जानिए कैसे मध्य प्रदेश विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस की हताशा ने बढ़ाया भाजपा का हौसला
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने खुद मोर्चा संभाल लिया है और उपचुनाव वाले क्षेत्रों का दौरा शुरू कर दिया है।
आनन्द राय, भोपाल। मध्य प्रदेश विधानसभा की 24 सीटों पर जल्द ही उपचुनाव होने वाला है, लेकिन कांग्रेस पार्टी अभी तक सरकार जाने की हताशा से उबर नहीं पाई है। इसके पहले कांग्रेस ने उपचुनाव की जो भी तैयारी की थी, वह सरकारी ढांचे में थी, लेकिन अब जबकि एकमुश्त 24 सीटों की चुनौती है तो उसका कमजोर संगठन आड़े आ रहा है। इस हताशा ने भाजपा का हौसला बढ़ा दिया है और वह इसका लाभ उठाने की तैयारी में जुट गई है।
मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की सरकार का भविष्य भी उपचुनाव पर ही टिका है। कांग्रेस वैसे तो लगातार दावा कर रही है कि उपचुनाव के बाद भाजपा सरकार गिर जाएगी, लेकिन इसके लिए जो जमीनी तैयारी होनी चाहिए, वह नहीं दिख रही है। वह भाजपा पर हमलावर कांग्रेस के बड़े नेताओं पर मुकदमा दर्ज कराने से लेकर ऑडियो-वीडियो वायरल करने तक ही सीमित है। विधानसभा क्षेत्रों में जमीनी मोर्चे पर सक्रियता नहीं है। इसकी बड़ी वजह यह है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने के बाद संगठनात्मक रूप से कमजोरी आ गई है। खासतौर से ग्वालियर-चंबल संभाग के जिन क्षेत्रों में उपचुनाव होने हैं, वहां ज्योतिरादित्य का ही प्रभाव है।
सीएम और भाजपा अध्यक्ष ने संभाला मोर्चा
इस बीच मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने खुद मोर्चा संभाल लिया है और उपचुनाव वाले क्षेत्रों का दौरा शुरू कर दिया है। झाबुआ उपचुनाव में सरकारी हथकंडे ने दिलाई थी जीत झाबुआ विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया जीते थे। तब प्रदेश में कमल नाथ सरकार थी और इस चुनाव को जीतने के लिए उन्होंने सरकारी हथकंडा अपनाया। चुनाव पूर्व किए गए किसानों की कर्जमाफी समेत अन्य वादों को पूरा करने के लिए कांग्रेस ने कड़ी मेहनत की। उपचुनाव में वह सीट कांग्रेस की झोली में आ गई। वैसे भी उपचुनाव के लिए यही कहा जाता है कि जिसकी सरकार रहती उसका पलड़ा भारी रहता है।
जौरा और आगर के लिए भी कांग्रेस ने अपनाया था झाबुआ मॉडल
दो विधायकों के निधन से रिक्त हुई जौरा और आगर विधानसभा सीट पर कांग्रेस ने जीत के लिए झाबुआ मॉडल ही अपनाया था। तब उपचुनाव के लिए कमल नाथ सरकार ने प्रियव्रत सिंह, डॉ गोविंद सिंह, सचिन यादव समेत कई मंत्रियों को जिम्मेदारी दी गई। उन लोगों ने दौरे शुरू किए और योजनाएं भी बनीं, लेकिन इसी बीच भाजपा ने सरकार गिराने के लिए ऑपरेशन कमल शुरू कर दिया। सरकार गिर गई और छह मंत्रियों समेत 22 सदस्यों के इस्तीफे के बाद कुल 24 सीटों पर उपचुनाव होना तय हो गया।
जाहिर है कि इससे कांग्रेस की योजना प्रभावित हो गई। जिम्मेदारियां बंटी, लेकिन धरातल पर प्रभावी नहीं हुई कांग्रेस ने सभी 24 सीटों के लिए पूर्व मंत्रियों और विधायकों की कागजी टीम तो पहले ही बना दी, लेकिन वह धरातल पर प्रभावी नहीं हुई। इस बीच उम्मीदवारों को लेकर भी मंथन शुरू हुआ, लेकिन कमजोर चेहरों ने कांग्रेस की हताशा और बढ़ा दी। लिहाजा भाजपा के असंतुष्टों को साधने में पार्टी जुट गई है। कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता दुर्गेश शर्मा का दावा है कि चुनावी तैयारी बहुत मजबूत है। जनता भाजपा को सबक सिखाएगी।