ओबीसी की पिछड़ी जातियों पर सरकार खेल सकती है नया दांव, जल्द होगा नया एलान
जस्टिस रोहिणी आयोग इस हफ्ते अपनी पहली रिपोर्ट सरकार को सौंप देगी, जिसके बाद सरकार इसे लेकर अपना काम शुरू कर सकती है।
अरविंद पांडेय, नई दिल्ली। आरक्षण के बावजूद ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) की पिछड़ी रह गई जातियों को लेकर सरकार जल्द ही कुछ बड़ा एलान कर सकती है। फिलहाल ओबीसी की ऐसी जातियों का पता लगाने को लेकर गठित जस्टिस रोहिणी आयोग इस हफ्ते अपनी पहली रिपोर्ट सरकार को सौंप देगी। जिसके बाद सरकार इसे लेकर अपना काम शुरू कर सकती है।
हालांकि आयोग की अंतिम रिपोर्ट दिसंबर तक या फिर उससे पहले भी आ सकती है। यह इसलिए है, क्योंकि आयोग का कार्यकाल 30 नवंबर 2018 को खत्म हो रहा है।
सरकार ने ओबीसी की इन पिछड़ी जातियों को लेकर यह काम उस समय शुरू किया है, जब ओबीसी को सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 27 फीसद का आरक्षण है, बावजूद इसके इस वर्ग की बहुत सारी जातियां ऐसी है, जिनका प्रतिनिधित्व काफी कम है। यानि आरक्षण के बाद भी वह लाभ से वंचित है।
सिर्फ तीन-चार बड़ी जातियों को ही मिल रहा लाभ
आयोग के प्रारंभिक आंकलन के मुताबिक आरक्षण का यह लाभ ओबीसी की सिर्फ तीन-चार बड़ी जातियों तक ही सिमटा है। सरकार की कोशिश है कि इस असमानता को खत्म किया जाए। वैसे भी इसे लेकर पिछड़ा वर्ग आयोग 2011 में ही अपनी सिफारिश कर चुका है, लेकिन पिछली सरकारों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। मौजूदा समय अब इसे लेकर तेजी से आगे बढ़ना चाहती है।
जस्टिस रोहिणी आयोग जल्द सौंपेगी रिपोर्ट
यही वजह है कि सरकार ने पिछले साल ही दिल्ली हाईकोर्ट की पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रोहिणी की अध्यक्षता में ओबीसी उप-वर्गीकरण आयोग का गठन कर इस काम तेज दिया। इस आयोग को वैसे तो गठन के 12 हफ्ते में ही अपनी रिपोर्ट देनी थी, लेकिन आयोग ने काम-काज के बढ़ने से सरकार अब तक इसके कार्यकाल को तीन बार बढ़ा चुकी है।
इसके तहत सरकार ने आयोग के कार्यकाल को अंतिम बार बढाया है, जो नवंबर 2018 में खत्म हो रहा है। आयोग का कार्यक्षेत्र ओबीसी की केंद्रीय सूची में शामिल जातियों की असमानता को परखना और उन्हें लेकर सुझाव देना है।
राज्य जो पहले ही उठा चुके है कदम
ओबीसी आरक्षण का वर्गीकरण देश के कई राज्यों में पहले से ही किया जा चुका है। हालांकि यह वर्गीकरण राज्य सूची के आधार पर किया गया है। जिन राज्यों में अपने यहां इस वर्गीकरण के काम को किया है, उनमें पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, झारखंड, बिहार, हरियाणा, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, जम्मू-कश्मीर और पांडिचेरी शामिल है।