अमेरिकी प्रतिबंध से निपटने के लिए भारत की यूरोपीय देशों के साथ कूटनीतिक वार्ता शुरु
भारत ने ट्रंप के इस फैसले से नाराज यूरोपीय देशों के साथ कूटनीतिक विमर्श शुरु कर दिया है ताकि अमेरिकी प्रतिबंध से बचने का काट खोजा जा सके।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। ईरान के साथ किए गए परमाणु करार को तोड़ने और उस पर नए प्रतिबंध लगाने के अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के फैसले से निबटने की तैयारी भारत ने और तेज कर दी है। भारत ने ट्रंप के इस फैसले से नाराज यूरोपीय देशों के साथ कूटनीतिक विमर्श शुरु कर दिया है ताकि अमेरिकी प्रतिबंध से बचने का काट खोजा जा सके।
ईरान के विदेश मंत्री जावेद जरीफ जल्द आ सकते हैं भारत
उधर, संकेत इस बात के हैं कि ईरान के विदेश मंत्री जावेद जारीफ जल्द ही भारत की यात्रा पर आ सकते हैं। जारीफ अमेरिकी प्रतिबंध के बाद की कूटनीति को तेज करते हुए कई देशों की यात्रा पर जाने वाले हैं। अभी तक अमेरिका के फैसले को लेकर असहमति जताने वाले देशों ब्रिटेन, फ्रांस, चीन, जर्मनी में उनके जाने की संभावना है। लेकिन अमेरिकी प्रतिबंध के बाद ईरान के लिए भारत भी अहम हो गया है, क्योंकि यह उसके तेल का एक बहुत बड़ा खरीददार देश है।
भारत की भावी रणनीति के बारे में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा कि, ''भारत पूरे हालात पर गहरी नजर रखे हुए है। हम वह हरसंभव कदम उठाएंगे जिससे हमारे हितों की रक्षा हो सके। हम चाबहार में भी अपने हितों को सुरक्षित करने के लिए सतर्क हैं।''
विदेश मंत्रालय के एक अन्य अधिकारी ने कहा कि, ''यह नहीं भूलना चाहिए कि जब पूर्व में अमेरिका ने ईरान पर भारी आर्थिक प्रतिबंध लगाये थे तब भी हमने ईरान के साथ कारोबार को बंद नहीं किया था। ईरान के साथ तेल खरीदना भी जारी था। अमेरिका की नाराजगी के बावजूद पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने ईरान की यात्रा की थी।''
इस बार निश्चित तौर पर अमेरिका की तरफ से ज्यादा कड़े प्रतिबंध लगाने की तैयारी है लेकिन इस बात की संभावना है कि इस बार यूरोपीय देश अमेरिका के साथ नहीं खड़े हैं। अगर इन देशों का समर्थन मिल जाए तो भारत के लिए ईरान के साथ कारोबार करने में या उसे तेल खरीदने में या वहां अपनी औद्योगिक परियोजनाओं को लगाने में खास दिक्कत नहीं आएगी।
दरअसल, अमेरिकी प्रतिबंध के बाद ईरान में परियोजनाओं के लिए फंड जुटाने या फिर उन परियोजनाओं के लिए बीमा करवाने या अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग व्यवस्था के जरिए फंड भेजना मुश्किल हो जाता है। पिछली दफे भी ऐसा हुआ था। लेकिन अगर यूरोपीय देशों ने ईरान के साथ अपने संबंध बनाये रखे तो भारत इनकी बैंकिंग व्यवस्था और वित्तीय एजेंसियों के जरिए अपना कारोबार सामान्य तौर पर कर सकता है।
भारत इस समय ईरान के चाबहार में पोर्ट बना रहा है। साथ ही चाबहार से अफगानिस्तान के बीच राजमार्ग और रेलवे लाइन का भी निमार्ण कर रहा है। इसके अलावा भारत ईरान से तेल भी खरीदता है जिसके भुगतान के लिए उसे अंतरराष्ट्रीय वित्तीय एजेंसियों की दरकार होती है।
ईरान के राष्ट्रपति हसन रोहानी की फरवरी, 2018 में नई दिल्ली यात्रा के दौरान दोनों पक्षों के बीच बात भी हुई थी। अमेरिकी प्रतिबंध की आशंका से ही भारतीय तेल कंपनियों ने ईरान से आयातित तेल के एक बड़े हिस्सा का भुगतान यूरो (यूरोपीय संघ की मुद्रा) में करना शुरू किया था। दोनों देशों के बीच एक दूसरे के यहां बैंक शाखा खोलने का समझौता हुआ है जिसे अब अमली जमाना पहनाया जा सकता है। इससे भारत के लिए ईरान में भुगतान करना आसान हो जाएगा।