राम जन्मभूमि मामला: अधिग्रहीत है विवादित भूमि से 200 गुना ज्यादा जमीन
केंद्र सरकार ने 1993 में अयोध्या में विवादित भूमि सहित कुल 67.703 एकड़ जमीन अधिग्रहीत की, जिसमें 0.313 एकड़ विवादित भूमि है, जहां पर पहले ढांचा था और रामलला विराजमान हैं।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने 1993 में अयोध्या में विवादित भूमि सहित कुल 67.703 एकड़ जमीन अधिग्रहीत की, जिसमें 0.313 एकड़ विवादित भूमि है, जहां पर पहले ढांचा था और रामलला विराजमान हैं। यह अधिग्रहण अयोध्या भू अधिग्रहण कानून के नाम से जाना गया।
इस कानून में यह भी कहा गया कि जमीन विवाद से संबंधित अदालत में लंबित मुकदमे समाप्त समझे जाएंगे। अधिग्रहण को इस्माइल फारूकी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। दूसरी ओर राष्ट्रपति ने भी सुप्रीम कोर्ट में रेफरेंस भेजा।
कोर्ट ने दोनों पर एक साथ सुनवाई की। 1994 में सुप्रीम कोर्ट ने इस्माइल फारूकी केस में फैसला दिया जिसमें पांच न्यायाधीशों ने 3-2 के बहुमत से अयोध्या भूमि अधिग्रहण को वैध ठहराया। हालांकि कोर्ट ने लंबित मुकदमों को समाप्त करने का अंश रद कर दिया और लंबित मुकदमों को पुनर्जीवित कर दिया। इसके साथ ही कोर्ट ने विवादित जमीन पर यथास्थिति कायम रखने के आदेश दिए।
कोर्ट ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार अधिग्रहीत अतिरिक्त भूमि की पूर्ण मालिक है। सरकार गैर विवादित भूमि उनके मालिकों को वापस कर सकती है। हालांकि उसमें उतना हिस्सा सरकार रखेगी जो विवादित जमीन का मुकदमा जीतने वाले पक्ष के लिए अपनी जमीन पर आने जाने और उसका इस्तेमाल करने के लिए जरूरी होगा। अधिग्रहीत जमीन में 42 एकड़ जमीन राम जन्मभूमि न्यास की है।
फैसले के बाद छह जून, 1996 को राम जन्मभूमि न्यास ने केंद्र सरकार के पास अर्जी देकर अपनी जमीन वापस मांगी। सरकार ने 14 अगस्त, 1996 को न्यास की अर्जी यह कहते हुए खारिज कर दी कि इस मांग पर इलाहाबाद हाई कोर्ट में लंबित मुकदमे पर फैसला आने के बाद ही विचार हो सकता है। इसके बाद 1997 में न्यास ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर केंद्र को निर्देश देने की मांग की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार का कहना सही है और याचिका खारिज कर दी।
इसके बाद मोहम्मद असलम भूरे ने 2002 में सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर अयोध्या में भूमि पूजन रोकने की मांग की। 31 मार्च, 2003 को असलम भूरे की याचिका संविधान पीठ ने निपटा दी। 2003 के आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट में लंबित मुकदमे का फैसला होने तक जमीन पर यथास्थिति कायम रहेगी।
2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने राम जन्मभूमि मामले पर अंतिम फैसला दे दिया जिसमें विवादित जमीन को रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड के बीच बराबर बांटने का आदेश दिया था। उस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कुल 13 अपीलें लंबित हैं, जिनमें रामलला सहित सभी पक्षकारों ने फैसले को चुनौती दी है। इन अपीलों को विचारार्थ स्वीकार करते हुए नौ मई, 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने मामले में यथास्थिति कायम रखने के आदेश दिए। उस आदेश में असलम भूरे के मामले में दिए गए यथास्थिति कायम रखने के आदेश को भी शामिल किया। इस कारण से पूरी जमीन पर यथास्थिति कायम है।