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बदले हालात को लेकर नए सिरे से होगी समुद्री सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर भारत-चीन वार्ता

भारत इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में स्थाई शांति का पक्षधर हैं।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Wed, 04 Jul 2018 08:19 PM (IST)Updated: Thu, 05 Jul 2018 08:11 AM (IST)
बदले हालात को लेकर नए सिरे से होगी समुद्री सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर भारत-चीन वार्ता
बदले हालात को लेकर नए सिरे से होगी समुद्री सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर भारत-चीन वार्ता

जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। वुहान में पीएम नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी चिनफिंग की अनौपचारिक मुलाकात के बाद भारत व चीन के द्विपक्षीय रिश्तों में व्यापक सुधार की एक प्रक्रिया शुरु होती दिख रही है। दोनों नेताओं के निर्देश के बाद सीमाओं पर तैनात सेनाओं के बीच काफी सामंजस्य बन गया है। अब दोनो देशों ने आपसी रिश्तों में नासूर की तरह उभर रहे समुद्री सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर भी विस्तृत वार्ता का फैसला किया है।

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यह फैसला इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इस विषय पर दोनो देशों के अधिकारी सिर्फ एक बार वर्ष 2016 में आमने-सामने बैठे थे, लेकिन उसके बाद फिर बैठक नहीं हुई। इस बार भारत की तरफ से ही वार्ता का प्रस्ताव भेजा गया है जिसे चीन ने स्वीकृति दे दी है।

सरकारी सूत्रों का कहना है कि समुद्री सुरक्षा एक ऐसा मुद्दा है जो पूरी दुनिया में अभी सबसे ज्यादा चर्चा में है। इस क्षेत्र के एक प्रमुख देश होने की जिम्मेदारी की वजह से हम इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में स्थाई शांति के पक्षधर हैं। भारत -चीन समुद्री सुरक्षा वार्ता का पहला चरण दोनो देशों के संयुक्त सचिवों की अगुवाई में होगी।

माना जा रहा है कि जल्द ही चीन के रक्षा मंत्री भारत के दौरे पर आएंगे तब इस वार्ता के प्रारूप को अंतिम रूप दिया जाएगा। उक्त सूत्रों का कहना है कि भारत इंडो-पैसिफिक समुद्री क्षेत्र में पूर्ण शांति व कानून सम्मत व्यवस्था की अपनी नीति के तहत ही चीन के साथ वार्ता की शुरुआत करेगा।

पीएम नरेंद्र मोदी ने पिछले महीने सिंगापुर में दिए गए अपने शांग्री-ला डायलाग में इस पक्ष को रखा था जिसकी प्रशंसा चीन व अमेरिका जैसे देशों ने की है। भारत चीन के अलावा रूस के साथ भी अलग से इस विषय पर वार्ता शुरु करने जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि रूस के साथ समुद्री सुरक्षा पर पहली बार डायलॉग होगी।

जानकारों की राय में चीन के साथ समुद्री सुरक्षा पर बातचीत को नए सिरे शुरु करना भारत के लिए कई मायने से महत्वपूर्ण होगा। सबसे पहले तो यह तो कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में इन दोनो देशो को आने वाले दशकों का सबसे बड़े प्रतिद्वंदी के तौर पर देखा जा रहा है। एक तरफ जहां चीन ने भारत को घेरने के लिए इसके चारों तरफ कई बंदरगाह व सैन्य अड्डे बनाने की शुरुआत की है तो भारत भी उसके जवाब में ईरान (ग्वादर), सेशेल्स, इंडोनेशिया, कतर समेत अन्य देशों में अपनी सैन्य ताकत तो मजबूत करने में जुटा है।

इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन की बढ़ती ताकत को देख कर ही अमेरिका ने भारत को समुद्री सुरक्षा में अपना एक अहम रणनीतिक साझेदार घोषित कर रखा है। अमेरिका, जापान व आस्ट्रेलिया के साथ भारत का एक गठबंधन बनाने की बात भी हो रही है। भारत ने हाल के दिनों में फ्रांस से लेकर इंडोनेशिया जैसे देशों के साथ समुद्री सुरक्षा को मजबूत करने का समझौता किया है।

सूत्रों से जब यह पूछा गया कि चीन तो इंडो-पैसिफिक पर बेहद कड़ा रवैया अख्तियार करता है, उससे किस तरह से बातचीत शुरु होगी तो उनका जवाब था कि, चीन के रवैये से हमारी चिंता नहीं है, हम बस यह चाहते हैं कि पूरे समुद्री क्षेत्र में जो वैश्विक सर्वसम्मत नियम व कायदे कानून हो वहीं लागू हो। किसी भी देश को उसकी मर्जी से कदम उठाने की मंजूरी न मिले। 


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