केरल में हाहा-कार, स्कूल-कालेज से लेकर मेट्रो स्टेशन तक ट्रांजिट कैंप में तब्दील
हेलीकॉप्टर लगातार उड़ान भर कर केरल में बाढ़ में फंसे लोगों को निकाल रहे हैं। अकेले एरनाकुलम से ही शनिवार को करीब 59 हजार लोगों को बचाया गया। करीब दो लाख लोगों ने छह सौ कैंपों में शरण ली हुई है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। केरल में बाढ़ की खबर हर तरफ सुर्खियों में है। भारत से निकलकर अब इसकी गूंज यूएन तक में सुनाई दे रही है। 357 मौतों पर दुख जताकर यूएन महासचिव ने हर संभव मदद करने की बात कही है। बहरहाल, केरल में अब तक का सबसे बड़ा बचाव अभियान चलाया जा रहा है। जिस तरह की बाढ़ इस बार यहां पर आई है उस तरह की बाढ़ 1924 में आई थी, जिसमें एक हजार से अधिक लोगों की मौत हो गई थी। केरल के हालात अब भी काबू से बाहर ही हैं। हेलीकॉप्टर लगातार उड़ान भर कर जहां-तहां बाढ़ में फंसे लोगों को निकाल रहे हैं। अकेले एरनाकुलम से ही शनिवार को करीब 59 हजार लोगों को बचाया गया। करीब दो लाख लोगों ने छह सौ कैंपों में शरण ली हुई है।
इन लोगों के लिए यह एक नया जीवन है। इस बाढ़ में हर किसी के माथे पर चिंता की लकीरें साफतौर पर देखी जा सकती हैं। लेकिन ऐसे ही मुश्किल पलों में एक सुखद अहसास भी होता है। यह अहसास उस वक्त होता है जब लोग अपना गम भुलाकर दूसरों की मदद के लिए हाथ बढ़ाते हैं। ऐसा ही कुछ नोबल मैथ्यू भी कर रहे हैं। वह मुन्नार के इडुकी जिले में रहते हैं। इस बाढ़ में उन्होंने अपनी भतीजी को हमेशा के लिए खो दिया है।
सिर्फ दुआ न करें, मदद को आएं आगे
इसके अलावा उनके चाचा को हर सप्ताह डायलीसिस के लिए अस्पताल ले जाना पड़ता है, लेकिन मौजूदा हालात में न मैथ्यू अपने घर जा पा रहे हैं और न ही उनके चाचा अस्पताल जा पा रहे हैं। यह जिला बाढ़ से सबसे अधिक प्रभावित है। सड़कें पानी में बह चुकी हैं चारों तरफ पानी ही दिखाई दे रहा है। मैथ्यू खुद इस वजह से अपने घर नहीं जा पा रहे हैं। अब वह अपना गम भुलाकर इस बाढ़ के प्रति जागरुकता पैदा करने का काम कर रहे हैं। अपनी बाइक पर एक बैनर लिए वह रोज वहां की सड़कों पर निकलते हैं। इस बैनर पर लिखा है केरल के लोगों के लिए सिर्फ दुआ न करें, बल्कि मदद के लिए आगे आएं। 33 वर्षीय मैथ्यू अपने साथ ऐंबुलेंस के अधिकारियों को भी रखते हैं और जहां इनकी जरूरत होती है वहां मदद करते हैं।
कॉलेज के छात्र और टीचरों ने बनाया कैंप
लोगों की परेशानियों को देखते हुए ऐलुवा के यूनियन क्रिसचन कॉलेज ने अपने यहां पर कैंप लगा रखा है। यह कैंप 15 अगस्त को शुरू हुआ था और देखते देखते यहां पर आने वाले लोगों की संख्या 4000 तक पहुंच गई है। यहां पर कुल 30 लोग कैंप की पूरी जिम्मेदारी संभाले हुए हैं। इनमें कॉलेज के टीचर और स्टूडेंट्स शामिल हैं। इनके मुताबिक उनके पहली प्राथमिकता लोगों को प्राथमिक उपचार मुहैया करवाने की है। इसके अलावा उनकी कोशिश किसी भी तरह से लाइट की व्यवसथा करने की है। यहां पर लगे वॉलेंटियर्स का ये भी कहना है कि यहां पर आने वाले कुछ लोगों को चिकनपॉक्स हो रखा है। इतना ही नहीं कई ऐसे हैं जिनके पास अपनों को अपनी जानकारी देने का कोई जरिया नहीं रह गया है। कईयों के मोबाइल खो चुके हैं तो कईयों के मोबाइल लाइट न होने की सूरत में बेकार पड़े हैं।
दुश्वार हुए हालात
ऐसे में हालात इतने दुश्वार हो चुके हैं कि कैंप में जनरेटर चलाने लायक तेल भी न के ही बराबर है। कैंप के सामने डीजल की व्यवस्था करने के साथ यहां पर लगातार बढ़ रहे लोगों को मदद मुहैया करवाने की भी चुनौती है। खाने की कमी को देखते हुए यहां के वॉलेंटियर्स ने सोशल मीडिया पर खाना मुहैया करवाने की अपील भी की है। इसके अलावा वायुसेना और नौसेना के हेलीकॉप्टरों ने भी यहां पर खाने के बंद पैकेट पहुंचाएं हैं। वॉलेंटियर्स को उस वक्त काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा जब बाढ़ का पानी कैंप में दाखिल हो गया था। ऐसे में सभी ने काफी मेहनत कर यहां से पानी को बाहर निकाला। यहां के वॉलेंटियर्स दिन-रात लोगों की मदद के लिए काम करने में लगे हैं।
जलमग्न हुआ सबकुछ
एलुवा का मैट्रो स्टेशन भी फिलहाल एक कैंप में ही तब्दील हो गया है। आपको बता दें कि राज्य में करीब 280 पेट्रोल पंप और 279 एलपीजी सप्लाई के सेंटर पूरी तरह से जलमग्न हैं। इंडियन ऑल कॉर्पोरेशन के मुताबिक राज्य में करीब 2020 पेट्रोल पंप 610 एलपीजी डिस्ट्रीब्यूटर हैं। राज्य के करीब 528 पेट्रोल पंप ऐसे हैं जो तेल की आपूर्ति नहीं कर पा रहे हैं। वहीं 120 एलपीजी डिस्ट्रीब्यूटर्स का भी यही हाल है।
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