Ayodhya Case Hearing: सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता से अयोध्या विवाद हल करने का दिया प्रस्ताव
अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई एसए बोबडे डीवाई चंद्रचूड़ अशोक भूषण और एस अब्दुल नजीर की पीठ सुनवाई कर रही है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। राजनैतिक तौर पर संवेदनशील अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में नया मोड़ आ गया है। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अयोध्या विवाद मध्यस्थता के जरिये बातचीत से हल करने का प्रस्ताव दिया है। कोर्ट चाहता है कि दो धर्मो के पूजा अर्चना के अधिकार से जुड़ा यह मामला कोर्ट की निगरानी में कोर्ट द्वारा नियुक्त मध्यस्थ के जरिए स्थाई तौर पर हल हो।
मंगलवार को कोर्ट ने अपनी मंशा साफ करते हुए कहा कि वह रिश्तों में सुधार के पहलू पर विचार करके यह प्रस्ताव दे रहा और अगर मध्यस्थता के जरिए विवाद हल होने की एक फीसद भी उम्मीद है तो उसकी कोशिश होनी चाहिए। कोर्ट ने इस पर दोनों पक्षों की राय भी पूछी जिसमे हिन्दू पक्ष की ओर से रामलला, महन्त सुरेश दास और अखिल भारत हिन्दू महासभा ने असहमति जताई जबकि निर्मोही अखाड़ा और मुस्लिम पक्ष ने सहमति दी। कोर्ट बुधवार छह मार्च को मामला मध्यस्थ को भेजे जाने पर आदेश देगा।
हालांकि कोर्ट ने आज ही संकेत दे दिया है कि मध्यस्थता से हल निकालने की आड़ में मामला अनिश्चित काल के लिए नहीं टलेगा बल्कि मध्यस्थता के लिए आठ सप्ताह का समय दिया जाएगा और तब तक पक्षकार मामले से जुड़े दस्तावेजों के अनुवाद की जांच करके यह पता लगा लेंगे कि अनुवाद सही है और उन्हें स्वीकार्य है ताकि मामले पर नियमित सुनवाई शुरू हो सके।
यह आदेश मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, एसए बोबडे, डीवाई चंद्रचूड़, अशोक भूषण और एस अब्दुल नजीर की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने विवादित जमीन को तीन बराबर हिस्सों में बांटने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली अपीलों पर सुनवाई के दौरान दिये। मध्यस्थ के जरिये दोनों पक्षों के बीच बातचीत से सर्वमान्य स्थाई हल निकाल कर विवाद सुलझाने के प्रस्ताव की शुरुआत जस्टिस एसए बोबडे ने की। जस्टिस बोबडे ने कहा यह महज दो पक्षों के बीच संपत्ति विवाद नहीं है बल्कि दो धर्मो के पूजा अर्चना से जुड़ा अधिकार है अगर मध्यस्थता के जरिए इसके हल होने की एक भी फीसद उम्मीद है तो इसकी कोशिश होनी चाहिए।
दीवानी प्रक्रिया संहिता की धारा 89 का जिक्र करते हुए कहा कि इसके तहत कोर्ट को हमेशा किसी मामले को अदालत के बाहर मध्यस्थ के जरिये सुलझाने का हक है। कोर्ट ने कहा कि आठ सप्ताह के बीच जिस दौरान पक्षकार उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से मौखिक गवाहियों के अंग्रेजी अनुवाद जांचेंगे उस बीच मध्यस्थता से विवाद के हल का प्रयास किया जा सकता है। जस्टिस बोबडे ने कहा कि मध्यस्थता के दौरान पूरी तरह गोपनीयता कायम रहनी चाहिए और किसी भी तीसरे पक्ष को उस पर टिप्पणी या बयान नहीं देना चाहिए। हालांकि शुरुआत में हिन्दू - मुस्लिम दोनों पक्षों ने प्रस्ताव का विरोध किया, कहा कि पूर्व में कई बार ऐसे प्रयास हो चुकें है लेकिन सफल नहीं हुए।
