों ने 13 सीटों पर कब्जा जमाया था। यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी (मेघालय) को कुल 8 और हिल स्टेट पिपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी को सिर्फ 4 सीटों से संतोष करना पड़ा था। एनसीपी ने भी 2 सीटों के साथ राज्य में अपनी उपस्थिति दर्ज करायी थी, जबकि भाजपा यहां खाता भी नहीं खोल पायी थी। साल 2008 के चुनाव में भी कांग्रेस ने 25 सीटें हासिल की थीं, जबकि एनसीपी को राज्य में 14 सीटें मिली थीं। यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी को 11 और भाजपा सिर्फ 1 सीट से संतोष करना पड़ा था।

मेघालय विधानसभा की मौजूदा तस्वीर
कांग्रेस - 24
यूडीपी - 7
एचएसपीडीपी - 4
बीजेपी - 2
एनसीपी - 2
एनपीपी - 2
एनईएसडीपी - 1
निर्दलीय - 9
9 जगहें खाली हैं। 

नागालैंड भी अलग नहीं

नागालैंड में पिछली बार भाजपा ने 11 उम्मीदवार मैदान में उतारे थे  जिनमें से 8 उम्मीदवार जमानत नहीं बचा सके। 2008 में भाजपा द्वारा मैदान में उतारे गए 23 उम्मीदवारों में से 2 ही चुनाव जीत सके जबकि 15 की जमानत जब्त हो गई। 2003 में पार्टी ने 38 उम्मीदवार मैदान में उतारे, जिनमें से 7 उम्मीदवार जीते और 28 की जमानत जब्त हो गई। 1993 में भाजपा के 6 उम्मीदवार थे, जिनमें से किसी की भी जमानत नहीं बची।

नागालैंड विधानसभा में वर्तमान स्थिति

एनपीएफ - 45
बीजेपी - 4
जेडीयू - 1
एनसीपी - 1
निर्दलीय - 8
खाली - 1


नागालैंड में भाजपा के लिए मौका

नागालैंड में इसी साल जुलाई में नागा पीपुल्स फ्रंट में हुए अंदरूनी झगड़े के बाद सीएम शुरोजली लैजिस्ट को सीएम पद छोड़ना पड़ा था, क्योंकि वह सदन में बहुमत साबित नहीं कर पाए थे। उनके पद छोड़ने के बाद नागा पीपुल्स फ्रंट के ही दूसरे नेता टीआर जेलियांग को सीएम पद की शपथ दिलाई गई। उन्होंने विधानसभा में बहुमत भी साबित कर दिया। जेलियांग को भाजपा का समर्थन था और वह भाजपा की मदद से सरकार चला रहे हैं। राज्य में हुई इस सियासी उठापटक के बाद भाजपा के लिए नागालैंड में मौका बन सकता है। अगर भाजपा नागालैंड को नहीं जीत पाती है तो उस हालात में भी गंवाने के लिए कुछ भी नहीं है। भाजपा 2003 को छोड़कर कभी भी राज्य में अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करवा सकी है।

त्रिपुरा का इतिहास
2013 के चुनाव में बीजेपी ने 50 उम्मीदवार मैदान में उतारे, जिनमें से 49 की जमानत जब्त हो गई थी। 2008 में भी पार्टी के 49 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई थी। इसी तरह 2003 में बीजेपी के 21 उम्मीदवार अपनी जमानत नहीं बचा सके थे। 1998 में पार्टी ने पहली बार राज्य की सारी 60 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन पार्टी के 58 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई।


त्रिपुरा के भाजपा अध्यक्ष बिप्लव कुमार देव कहते हैं कि प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के तहत 3.33 लाख महिलाओं को मुफ्त एलपीजी कनेक्शन मुहैया कराए गए हैं। एक परिवार में औसतन चार सदस्यों का हिसाब रखें तो राज्य के 25 लाख में से आधे वोटरों को इसका लाभ मिला है। उनका कहना है कि राज्य के लोग भाजपा के पक्ष में हैं और अगले चुनाव के बाद पार्टी राज्य में सरकार बनाएगी।

