कहीं अति महत्वाकांक्षा का शिकार तो नहीं हो रहे हार्दिक पटेल
हाल में जिन तीन नेताओं ने कांग्रेस छोड़ी है उनमें से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और पंजाब प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने तो नया ठिकाना तलाश लिया है लेकिन हार्दिक पटेल अभी अधर में हैं।
ब्रजबिहारी, नई दिल्ली। पिछले कुछ दिनों में कांग्रेस को अलविदा कहने वाले तीन प्रमुख नेताओं में से दो ने तो अपना-अपना नया ठिकाना तलाश कर लिया लेकिन तीसरे नेता को लेकर राजनीतिक गलियारों में अटकलों का बाजार गर्म है। हम बात कर रहे हैं सुनील जाखड़, कपिल सिब्बल और हार्दिक पटेल की। जाखड़ ने तो भाजपा का दामन थाम लिया और कपिल सिब्बल सपा के समर्थन से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में राज्यसभा का चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। बाकी बचे 28 वर्षीय हार्दिक पटेल जिन्होंने 18 मई को गुजरात प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद से अपने अगले कदम को लेकर पहेलियां बुझा रहे हैं।
भाजपा में जाने की अटकलें
हार्दिक ने त्यागपत्र देने के बाद जिस अंदाज में भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तारीफ की है उससे कयास लगाए जा रहे हैं कि वे इस पार्टी में शामिल हो सकते हैं। हाल ही में अपने एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि अगर गुजरात की जनता किसी पार्टी को लगातार 30 साल से सत्ता में बिठाए हुए है तो जाहिर है कि उसमें जरूर को खास बात होगी। अयोध्या के राम मंदिर को लेकर उनके बयान के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि जब वे कांग्रेस में थो तब भी उन्होंने राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले और जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने की प्रशंसा की थी और दूसरी पार्टी में शामिल होने के बाद भी वे एक मजबूत नेता के रूप में स्वर्गीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की तारीफ करते रहेंगे।
हार्दिक पटेल का झुकाव भाजपा की ओर क्यों हैं, इसके जवाब में गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष जगदीश ठाकोर कहते हैं कि वे अपने खिलाफ मामलों को सुलटाने के लिए सत्ताधारी पार्टी की शरण में जाना चाहते हैं। बता दें कि हार्दिक के खिलाफ 2015 से 2018 के बीच 30 एफआइआर दर्ज हुई हैं। इनमें से राजद्रोह का भी केस शामिल है। अगस्त 2015 में उनके खिलाफ वित्तीय धोखाधड़ी का भी एक मामला दर्ज किया गया था।
आम आदमी पार्टी में भी संभावना
दूसरी तरफ, हार्दिक पटेल के आम आदमी पार्टी में शामिल होने की भी चर्चा चल रही है। पटेल के अगले कदम को लेकर जागरण डाट काम ने गुजरात के राजनीतिक विश्लेषकों से बात की। वरिष्ठ पत्रकार दर्शन देसाई कहते हैं कि 2017 के राज्य विधानसभा चुनाव में भाजपा को हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर ने कड़ी टक्कर दी थी। उनमें से अल्पेश ठाकोर भाजपा में शामिल हो चुके हैं। हार्दिक पटेल कांग्रेस छोड़ चुके हैं और उनके भाजपा में शामिल होने की संभावना दिख रही है। युवा नेताओं की इस त्रयी के बिखरने का सबसे ज्यादा फायदा भाजपा को होने जा रहा है। ऐसे में अकेले अल्पेश ठाकोर भाजपा को नुकसान पहुंचा पाएंगे, इसकी संभावना बहुत कम है।
हार्दिक के भाजपा में शामिल होने में देरी क्यों हो रही है, इसके जवाब में दर्शन देसाई का कहना है कि पार्टी के अंदर आनंदीबेन पटेल का ग्रुप हार्दिक पटेल को शामिल करने का विरोध कर रहा है। इस ग्रुप के नेताओं का कहना है कि हार्दिक अराजकता फैलाने वाले नेता हैं। ऐसे नेता की पार्टी को जरूरत नहीं है। बता दें कि 2015 में हार्दिक पटेल के पाटीदार समाज के लिए आरक्षण आंदोलन के कारण ही आनंदीबेन को मुख्यमंत्री का पद छोड़ना पड़ा था।
आप में हैं कई पाटीदार नेता
क्या हार्दिक पटेल आम आदमी पार्टी में भी शामिल हो सकते हैं, इस पर दर्शन देसाई ने कहा कि इसकी संभावना कम है लेकिन राजनीति में कुछ भी कहना मुश्किल है। वैसे गुजरात में आम आदमी पार्टी में पाटीदार समाज के कई नेता सक्रिय हैं। सूरत के नगर निगम चुनाव में आप को 27 सीटें मिली थी, जिनमें से कई विजेता पाटीदार समाज से ही थे। हालांकि बाद में उनमें से पांच पार्षद भाजपा में शामिल हो गए थे।
देसाई की नजर में हार्दिक पटेल काफी महत्वाकांक्षी हो गए थे। पार्टी के कई पुराने और कद्दावर लोगों को किनारे रखकर उन्हें कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया, फिर भी वे पार्टी में काम नहीं होने की शिकायत करते रहे। उन्हें खुद सोचना चाहिए कि कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में उन्होंने क्या किया। जहां तक भाजपा का सवाल है तो पार्टी भले ही हार्दिक को शामिल कर ले लेकिन यहां भी उन्हें कुछ खास मिलने वाला नहीं है।
पाटीदार आंदोलन से भाजपा को हुआ था नुकसान
बता दें कि 2015 में 22 साल के हार्दिक पटेल ने पाटीदार अनामत आंदोलन समिति (पीएएएस) के बैनर तले पूरे राज्य में आंदोलन छेड़कर हलचल पैदा की थी। पाटीदार समाज के लिए आरक्षण की मांग को लेकर किया गया इस आंदोलन की वजह से 2017 के चुनाव में भाजपा को नुकसान भी उठाना पड़ा था। वर्ष 2012 के 117 सीट के मुकाबले भाजपा को 99 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था। विधानसभा चुनाव में तो पाटीदार समाज ने भाजपा का विरोध किया लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में उसने पूरी तरह से कांग्रेस का विरोध किया। हालांकि तब तक हार्दिक पटेल गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जा चुके थे।
परंपरागत रूप से पाटीदार समाज भाजपा का समर्थक रहा है। राज्य की राजनीति पर नजर रखने वालों को याद होगा कि 1985 के आरक्षण विरोधी आंदोलन में पाटीदार समाज ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। लेकिन उसी पाटीदार समाज के युवा नेता ने आरक्षण के समर्थन में आंदोलन किया और पाटीदार को कांग्रेस के करीब लाने की कोशिश की लेकिन वे उसमें सफल नहीं रहे।