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सैन्य वार्ता का बेनतीजा होना चीन की नाकामियों का परिणाम, जैसे को तैसा की बने रणनीति

India China Tension चीन की दर्जनभर पड़ोसियों से दुश्मनी है और मौजूदा समय में ताइवान तो चीन से आर-पार करने को तैयार है। चीन के आरोपों पर भारत हमेशा साफगोई और ईमानदारी से बात कहता आ रहा है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 15 Oct 2021 12:26 PM (IST)Updated: Fri, 15 Oct 2021 12:28 PM (IST)
सैन्य वार्ता का बेनतीजा होना चीन की नाकामियों का परिणाम, जैसे को तैसा की बने रणनीति
सैन्य वार्ता का बेनतीजा होना चीन की नाकामियों का परिणाम है। फाइल फोटो

डा. सुशील कुमार सिंह। चीन के वादे हों या इरादे दोनों पर कभी भी भरोसा नहीं किया जा सकता। दरअसल चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर अमन-चैन की बहाली का इरादा रखता ही नहीं है। कोरोना काल में जब दुनिया स्वास्थ्य की समस्या से जूझ रही थी तब वह पिछले साल अप्रैल-मई में अपनी कुटिल चाल पूर्वी लद्दाख की ओर चल चुका था जो अभी भी नासूर बना हुआ है। हालिया घटना से पहले जून 2017 में डोकलाम विवाद 75 दिनों तक चला जिसे लेकर जापान, अमेरिका, इजराइल व फ्रांस समेत तमाम देश भारत के पक्ष में खड़े थे और अंतत: चीन को पीछे हटना पड़ा था। हालांकि डोकलाम विवाद को पूरी तरह समाप्त अभी भी नहीं समझा जा सकता।

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इतिहास के पन्नों में इस बात के कई सबूत मिल जाएंगे कि भारत और चीन के बीच संबंध भी पुराना है और रार भी पुरानी है। वर्ष 1962 के युद्ध के बाद 1975 में भारतीय सेना के गश्ती दल पर अरुणाचल प्रदेश में चीनी सेना ने हमला किया था। भारत और चीन संबंधों के इतिहास में 2020 का जिक्र भी अब 1962 और 1975 की तरह ही होता दिखता है। इसकी वजह साफ है भारत-चीन सीमा विवाद में 45 साल बाद भी सैनिकों की जान का जाना। दोनों देशों के बीच सीमा का तनाव नई बात नहीं है, व्यापार और निवेश चलता रहता है, राजनीतिक रिश्ते भी निभाए जाते रहे हैं, मगर सीमा विवाद हमेशा नासूर बना रहता है। कूटनीति में अक्सर यह देखा गया है कि मुलाकातों के साथ संघर्षो का भी दौर जारी रहता है। भारत और चीन के मामले में यह बात सटीक है, पर चीन अपने हठयोग और विस्तारवादी नीति के चलते दुश्मनी की भावनाओं को भड़काता रहता है। भारत शांति और अहिंसा का पथगामी बना रहता है। बावजूद इसके पूर्वी लद्दाख के मामले में भारत ने चीन को यह जता दिया है कि वह न तो रणनीति में कमजोर है और न ही चीन के मंसूबे को किसी भी तरह कारगर होने देगा।

उल्लेखनीय है कि पिछले साल भारत और चीन की सेनाओं के बीच टकराव की स्थिति पैदा हुई थी। इनमें पेंगोंग उत्तर, पेंगोंग दक्षिण, गलवन घाटी और गोगरा से दोनों देशों की सेनाएं पीछे हट चुकी हैं, जबकि हाट स्प्रिंग और देपसांग में अभी हालात जस के तस बने हुए हैं। जिन चार स्थानों से सेनाएं पीछे हट चुकी हैं वहां भी मई 2020 से पूर्व की स्थिति बहाल नहीं हुई है। इस क्षेत्र में दोनों देशों की ओर से गश्त बंद है। जाहिर है पहले दोनों देशों की सेनाएं वहां गश्त करती थीं, जो क्षेत्र उनके दावे में आता था। गौरतलब है कि चीन एक ऐसा पड़ोसी देश है जो केवल अपने तरीके से ही परेशान नहीं करता, बल्कि अन्य पड़ोसियों के सहारे भी भारत के लिए नासूर बनता है। मसलन पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश से भी ऐसी ही अपेक्षा रखता है। इन दिनों तो अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता है जो चीन और पाकिस्तान की कामयाबी का प्रतीक है। तालिबान के सहारे भी चीन भारत के लिए बाधा बनना शुरू हो चुका है।

पड़ताल तो यह भी बताती है कि चीन का पहले से लद्दाख के पूर्वी इलाके अक्साई चिन पर नियंत्रण है और चीन यह कहता आया है कि लद्दाख को लेकर मौजूदा हालात के लिए भारत सरकार की आक्रामक नीति जिम्मेदार है। यह चीन का वह चरित्र है जिसमें किसी देश और उसके विचार होने जैसी कोई लक्षण नहीं दिखते। दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन ने पड़ोसियों के लिए हमेशा अशुभ ही बोया है। 

[निदेशक, वाइएस रिसर्च फाउंडेशन आफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन]


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