त्रिपुरा विधानसभा में दलों की वर्तमान स्थिति

सीपीएम गठबंधन - 51
बीजेपी - 7
कांग्रेस - 2


भाजपा नेताओं का दावा है कि राज्य में महिलाओं के खिलाफ अत्याचार के मामलों में काफी तेजी आई है और यहां बेरोजगारी की दर देश में सबसे ज्यादा (20 फीसदी) है। देब दावा करते हैं कि राज्य की 67 फीसद आबादी गरीबी रेखा से नीचे रह रही है। बीते विधानसभा चुनाव में बीजेपी को एक भी सीट नहीं मिली थी।

त्रिपुरा में तुरुप का पत्ता साबित हो सकते हैं योगी आदित्यनाथ

योगी आदित्यनाथ भाजपा के लिए गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में स्टार प्रचारकों में से एक रहे हैं। लेकिन सुदूर पूर्वोत्तर के छोटे से राज्य त्रिपुरा में भी वे भाजपा की जीत में अहम भूमिका निभा सकते हैं। त्रिपुरा में गोरक्षनाथ के दो मंदिर हैं, एक अगरतला में और दूसरा धर्मनगर में। कुल 35 लाख की आबादी वाले इस राज्य में नाथ संप्रदाय से जुड़े लोगों की संख्या 12-13 लाख है। यानी एक तिहाई आबादी नाथ संप्रदाय को मानती है।

सबसे बड़ी बात यह है कि योगी आदित्यनाथ पूरे देश में नाथ संप्रदाय के प्रमुख हैं। योगी आदित्यनाथ के गुरु स्वर्गीय योगी अद्वैतनाथ दो बार त्रिपुरा आ चुके हैं। अगरतला में गोरक्षनाथ मंदिर के सचिव निखिल देवनाथ कहते हैं कि दोनों बार योगी अद्वैतनाथ उनके घर पर ही रुके थे। निखिल देवनाथ चाहते हैं कि योगी जब चुनाव प्रचार के लिए त्रिपुरा आएं तो गोरक्षनाथ मंदिर जरूर आएं।


त्रिपुरा में गोरक्षनाथ संप्रदाय को मानने वाले ओबीसी के कोटे में आते हैं। लेकिन राज्य में उन्हें ओबीसी आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा है। माकपा सरकार एससी और एसएसटी को मिल रहे 48 फीसदी आरक्षण के कारण ओबीसी को आरक्षण नहीं दे पाने की मजबूरी बताती रही है। निखिल देवनाथ चाहते हैं कि यदि योगी आदित्यनाथ नाथ संप्रदाय को आरक्षण दिलाने का ठोस भरोसा दिला दें, तो फिर नाथ का एक-एक वोट भाजपा को जाएगा। लेकिन ओएनजीसी में इंजीनियर और त्रिपुरा राज्य नाथ कल्याण समिति के पूर्व सचिव डीएन नाथ कहते हैं कि सिर्फ योगी आदित्यनाथ के आने से बहुत फर्क पड़ जाएगा। उनका कहना है कि योगी आदित्यनाथ उनके गुरूभाई हैं और उत्तरप्रदेश जैसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री बने हैं यह नाथों के लिए गर्व की बात है।

मंत्रालय के जरिए राजनीति साधने की कोशिश

नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के बाद 2014 से ही पूर्वोत्तर के राज्य राजनीतिक लक्ष्य के लिहाज से भाजपा के फोकस वाले राज्य रहे हैं। इन्हीं राज्यों के विकास को आधार बनाकर पीएम ने अपने कैबिनेट में पूर्वोत्तर राज्यों के विकास संबंधी मंत्रालय भी बनाया है। इसके अलावा हाल ही में केंद्र सरकार ने इन राज्यों के विकास के लिए 90 हजार करोड़ का पैकेज भी जारी किया है।
 
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