भारत ने अमेरिका से कहा- एस-400 पर राष्ट्रहित में होगा फैसला, पोम्पिओ के सामने जयशंकर की दो टूक
ट्रंप-मोदी के बीच अगले तीन महीनों के बीच दो वार्ता होनी है। साथ ही टू प्लस टू वार्ता भी होनी है। तभी कोई समाधान निकलने की संभावना है।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। यह तो पहले से ही तय था कि विदेश मंत्री एस जयशंकर की बुधवार को अमेरिकी विदेश मंत्री माइकल पोम्पिओ के साथ मुलाकात में रिश्तों में तल्खी घोलने वाले मुद्दों पर कोई दो टूक समझौता नहीं होगा। यह उम्मीद भी थी कि दोनो नेताओं के बीच मुलाकात से निकट भविष्य में तनाव वाले मुद्दों का समाधान निकालने की राह निकलेगी, लेकिन पोम्पिओ और जयशंकर की संयुक्त प्रेस वार्ता से जो संकेत मिल रहे हैं उससे ऐसा लगता है कि कारोबार, ईरान और रूस से हथियार खरीद के मुद्दे पर जो पेंच फंसे हैं उन्हें सुलझाना आसान नही होगा।
लोगों की नजरें जापान के शहर ओसाका में पीएम नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच गुरुवार को होने वाली द्विपक्षीय मुलाकात पर टिकी हुई हैं, लेकिन जानकार मान रहे हैं कि जटिल मुद्दे हैं और दोनो देशों को लगातार बात करनी होगी।
पोम्पिओ मंगलवार को देर शाम नई दिल्ली पहुंचे थे। बुधवार को सुबह उनकी पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाकात हुई और रिश्तों पर संक्षिप्त वार्ता भी हुई। इसके बाद उनकी जयशंकर से आधिकारिक द्विपक्षीय वार्ता हुई। रूस से एंटी मिसाइल क्षमता एस-400 खरीदने का मुद्दा उठा।
अमेरिका चाहता है कि भारत तकरीबन पांच अरब डॉलर के इस रक्षा सौदे को रद्द करे और इस तरह की प्रणाली उससे खरीदे। भारत का क्या रूख रहा होगा, इसे जयशंकर के इस बयान से समझा जा सकता है, 'भारत के कई देशों के साथ ऐतिहासिक रिश्ते हैं। हम वहीं करेंगे जो हमारे राष्ट्रीय हित में है। वैसे भी रणनीतिक साझेदारी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा यह भी है कि हम एक दूसरे के राष्ट्रीय हितों को समझें।'
हालांकि जयशंकर ने यह भी कहा कि भारत और अमेरिका के रिश्तों को बड़े परिदृश्य में देखा जाना चाहिए। निश्चित तौर पर इस बैठक के बाद हम एक दिशा में आगे बढ़े हैं। पोम्पिओ ने भी यह बात कही है कि अमेरिका भारत के हितों को समझता है। हालांकि उनके इस आश्वासन के बावजूद रूस से हथियार खरीदने पर प्रतिबंध लगाने की अमेरिकी धमकी अभी ज्यों की त्यों बनी हुई है। इस बारे में भारत अमेरिकी कांग्रेस के सदस्यों के बीच भी अपनी बात रखने की कोशिश कर रहा है।
ईरान के खिलाफ बेहद सख्त रूख अख्तियार कर चुके अमेरिका के लिए इस मुद्दे पर भी भारत का समर्थन चाहिए। अमेरिकी प्रतिबंध के बाद भारत ने ईरान से तेल खरीदना बंद कर दिया है। लेकिन इसका उल्टा असर भी अर्थव्यवस्था पर हो सकता है। अमेरिका भारत का पूरा समर्थन चाहता है।
पोम्पिओ ने कहा कि ईरान दुनिया में आतंक को बढावा देने वाला देश है जबकि भारत स्वयं आतंक से काफी ग्रसित रहा है। जाहिर है कि अमेरिका की तरफ से आतंक का आड़ ले कर ईरान के खिलाफ समर्थन जुटाने की कोशिश है। वैसे भारतीय विदेश मंत्रालय ने बाद में यह साफ किया कि ईरान के आतंकी होने की बात का वह समर्थन नहीं करता है।
भारत ने ईरान की वजह से खाड़ी में बढ़ रहे तनाव का मुद्दा उठाया और बताया कि अगर वहां युद्ध जैसी स्थिति बनती है तो यह भारत के हितों को बहुत नुकसान पहुंचाएंगी। बहरहाल, दोनो के बीच कारोबार से जुड़े तनाव भरे अन्य मुद्दों पर भी बात हुई लेकिन नतीजा निकलने वाली कोई बात नहीं रही। ट्रंप-मोदी के बीच अगले तीन महीनों के बीच दो वार्ता होनी है। साथ ही टू प्लस टू वार्ता भी होनी है। तभी कोई समाधान निकलने की संभावना है।
मुद्दे जिन पर हुई चर्चा
1. ईरान पर लगे प्रतिबंध से भारत की ऊर्जा सुरक्षा पर पड़ने वाला असर
2. अमेरिका के साथ रक्षा सहयोग व हथियार खरीदने की योजना
3. कारोबार से जुड़े मुद्दे, भारत घटाये उत्पाद शुल्क, ज्यादा खरीदे तेल
4. हिंद-प्रशांत महासागर में अमेरिका की उम्मीद भारत ज्यादा सक्रिय हो।
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