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'जलवायु परिवर्तन से निपटने में विकासशील देशों को हल्के में न लें विकसित देश'

Climate change, मंत्री हर्षवर्धन ने कहा कि जलवायु परिवर्तन से निपटने में विकासशील देशों को हल्के में न लें विकसित देश।

By Nancy BajpaiEdited By: Published: Wed, 21 Nov 2018 08:51 AM (IST)Updated: Wed, 21 Nov 2018 08:51 AM (IST)
'जलवायु परिवर्तन से निपटने में विकासशील देशों को हल्के में न लें विकसित देश'
'जलवायु परिवर्तन से निपटने में विकासशील देशों को हल्के में न लें विकसित देश'

नई दिल्ली, प्रेट्र। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने में भारत सहित अन्य विकासशील देशों की सक्रिय एवं गंभीर प्रतिबद्धता का हवाला देते हुए कहा कि विकसित देश इस गंभीरता को हल्के में न लें। विकसित देशों पर पेरिस समझौते की प्रतिबद्धताओं को पूरा कराने के लिए विकासशील देश ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत और चीन (बेसिक समूह) अगले महीने पोलैंड में होने वाली कोप-24 बैठक में एकजुट होकर माकूल दबाव बनाएंगे।

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पर्यावरण मंत्रालय द्वारा आयोजित 'बेसिक समूह' देशों की बैठक के समापन पर मंगलवार को डॉ. हर्षवर्धन ने कहा, 'जलवायु परिवर्तन पर सभी देशों की प्रतिबद्धता के पालन की सीमा को आंकने का पैमाना 'कोप-24' सम्मेलन में तय किए जाने की संभावना है। बेसिक समूह देशों की बैठक में पर्यावरण संरक्षण संबंधी प्रतिबद्धताओं का पालन करते हुए कोप-24 और जी-77 सहित अन्य मंचों पर विकासशील देशों के हितों के संरक्षण की आवाज एकजुट होकर उठाने पर सहमति बनी है।'

100 अरब अमेरिकी डॉलर का वादा निभाएं विकसित देश
बेसिक देशों के पर्यावरण मंत्रियों के संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि बैठक में जारी किए गये संयुक्त वक्तव्य में पेरिस समझौते के तहत 2016 में विकसित और विकासशील देशों द्वारा किए गए वादों को पूरी सच्चाई और ईमानदारी से लागू करने की साझा मांग की गई है। उन्होंने कहा कि इसमें कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए अत्याधुनिक तकनीक विकासशील देशों को हस्तांतरण करना और विकसित देशों द्वारा 100 अरब अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष की वित्तीय मदद की प्रतिबद्धता का 2020 तक पालन सुनिश्चित करने सहित अन्य वादों का पालन शामिल है।

विकसित देशों ने नहीं की ठोस पहल
उन्होंने विकसित देशों की ओर से हालांकि इस दिशा में अभी तक कोई ठोस पहल नहीं होने का हवाला देते हुए इस पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि बेसिक समूह देशों ने इस बात पर भी सहमति जताई है कि 2020 तक वित्तीय मदद का वादा पूरा नहीं होने पर इसे 2020 के बाद भी पूरा किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, 'जलवायु परिवर्तन को लेकर सभी देशों की प्रतिबद्धता को उनकी जरूरतों, संसाधनों और तकनीक की उपलब्धता के आधार पर पृथक नजरिये से देखा जाना चाहिए। विकसित देश सभी देशों को एक ही तराजू में नहीं तौल सकते हैं। इसलिए समूची कवायद में पृथक्करण के सिद्धांत को अपनाया गया है। इसलिए इसे पारदर्शिता से लागू करने का बैठक में निर्णय हुआ है।'

गंभीरता से काम कर रहा भारत
डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि बैठक में किए गए फैसलों और प्रतिबद्धताओं से कोप-24 के अध्यक्ष को अवगत करा दिया है। इसमें बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बेहद गंभीरता से काम किया जा रहा है। इसमें अंतरराष्ट्रीय सोलर अलायंस की क्रांतिकारी पहल, 2022 तक स्वच्छ ऊर्जा (175 गीगावाट) और 2030 तक ई-वाहनों पर शत-प्रतिशत निर्भरता जैसे लक्ष्य शामिल हैं। उन्होंने कहा, 'पेरिस समझौते के तहत किए वादों और तय किए गए लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए भारत सहित अन्य विकासशील देश बेहद गंभीरता से काम कर रहे हैं।'

चारों देशों ने सहयोग बढ़ाने पर जताई सहमति
इस दौरान ब्राजील के पर्यावरण मंत्री एडसन डुआर्ते, चीन के पर्यावरण प्रतिनिधि शी झेनहुआ और दक्षिण अफ्रीका की प्रतिनिधि डॉ. सकानी नोमाने ने संयुक्त वक्तव्य को कोप-24 सम्मेलन के लिए चारों देशों का साझा लक्ष्य बताते हुए अपनी प्रतिबद्धताओं के पालन के लिए आपसी सहयोग बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की। वहीं, चीन के प्रतिनिधि झेनहुआ ने कहा कि पेरिस समझौते से अमेरिका के हटने के बाद जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने में विकसित देशों से उनकी प्रतिबद्धताओं का पालन कराने के लिए विकासशील देशों की जिम्मेदारी बढ़ गई है। इसके तहत विकसित देशों पर दबाव बनाने के लिए बेसिक देशों समूह सहित अन्य समूहों को भी इस तरह के प्रयास तेज करना चाहिए।


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