जानिए क्यों मध्य प्रदेश में सत्ता का भविष्य तय करने वाला ऐतिहासिक उपचुनाव रहेगा लंबे समय तक याद
मध्य प्रदेश उपचुनाव के नतीजे तय करेंगे कि प्रदेश की बागडोर किसके हाथ में रहेगी। यह पहला अवसर है कि प्रदेश में इतनी अधिक सीटों पर एक साथ उपचुनाव हो रहे हैं। उपचुनाव भी विधानसभा चुनाव की तर्ज पर ही लड़ा गया।
भोपाल, राज्य ब्यूरो। मध्य प्रदेश के 28 विधानसभा क्षेत्रों के लिए उपचुनाव का नतीजा मंगलवार को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) में भले ही कैद हो जाएगा, लेकिन इसके महत्व को लेकर लंबे समय तक चर्चा होती रहेगी। 63,67,751 मतदाता 355 प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला करेंगे। मध्य प्रदेश के लिए यह उपचुनाव कई मायनों में ऐतिहासिक है। इसके नतीजों से तय होगा कि भाजपा सरकार में बरकरार रहेगी या कांग्रेस फिर सत्ता में वापसी करेगी। इसके प्रचार के दौरान विवादों और आरोप-प्रत्यारोपों के चलते प्रदेश में राजनीतिक दलों के बीच बढ़ी कटुता भी लंबे समय तक याद रहेगी।
वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव के समय पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस का प्रमुख चेहरा थे। कांग्रेस के सभी वरिष्ठ एक मंच पर दिखे और पार्टी ने 15 साल बाद प्रदेश की सत्ता में वापसी की। इसके बाद सिंधिया की नाराजगी और 22 समर्थक विधायकों के साथ उनके भाजपा में शामिल होने से विधानसभा में सदस्यों की संख्या का गणित कांग्रेस के खिलाफ चला गया और भाजपा ने शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में सरकार बनाई। अब उपचुनाव के नतीजे तय करेंगे कि प्रदेश की बागडोर किसके हाथ में रहेगी। यह पहला अवसर है कि प्रदेश में इतनी अधिक सीटों पर एक साथ उपचुनाव हो रहे हैं। उपचुनाव भी विधानसभा चुनाव की तर्ज पर ही लड़ा गया।
उपचुनाव में यह भी पहली बार
- विधायक न होकर भी मंत्री बने 12 प्रत्याशी उपचुनाव लड़ रहे हैं। इनके अलावा दो मंत्रियों ने संवैधानिक बाध्यता के चलते मंत्री पद से इस्तीफा दिया।
- कोरोना संकट के चलते मतदाताओं को घर से मतदान का अधिकार भी दिया गया।
- विधानसभा चुनाव में कभी कांग्रेस का चेहरा रहे विधायक अब भाजपा के झंडे तले वोट मांग रहे हैं।
इनका राजनीतिक भविष्य दांव पर
शिवराज सिंह चौहान: उपचुनाव में सफल रहे तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का कद भाजपा में बढ़ेगा। माना जाएगा कि जनता ने उनकी योजनाओं पर सहमति जताई है। विफल रहे तो राष्ट्रीय स्तर पर कद प्रभावित होगा।
ज्योतिरादित्य सिंधिया: समर्थकों को उपचुनाव में जिताने की जिम्मेदारी है। इनकी जीत-हार से सिंधिया को सीधे तौर पर सियासी नफा-नुकसान होगा। जीत मिली तो नई पार्टी में स्वीकार्यता बढ़ेगी और सत्ता और संगठन के केंद्र में रहेंगे।
कमल नाथ: सरकार में वापसी नहीं की तो सियासी भविष्य खतरे में आ जाएगा। प्रदेश में पार्टी युवा नेतृत्व के विकल्प पर काम कर सकती है। उपचुनाव जीतकर फिर सरकार बना ली तो प्रदेश में पार्टी के सर्वमान्य नेता की छवि बनेगी।
दिग्विजय सिंह: सत्ता में रहने के दौरान सरकार में हस्तक्षेप के आरोप पार्टी नेताओं ने लगाए थे। सरकार बनी तो और ताकतवर होंगे और यदि नतीजे खिलाफ गए तो केंद्र और राज्य की राजनीति में भविष्य और कद पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।