इस पर जस्टिस बोबडे ने कहा कि उस वक्त मध्यस्थता का प्रस्ताव कोर्ट का नहीं था। यह प्रस्ताव कोर्ट का है। वह रिश्ते सुधारने के पहलू से इस पर विचार कर रहे हैं। मुख्य न्यायाधीश गोगोई ने प्रस्ताव पर पक्षकारों की राय पूछी जिस पर हिन्दू पक्ष की ओर से रामलला के वकील सीएस वैद्यनाथन, महंत सुरेश दास के वकील रंजीत कुमार और अखिल भारत हिन्दू महासभा के वकील बरुण कुमार सिन्हा ने प्रस्ताव से असहमति जताई। वैद्यनाथन और कुमार ने कहा कि पूर्व में शंकराचार्य, श्री श्री रविशंकर व अन्य कई लोग ऐसी कोशिश कर चुके हैं लेकिन सहमति नहीं बनी ऐसे में अब कोर्ट ही मामले का जल्द से जल्द फैसला करे।
दूसरी ओर मुस्लिम पक्ष एम सिद्दीक के कानूनी वारिस (जमीयत उलेमा ए हिन्द उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष) के वकील राजीव धवन, सुन्नी वक्फ बोर्ड और मोहम्मद हाशिम के कानूनी वारिस के वकील दुष्यंत दवे तथा अन्य मुस्लिम पक्ष के वकील राजू राम चंद्रन के अलावा निर्मोही अखाड़ा के वकील सुशील जैन ने प्रस्ताव का समर्थन किया। धवन ने कहा कि अगर कोर्ट ऐसा चाहता है तो वे मोटे तौर पर इसके लिए राजी हैं। कोर्ट ने दोनों पक्षों की राय दर्ज करते हुए मामला मध्यस्थ को भेजने पर सुनवाई 6 मार्च तक टाल दी।
मुस्लिम पक्ष ने अनुवाद जांचने के लिए मांगा समय
सुनवाई के दौरान मामले की स्थिति के बारे में रजिस्ट्री को ओर से दाखिल रिपोर्ट कोर्ट में पेश हुई और रिपोर्ट की प्रति सभी पक्षों को दी गई। कोर्ट ने पूछा कि मौखिक गवाहियों व अन्य दस्तावेजों के उत्तर प्रदेश सरकार व अन्य पक्षों की ओर से दाखिल किये गये अनुवाद क्या सभी पक्षो को स्वीकार्य हैं। किसी को इस पर आपत्ति तो नहीं है क्योंकि कोर्ट सुनवाई के दौरान अनुवाद के बारे में आपत्तियों का मसला नहीं सुनना चाहता।
इस पर मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने कहा कि उन्होंने प्रदेश सरकार की ओर से दाखिल अनुवाद जांचे और मिलाए नहीं है इसके लिए उन्हें समय दिया जाए। हालांकि हिन्दू पक्ष की ओर से इसका विरोध करते हुए कहा गया कि पहले ही अनुवाद मिलाए जा चुके हैं और किसी भी पक्ष ने आपत्ति नहीं जताई थी। इस वक्त मुस्लिम पक्ष की ओर से अनुवाद की जांच के लिए वक्त मांगना उचित नहीं है। हालांकि कोर्ट ने पक्षकारों को अनुवाद जांचने के लिए आठ सप्ताह का वक्त दे दिया है।
आस्था का मुद्दा कोर्ट नहीं तय कर सकता
रामलला की पूजा अर्चना के मौलिक अधिकार की मांग कर रहे सुब्रमण्यम स्वामी ने मंगलवार को कोर्ट में कहा कि हिन्दुओं का विश्वास और आस्था है कि भगवान राम ने उस जगह जन्म लिया था। यह आस्था और विश्वास का मुद्दा है और कोर्ट आस्था के मुद्दे को नहीं तय कर सकता। कहा कि ऐसे ही ईसामसीह और अल्लाह के बारे में आस्था है। उन्होंने यह भी कहा कि मुस्लिम पक्ष भी इससे इन्कार नहीं करता कि भगवान राम का जन्म अयोध्या मे हुआ था मुस्लिम पक्ष सिर्फ जगह को लेकर विवाद कर रहा है।
स्वामी ने कहा कि नरसिम्हा राव सरकार के दौरान केन्द्र ने तय किया था कि अगर विवादित स्थल पर हिन्दू मंदिर होना पाया गया तो वह स्थान हिन्दुओं को सौंप दिया जाएगा। इसके बाद भारत पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने खुदाई करके उस जगह पूर्व में विशाल मंदिर होने के प्रमाण होने की रिपोर्ट दी है। हिन्दुओं को भगवान राम के जन्मस्थल पर पूजा अर्चना का अधिकार है। हालांकि स्वामी का मुस्लिम पक्ष ने विरोध किया और कहा कि ये मुख्य मामले में पक्षकार नहीं है इसलिए इन्हें नहीं सुना जाना चाहिए लेकिन मुख्य न्यायाधीश ने आपत्तियां दरकिनार कर दीं।